डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
भारत की आजादी के बाद जम्मू और कश्मीर पर पाकिस्तान की सेना ने कबायलियों के बेश में आक्रमण किया था, जिससे बचाव के लिये वहॉं के तत्कालीन शासक राजा हरिसिंह ने भारत से मदद मांगी| मदद के बदले में भारत की ओर से राजा हरिसिंह के समक्ष कश्मीर का भारत में विलय करने की शर्त रखी गयी, जिसे थोड़ी नानुकर के बाद परिस्थितियों की बाध्यता के चलते कुछ शर्तों के आधार पर स्वीकार कर लिया गया| जिसके चलते भारत में जम्मू एवं कश्मीर के लिये विशेष उपबन्ध किये गये| जिन्हें लेकर आज भी विवाद जारी है| जिस पर चर्चा करना इस आलेख का उद्देश्य नहीं है| विलय समझौते
के तत्काल बाद कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाने के साथ ही, भारत का कानूनी और नैतिक उत्तरदायित्व था कि पाकिस्तान के आक्रमण को विफल करके काबायलियों के वेश में कश्मीर में प्रवेश कर चुकी पाकिस्तानी सेना को वापस खदेड़ा जाता और कश्मीर के सम्पूर्ण भू-भाग को खाली करवाया जाता, लेकिन तत्कालीन केन्द्रीय सरकार के मुखिया रहे पं.जवाहर लाल नेहरू की अदूरदर्शी नीतियों के चलते न मात्र कश्मीर को तत्काल खाली नहीं करवाया जा सका, बल्कि कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले जाकर अकारण ही आन्तरिक मसले को बहुपक्षीय और अन्तर्राष्टीय मुद्दा बना दिया गया|
के तत्काल बाद कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाने के साथ ही, भारत का कानूनी और नैतिक उत्तरदायित्व था कि पाकिस्तान के आक्रमण को विफल करके काबायलियों के वेश में कश्मीर में प्रवेश कर चुकी पाकिस्तानी सेना को वापस खदेड़ा जाता और कश्मीर के सम्पूर्ण भू-भाग को खाली करवाया जाता, लेकिन तत्कालीन केन्द्रीय सरकार के मुखिया रहे पं.जवाहर लाल नेहरू की अदूरदर्शी नीतियों के चलते न मात्र कश्मीर को तत्काल खाली नहीं करवाया जा सका, बल्कि कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले जाकर अकारण ही आन्तरिक मसले को बहुपक्षीय और अन्तर्राष्टीय मुद्दा बना दिया गया|
मेरे मतानुसार इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती कि राजा हरिसिंह ने पाकिस्तानी सैनिकों को खेदड़कर कश्मीर को मुक्त करवाने के मूल मकसद से ही भारत से मदद मांगी थी, जिसके बदले में वे कश्मीर का भारत में विलय करने को राजी हुए थे| तत्कालीन नेतृत्व की कमजोरी के चलते कश्मीर विलय की अन्य शर्तें तो लागू कर दी गयी, लेकिन पाकिस्तान आज भी वहीं का वहीं अनाधिकृत रूप से काबिज है| जो सामरिक दृष्टि से भारत के लिये बहुत बड़ी समस्या बन चुका है| इसके बावजूद हम बड़े गर्व से कहते हैं कि ‘‘सम्पूर्ण कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और रहेगा|’’ जबकि कड़वी सच्चाई यह है कि ‘‘१५ अगस्त, १९४७ के बाद से आज तक सम्ूपर्ण कश्मीर एक पल को भी भारत का अभिन्न हिस्सा नहीं रहा|’’ हॉं सम्पूर्ण कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा हो सकता था, लेकिन हम उसे अपना बनाने में नाकमयाब रहे| यही नहीं हमने एक बहुत बड़ी गलती यह की, कि पाकिस्तानी आक्रामकों के कब्जे से जो कश्मीर का जो हिस्सा नहीं छुड़ाया जा सका, उस हिस्से को हम अंग्रेजी में ‘पाक ऑक्यूपाईड’ और हिन्दी में ‘पाक अधिकृत’ लिखते आये हैं, जो मेरी नजर में उपयुक्त शब्दावलि (हिन्दी में) नहीं हैं| कम से कम हिन्दी में इसे ‘पाक अधिकृत’ के बजाय ‘पाक काबिज’ लिखा जाना चाहिये| अभी भी इस गलति को सुधारा जा सकता है|
‘पाक अधिकृत’ वाक्यांश को नयी पीढी जब पढती है तो उसे ऐसा आभास होता है, मानों कि कश्मीर के एक हिस्से पर पाकिस्तान का ‘विधिक अधिकार’ है, क्योंकि अंग्रेजी के ‘ऍथोराइज’ शब्द को भी हिन्दी में ‘अधिकृत’ ही लिखा जाता है| मुझे नहीं पता कि पाठकों को मेरे विवेचन से सहमति होने में कैसा लगेगा, लेकिन विद्वान पाठकों के समक्ष मेरा विचार प्रस्तुत है| जिससे मेरी सोच की व्यावहारिकता और प्रासंगिकता के बारे में आगे की दिशा तय हो सके| विद्वान पाठकों के अमूल्य विचारों की अपेक्षा रहेगी|
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी, केवल मेरे लिये ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ब्लॉग जगत के लिये मार्गदर्शक हैं. कृपया अपने विचार जरूर लिखें!