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Wednesday, April 22, 2015

किसानों की आत्महत्या-लोकतंत्र की असफलता-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा

किसानों की आत्महत्या-लोकतंत्र की असफलता-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
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आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं, लेकिन आत्महत्या करने को कोई क्यों विवश होता है, ये सवाल उत्तर माँगता है!
देश में लगातार हो रही किसानों की आत्महत्या, प्रशासन, सरकार और जनप्रतिनिधियों के निष्ठुर होने का अकाट्य प्रमाण!
लोकतंत्र को सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था मानकर अपनाया गया था, लेकिन किसानों की आत्महत्याओं के चलते अब ये भ्रम भरभराकर टूट रहा है!
दलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में संवेदनशील जन-प्रतिनिधि नहीं, बल्कि असंवेदनशील दल+प्रतिनिधि पैदा हो रहे हैं, दुष्परिणाम-किसानों की आत्महत्या!
निष्ठुर और असंवेदनशील जन-प्रतिनिधि, नहीं, दल-प्रतिनिधि जनता का विश्वास खो चुके हैं! लोकतंत्र असफल हो रहा है!
ऐसे में सर्वाधिक विचारणीय सवाल-क्या लोकतंत्र असफल हो गया है या असफल किया जा चुका है? क्या किसानों की आत्महत्या-लोकतंत्र की असफलता का प्रमाण नहीं?
अत: क्या अब वर्तमान लोकतंत्र से बेहतर किसी नयी और अधिक जनोन्मुखी शासन व्यवस्था को ईजाद करने का समय नहीं आ गया है?-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा

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