मेरे शुभचिंतक और समालोचक जिनके विश्वास एवं संबल पर मैं यहाँ लिख पा रहा हूँ!

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Tuesday, September 14, 2010

बेलगाम नौकरशाही को लूट की छूट!


डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'/Dr. Purushottam Meena 'Nirankush'

सत्ता में आने के बाद कुछ माह तक मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत ने अपने निवास पर जनता दरबार लगाकर, जनता की शिकायतें सुनने का प्रयास किया था, जिनका हश्र जानकर कोई भी कह सकता है कि राज्य की नौकरशाही पूरी तरह से निरंकुश एवं सरकार के नियन्त्रण से बाहर हो चुकी हैप्राप्त शिकायतों पर मुख्यमन्त्री के विशेषाधिकारी (आईएएस अफसर) की ओर से कलक्टरों एवं अन्य उच्च अधिकारियों को चिठ्ठी लिखी गयी कि मुख्यमन्त्री चाहते हैं कि जनता की शिकायतों की जाँच करके सात/दस दिन में अवगत करवाया जावे। इन पत्रों का एक वर्ष तक भी न तो जवाब दिया गया है और न हीं किसी प्रकार की जाँच की गयी है। इसके विपरीत मुख्यमन्त्री से मिलकर फरियाद करने वाले लोगों को अफसरों द्वारा अपने कार्यालय में बुलाकर धमकाया भी जा रहा है। साफ शब्दों में कहा जाता है कि मुख्यमन्त्री ने क्या कर लिया? मुख्यमन्त्री को राज करना है तो अफसरशाही के खिलाफ बकवास बन्द करनी होगी। ऐसे हालात में राजस्थान की जनता की क्या दशा होगी, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है।
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भाजपा की वसुन्धरा राजे सरकार को भ्रष्ट और भू-माफिया से साठगांठ रखने वाली सरकार घोषित करके जनता से विकलांग समर्थन हासिल करने वाली राजस्थान की काँग्रेस सरकार में भी इन दिनों भ्रष्टाचार चरम पर है। दो वर्ष से भी कम समय में जनता त्रस्त हो चुकी है। जनता साफ तौर पर कहने लगी है कि राज्य के मुख्यमन्त्री अशोक गहलोग अभी तक अपनी पिछली हार के भय से उबर नहीं हो पाये हैं।

पिछली बार सत्ताच्युत होने के बाद अशोक गहलोत पर यह आरोप लगाया गया था कि कर्मचारियों एवं अधिकारियों के विरोध के चलते ही काँग्रेस सत्ता से बाहर हुई थी। हार भी इतनी भयावह थी कि दो सौ विधायकों की विधानसभा में 156 में से केवल 56 विधायक ही जी सके थे।

अशोक गहालोत की हार पर अनेक राजनैतिक विश्लेषकों ने तो यहाँ तक लिखा था कि राजस्थान के इतिहास में पहली बार वसुन्धरा राजे के नेतृत्व में भाजपा को मिला पूर्ण बहुमत अशोक गहलोग के प्रति नकारात्मक मतदान का ही परिणाम था। इस डर से राजस्थान के वर्तमान मुख्यमन्त्री इतने भयभीत हैं कि राज्य की नौकरशाही के विरुद्ध किसी भी प्रकार की कठोर कार्यवाही नहीं की कर पा रहे हैं।

सत्ता में आने के बाद कुछ माह तक मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत ने अपने निवास पर जनता दरबार लगाकर, जनता की शिकायतें सुनने का प्रयास किया था, जिनका हश्र जानकर कोई भी कह सकता है कि राज्य की नौकरशाही पूरी तरह से निरंकुश एवं सरकार के नियन्त्रण से बाहर हो चुकी है।

