मेरे शुभचिंतक और समालोचक जिनके विश्वास एवं संबल पर मैं यहाँ लिख पा रहा हूँ!

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Wednesday, November 7, 2012

बिना हारे, स्त्री जीत नहीं सकती!


यह अवस्था अर्थात् तृप्ति या ऑर्गेज्म तो स्त्री की पुरुष के समक्ष हार या समर्पण का स्वाभाविक प्रतिफल होता है, जबकि ऐसी आधुनिका नारियों का अवचेतन तो इतना रुग्ण हो चुका होता है कि वे पुरुष के समक्ष अपना सबकुछ समर्पित करके हार जाने के बजाय कुछ भी समर्पित नहीं करके सब कुछ पा लेने की लालसा लिये और बिना दिल से जुड़े केवल शरीर का अपनी शर्तों के अनुसार मनचाहा मिलन (संसर्ग) करने में अपनी शान समझती हैं| जिन्हें, उनके तथाकथित प्रेमी भी एक देह से अधिक कुछ नहीं समझते हैं और जो पुरुष सिर्फ देह से जुड़ता है, वह स्त्री को वह सब कभी नहीं दे सकता जो एक स्त्री की प्रकृतिप्रदत्त आकांक्षा होती है|