यह अवस्था अर्थात् तृप्ति या ऑर्गेज्म तो स्त्री की पुरुष के समक्ष हार या समर्पण का स्वाभाविक प्रतिफल होता है, जबकि ऐसी आधुनिका नारियों का अवचेतन तो इतना रुग्ण हो चुका होता है कि वे पुरुष के समक्ष अपना सबकुछ समर्पित करके हार जाने के बजाय कुछ भी समर्पित नहीं करके सब कुछ पा लेने की लालसा लिये और बिना दिल से जुड़े केवल शरीर का अपनी शर्तों के अनुसार मनचाहा मिलन (संसर्ग) करने में अपनी शान समझती हैं| जिन्हें, उनके तथाकथित प्रेमी भी एक देह से अधिक कुछ नहीं समझते हैं और जो पुरुष सिर्फ देह से जुड़ता है, वह स्त्री को वह सब कभी नहीं दे सकता जो एक स्त्री की प्रकृतिप्रदत्त आकांक्षा होती है|
मेरे शुभचिंतक और समालोचक जिनके विश्वास एवं संबल पर मैं यहाँ लिख पा रहा हूँ!
‘यदि आपका कोई अपना या परिचित पीलिया रोग से पीड़ित है तो इसे हलके से नहीं लें, क्योंकि पीलिया इतना घातक है कि रोगी की मौत भी हो सकती है! इसमें आयुर्वेद और होम्योपैथी का उपचार अधिक कारगर है! हम पीलिया की दवाई मुफ्त में देते हैं! सम्पर्क करें : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, 098750-66111
Showing posts with label ऑर्गेज्म. Show all posts
Showing posts with label ऑर्गेज्म. Show all posts
Wednesday, November 7, 2012
बिना हारे, स्त्री जीत नहीं सकती!
Subscribe to:
Posts (Atom)