प्राप्त शिकायतों पर मुख्यमन्त्री के विशेषाधिकारी (आईएएस अफसर) की ओर से कलक्टरों एवं अन्य उच्च अधिकारियों को चिठ्ठी लिखी गयी कि मुख्यमन्त्री चाहते हैं कि जनता की शिकायतों की जाँच करके सात/दस दिन में अवगत करवाया जावे। इन पत्रों का एक वर्ष तक भी न तो जवाब दिया गया है और न हीं किसी प्रकार की जाँच की गयी है। इसके विपरीत मुख्यमन्त्री से मिलकर फरियाद करने वाले लोगों को अफसरों द्वारा अपने कार्यालय में बुलाकर धमकाया भी जा रहा है। साफ शब्दों में कहा जाता है कि मुख्यमन्त्री ने क्या कर लिया? मुख्यमन्त्री को राज करना है तो अफसरशाही के खिलाफ बकवास बन्द करनी होगी। ऐसे हालात में राजस्थान की जनता की क्या दशा होगी, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है।

मनरेगा में काम करने वाली गरीब जनता को तीन महिने तक मजदूरी नहीं मिलती है। शिकायत करने पर कोई कार्यवाही नहीं होती है। सूचना अधिकार के तहत जानकारी मांगने पर जनता को लोक सूचना अधिकारी एवं प्रथम अपील अधिकारी द्वारा सूचना या जानकारी देना तो दूर कोई जवाब तक नहीं दिया जाता है। राज्य सूचना आयुक्त के पास दूसरी अपील पेश करने पर भी ऐसे अफसरों के विरुद्ध किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं होना आश्चर्यजनक है।

पुलिस थानों में खुलकर रिश्वतखोरी एवं मनमानी चल रही है। अपराधियों के होंसले बलुन्द हैं। अपराधियों में किसी प्रकार का भय नहीं है। सरेआम अपराध करके घूमते रहते हैं।

कहने को तो पिछली सरकार द्वारा खोली गयी शराब की दुकानों में से बहुत सारी बन्द की जा चुकी हैं, लेकिन जितनी बन्द की गयी हैं, उससे कई गुनी बिना लाईसेंस के अफसरों की मेहरबानी से धडल्ले से चल रही हैं।

राज्य में मिलावट का कारोबार जोरों पर है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि राजस्थान से बाहर रहने वाले राजस्थानी शर्मसार होने लगे हैं। मसाले, घी, दूध, आटा, कोल्ड ड्रिंक, तेल, सीमण्ट सभी में लगातार मिलावटियों के मामले सामने आ रहे हैं। आश्चर्यजनक रूप से मिलावटियों को किसी प्रकार का डर नहीं है। नकली एवं एक्सपायर्ड दवाईयाँ भी खूब बिक रही हैं। मैडीकल व्यवसाय से जुडे लोग 80 प्रतिशत तक गैर-कानूनी दवाई व्यवसाय कर रहे हैं।

भाजपा राज में भू-माफिया के खिलाफ बढचढकर आवाज उठाने वाली काँग्रेस के वर्तमान नगरीय आवास मन्त्री ने जयपुर में नया जयपुर बनाकर आगरा रोड एवं दिल्ली रोड पर आम लोगों द्वारा वर्षों की मेहनत की कमाई से खरीदे गये गये भूखण्डों को एवं किसानों को अपनी जमीन को औने-पौने दाम पर बेचने को विवश कर दिया है। जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा 90 बी (भू-रूपान्तरण) पर तो पाबन्दी लगादी है, लेकिन भू-बेचान जारी रखने के लिये रजिस्ट्रिंयाँ चालू हैं। आवाप्ती की तलवार लटका दी गयी है। जिसका सीधा सा सन्देश है कि सरकार द्वारा कृषि भूमि को आवासीय भूमि में परिवर्तन नहीं किया जायेगा, लेकिन सस्ती दर पर भू-माफिया को खरीदने की पूरी आजादी है।

केवल इतना ही नहीं, बल्कि आगरा रोड एवं दिल्ली रोड पर प्रस्ताविक नये जयपुर के लिये घोषित क्षेत्र में निर्माण पर भी पाबन्दी लगादी गयी है और साथ ही यह भी सन्देश प्रचारित कर दिया गया है कि जिस किसी के प्लाट में मकान निर्माण हो चुका है, उसे अवाप्त नहीं किया जायेगा। इसके चलते इस क्षेत्र में हर माह कम से कम 500 नये मकानों की नींव रखी जा रही है। यह तब हो रहा है, जबकि नये मकानों के निर्माण की रोकथाम के लिये विशेष दस्ता नियुक्त किया गया है। यह दस्ता मकान निर्माण तो नहीं रोक पा रहा, लेकिन हर मकान निर्माता पचास हजार से एक लाख रुपये तक जयपुर विकास प्राधिकरण के इन अफसरों को भेट चढा कर आसानी से मकान निर्माण जरूर कर पा रहा है। जो कोई रिश्वत नहीं देता है, उसके मकान को ध्वस्त कर दिया जाता है।

क्या राजस्थान के आवासीय मन्त्री (जो राज्य के गृहमन्त्री भी हैं) और मुख्यमन्त्री इतने भोले और मासूम हैं कि उन्हें जयपुर विकास प्राधिकरण के अफसरों के इस गोरखधन्धे की कोई जानकारी ही नहीं है। सच्चाई तो यह है कि जनता द्वारा हर महिने इस बारे में सैकडों शिकायतें मुख्यमन्त्री एवं आवासीय मन्त्री को भेजी जाती हैं, जिन्हें उन्हीं भ्रष्ट अफसरों को जरूरी कार्यवाही के लिये अग्रेषित कर दिया जाता है, जिनके विरुद्ध शिकायत की गयी होती है। जहाँ पर क्या कार्यवाही हो सकती है, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है।

कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि राज्य की नौकरशाही पूरी तरह से बेलगाम हो चुकी है और सरकार का या तो नौकरशाही पर नियन्त्रण नहीं है या पिछली बार काँग्रेस एवं अशोक गहलोत से नाराज हो चुकी नौकरशाही को खुश करने के लिये स्वयं सरकार ने ही खुली छूट दे रखी है कि बेशक जितना कमाया जावे, उतना कमा लो, लेकिन मेहरबानी करके नाराज नहीं हों। अब तो ऐसा लगने लगा है कि राज्य सरकार को जनता का खून पीने से कोई फर्क ही नहीं पडता।

कुछ लोग तो यहाँ तक कहने लगे हैं कि राहुल गाँधी का वरदहस्त प्राप्त केन्द्रीय ग्रामीण विकास मन्त्री (जो राजस्थान में काँग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं) सी. पी जोशी के लगातार दबाव एवं राज्य सरकार के मामलो में दखलांजी के चलते अशोक गहलोत को इस कार्यकाल के बाद मुख्यमन्त्री बनने की कोई उम्मीद नहीं है, इसलिये वे किसी भी तरह से अपना कार्यकाल पूर्ण करना चाहते हैं। अगली बार काँग्रेस हारे तो खूब हारे उन्हें क्या फर्क पडने वाला है!

-लेखक होम्योपैथ चिकित्सक, मानव व्यवहारशास्त्री, दाम्पत्य विवादों के सलाहकार, विविध विषयों के लेखक, टिप्पणीकार, कवि, शायर, चिन्तक, शोधार्थी, तनाव मुक्त जीवन, लोगों से काम लेने की कला, सकारात्मक जीवन पद्धति आदि विषय के व्याख्याता तथा समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। जिसमें 13 सितम्बर, 2010 तक, 4463 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे)

9 comments:

  1. ... saarthak va prabhaavashaalee abhivyakti !!!

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  2. व्यवस्था पूरी तरह सड़ चुकी है इसे बदलने के लिए हर घर से इसके खिलाप आवाज को बुलंद करना होगा ,अन्यथा सार्थक परिणाम नहीं मिलेगा ...

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  3. सार्थक अभिव्यक्ति,

    यहाँ भी पधारें:-
    अकेला कलम...

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  4. आदरणीय "मीणा" जी नमस्कार,

    आप मेरे ब्लॉग पर आये अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों से हमें नवाजा जिसका मैं शुक्रगुजार हूँ।
    आपने मेरे दो वाक्यांशों पर विस्तृत जानकारी की इच्छा जताई थी जिसके लिए मैं आज आपके सामने प्रस्तुत हूँ,
    थोडा देर से आने के लिए खेद है।
    1. "आरक्षण की सीमा से ऊपर" से मेरा तात्पर्य ये है:-
    आरक्षण का सच्चा हक़दार वो है जो शारीरिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा है फिर चाहे वो 'मीणा' हो या 'पाण्डेय'।
    जितने लोग हरियाणा में पिछले दिनों प्रदर्शन कर रहे थे वे अगर शारीरिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े होते तो प्रदर्शन नहीं कर रहे होते,
    कहीं पर अपने शाम के भोजन के लिए मेहनत कर रहे होते।
    2. 'जातिगत आरक्षण की कोई जरुरत नहीं रह गई है' से मेरा तात्पर्य ये है:-
    इस वाक्यांश पर अपने प्रश्न में आपने कानून का सहारा लिया है,
    तो मैं आपको इसी भाषा में बताता हूँ।
    आपको शायद ये नहीं पता है की भारत देश में कानूनन कितने प्रकार के आरक्षण लागु हैं।
    मैं आपको बताता हूँ ताकि आप अपनी कुछ जानकारी बढ़ा सकें:-
    1. Caste based
    2. Management quota
    3. Gender based
    4. Religion based
    5. State of domiciles
    6. Undergraduate colleges
    7. Other criteria:-
    Some reservations are also made for:
    a. Sons/Daughters/Grandsons/Grand daughters of Freedom Fighters.
    b. Physically handicapped.
    c. Sports personalities.
    d. Non-Resident Indians (NRIs) have a small fracton of reserved seats in educational institutions. They have to pay more fees and pay in foreign currency (Note : NRI reservations were removed from IIT in 2003).
    e. Candidates sponsored by various organizations.
    f. Those who have served in the armed forces (ex-serviceman quota).
    g. Dependants of armed forces personnel killed in action.
    h. Repatriates.
    i. Those born from inter-caste marriages.
    j. Reservation in special schools of Government Undertakings /PSUs meant for the children of their employees (e.g. Army schools, PSU schools, etc.).
    k. Paid pathway reservations in places of worship (e.g. Tirupathi Balaji Temple, Tiruthani Murugan (Balaji) temple).
    l. Seat reservation for Senior citizens/ PH in Public Bus transport.


    आपके ही राजस्थान में चंद वर्ष पहले Other Backward Castes (OBCs) के भाई बंधु ने देशव्यापी प्रदर्शन किया था, वे सिर्फ Other Backward Castes (OBCs) के आरक्षण की बात कर रहे थे,
    ना की All Backward Castes (OBCs) के आरक्षण की।
    आपको महामहिम सर्वोच्च न्यायालय का फैसला भी बताता हूँ जो इस प्रदर्शन पर आया था,
    "April 2008
    On 10 April 2008, the Supreme Court of India upheld the law that provides for 27% reservation for Other Backward Castes (OBCs) in educational institutions supported by the Central government, while ruling that the creamy layer among the OBCs should be excluded from the quota."

    महामहिम सर्वोच्च न्यायालय के कुछ और फैसलों का लिंक भी भेज सकता हूँ जिससे आप पूरी तरह से सहमत हो जायेंगे की आजादी के बाद भारत वर्ष के कानून ने जातिगत आरक्षण को मान्यता दी है,
    अब आप मुझे बताइए की महामहिम सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसला दिया उसमें (OBCs) की जगह (ABCs) क्यों नहीं है, या फिर जो प्रदर्शन कर रहे थे वो सिर्फ अपनी जाति के लिए प्रदर्शन कर रहे थे या सभी जातियों के लिए प्रदर्शन कर रहे थे?

    "मीणा" जी सिर्फ (OBCs) को ध्यान में रख कर टिप्पणी ना करिए निष्पक्ष होकर टिप्पणी और लेख लिखिए ताकि अगली पीढ़ी इस आरक्षण रूपी कोढ़ से मुक्त हो सके।

    "मीणा" जी मेरे ब्लॉग पर कॉपी कर के पेस्ट करने की सुविधा नहीं है इसलिए आपको मेरे वाक्यांशों को टाइप करना पड़ा जिसके लिए मुझे खेद है।

    शुभकामनाओं सहित
    सत्यप्रकाश पाण्डेय

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  5. आदरणीय श्री पाण्डेय जी,

    आपने मेरी टिप्पणी का प्रतिउत्तर दिया। जिसके लिये आपका आभार।

    आदरणीय श्री पाण्डेय जी, आपने अपनी टिप्पणी में मेरी जानकारी/ज्ञान बढाने की बात लिखी है, काश आपने ऐसा किया होता, तो मैं आपकी ॠणी होता?

    आदरणीय श्री पाण्डेय जी, मैंने आपसे दो बिन्दुओं पर जानकारी प्रदान करने का आग्रह करने के साथ-साथ निवेदन किया था कि कृपया अपने लेख के वाक्यांशों/निष्कर्षों के आधार, कारण और कानूनी प्रावधानों पर प्रकाश डालने का कष्ट करें।

    आदरणीय श्री पाण्डेय जी, आपने पहले बिन्दु में जो आधार गिनाये हैं, वे न तो संविधान सम्मत हैं और न हीं कानून सम्मत! हाँ जैसा आपने कहा है, वैसी आपकी व्यक्तिगत राय जरूर हो सकती है। या सरकार से आपकी मांग हो सकती है। इसलिये आपकी राय/मांग के अनुसार किसी भी आन्दोलनकारी समूह या वर्ग को आरक्षण की सीमा से ऊपर लिखना मुझे तो किसी भी दृष्टि से न तो नैतिक नजर आता है और न हीं कानून सम्मत! इस बारे में कहना जरूरी समझता हूँ कि हमारे देश के किसी भी कानून में कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है, जिसके आधार पर किसी जाति को आरक्षण की सीमा से ऊपर माना जाने का प्रावधान हो।

    आदरणीय श्री पाण्डेय जी, आपने दूसरे बिन्दु में तो ऐसी बात लिख दी, जिसकी कम से कम मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकता था! आपने अपने विचारों को सुप्रीम कोर्ट के मुख में डाल दिया। कृपा करके मुझे एक भी ऐसा निर्णय किसी भी अदालत का बतलाने का कष्ट करें, जिसमें ओबीसी का मतलब अदर बैकवर्ड कास्ट हो। संविधान में और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों में तथा मण्डल आयोग की रिपोर्ट में ओबीसी का मतलब है अदर बैकवर्ड क्लास। जहाँ आन्दालनकारियों द्वारा की जाने वाली मांग की बात हैं तो वह कोई कानूनी आधार नहीं है। इस देश में कोई खालिस्तान की मांग करता है तो इससे कानून या संविधान में खालिस्तान का अस्तित्व पैदा नहीं हो जाता है?

    आदरणीय श्री पाण्डेय जी, आपने सर्वोच्च न्यायालय के जिस कथित निर्णय का सहारा लिया है, उसका पूर्ण विवरण (साईटेशन) बतलाने का कष्ट करें, जहाँ पर आपके बताये अनुसार ओबीसी का मतलब अदर बेकवर्ड कास्ट लिखा हुआ है?

    आदरणीय श्री पाण्डेय जी, आपने मेरी भाषा में जवाब देने की बात कही है, लेकिन आदरणीय श्री पाण्डेय जी, यह मेरी भाषा नहीं है। मैं तो आपसे अपेक्षा कर रहा था कि वास्तव में आप कुछ ऐसी जानकारी देंगे, जिससे हमारा मार्गदर्शन होगा और आपके ब्लॉग पर लिखे वाक्यांश-सबकी आवाज-की व्यावहारिक प्रमाणिकता सिद्ध होगी।

    आदरणीय श्री पाण्डेय जी, आपने अनेक प्रकार के आरक्षणों की सूची गिनाई है, जिसमें पहला-कास्ट बेस-लिखना असंवैधानिक है। इस सूची में जितने भी आरक्षण गिनाये गये हैं, उनमें से एक भी जातिगत आरक्षण नहीं है और इन सबके बारे में मुझ पूर्व से जानकारी है।

    आदरणीय श्री पाण्डेय जी, मैं फिर से कह रहा हूँ कि संविधान में जातिगत आरक्षण की कोई व्यवस्था या प्रावधान नहीं है। इसलिये संविधान या न्यायालय के निर्णयों को पढे बिना या पढकर समझने की योग्यता हासिल किये बिना लिखे गये आलेख या टिप्पणियाँ-सबकी आवाज-कभी नहीं हो सकती और ऐसे व्यक्तिगत एवं पूर्वाग्रही विचार केवल पाठकों को मार्ग से भटकाने के अलावा कुछ भी नहीं करते। जिनके कारण समाज में वैमनस्यता पैदा होती है।

    आदरणीय श्री पाण्डेय जी, अन्त में एक बात और कि बहुत से अन्य लोगों की भांति लगता है कि आपको भी अजा एवं अजजा का आरक्षण जातिगत आरक्षण नजर आता है। आप चाहें तो आपको मैं सुप्रीम कोर्ट के एकाधिक ऐसे निर्णयों से अवगत करवा सकता हूँ, जिनमें साफ तौर पर कहा गया है कि हमारे देश में और देश के संविधान में जाति आधारित आरक्षण नहीं है।

    शुभाकांक्षी।
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश

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  6. आदरणीय मीणा जी,
    नमस्कार,
    आपसे कुछ और कहना मेरे ख्याल से अब ठीक नहीं है क्योंकि बिना सिर-पैर की बातों का कोई अंत नहीं होता,
    और न ही मेरे पास इतना वक्त है, ब्लॉग लेखन मेरा शौक और खाली समय का सद उपयोग भर है। जिसमें मैं अपने विचारों को लिखता हूँ, आप मेरे विचारों से सहमत या असहमत होने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है।

    आप इसी बात से अंदाजा लगा लीजिये की इस लेख पर अपनी टिप्पणियों के माध्यम से कितने लोग पक्ष में है और कितने विपक्ष में।
    रही बात 'सबकी आवाज' की तो मेरे ख्याल से भारत में लोकतंत्र का राज है और लोकतंत्र का क्या अर्थ है ये तो आपको पता ही होगा।
    मेरी दो टूक बात यही है कि, मैं सिर्फ और सिर्फ शारीरिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से कमजोर लोगों को आरक्षण देने के पक्ष में हूँ, और इसके पक्ष में आपको छोड़कर बाकी 'सबकी आवाज' मुझे सुनाई दे रही है।

    किसी की कही एक बात मुझे याद आ रही है:- 'सोये हुए को सभी जगा सकते हैं पर जगे हुए को कौन जगाये।'
    खैर,
    आप ब्लॉग पर आये और अपने हिसाब से कई जानकारियां दीं, जिसके लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया !!

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  7. आदरणीय मेरा आशय स्वयं को सही या आपको गलत सिद्ध करना कदापि नहीं, बल्कि आपको एक बुद्धिजीवी मानकर सही बातों को सामने लाना भर है।

    मेरा मानना है कि बुद्धिजीवी हमेशा सत्य को स्वीकार करने के लिये तत्पर रहता है। इससे अधिक कुछ भी नहीं।

    वैसे हम आदिवासियों को ऐसी टिप्पणियाँ मिलती रहती हैं। जिनकी हमको आदत है।

    हाँ मैं इतना जरूर कहना चाहता हूँ कि आपके विचारों के समर्थक सोये हुए हो सकते हैं, मैं जागकर सोया हुआ नहीं हूँ।

    जिनके मनोमस्तिष्क पर ऐसे लोगों का प्रभाव हो, जो ओबीसी का मतलब अदर बैकवर्ड कास्ट समझाते हैं, उनकी हालत क्या होगी? ईश्वर सबकी रक्षा करें।

    धन्यवाद।
    शुभाकांक्षी।
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

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  8. आदरणीय आप लिखते हैं कि-

    "रही बात 'सबकी आवाज' की तो मेरे ख्याल से भारत में लोकतंत्र का राज है और लोकतंत्र का क्या अर्थ है ये तो आपको पता ही होगा।"

    मुझे लोकतन्त्र का यह मतलब भी ज्ञात है कि-

    "लोकतन्त्र में सिर गिने जाते हैं, सिर के अन्दर क्या है, ये नहीं देखा जाता है।"

    इसके उपरान्त भी लोकतन्त्र इसलिये जिन्दा है, क्योंकि लोकतन्त्र का वास्तविक अर्थ समझने वाले लोग अभी इस देश में जिन्दा हैं। अन्यथा तो रिश्वत लेने को कभी का बहुमत के आधार पर कानूनी अधिकार घोषित कर दिया गया होता।

    शुभाकांक्षी।
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश

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