डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
पॉंच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में किसका ऊंट किस करवट बैठेगा, इस बात का सही-सही पता तो चुनाव परिणामों के बाद ही चलेगा, लेकिन हर ओर उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव परिणामों के बारे में सर्वाधिक चर्चा हो रही है| हो भी क्यों नहीं, जब दिल्ली की सत्ता का किला उत्तर प्रदेश के रास्ते ही फतह किया जा सकने की सारी सम्भावनाएँ हैं|
यूपीए की केन्द्रीय सरकार को उत्तर प्रदेश चुनावों से ठीक पहले आबीसी के अन्दर अल्पसंख्यकों को अलग से आरक्षण प्रदान करने की बात याद आ रही है| यही नहीं भाजपा को भी उत्तर प्रदेश की सत्ता के लिये राम का नाम और राम मन्दिर याद आने लगा है| यही नहीं भाजपा और भाजपा से सम्बद्ध संगठनों को पहली बार अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण की चिन्ता भी सताने लगी है| जबकि सामान्यत: ये सारे कथित राष्ट्रवादी, हिन्दूवादी और भारतीय संस्कृति के महारक्षक हर राजनैतिक और गैर-राजनैतिक मंच से सामाजिक न्याय की संवैधानिक अवधारणा के विरोध में बयान जारी करते रहते हैं|
इसी सोच के चलते इन लोगों ने जाति आधारित जनगणना का कड़ा विरोध करने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी| जिसकी भी असली वजह है, कि ये महामहिम राष्ट्रवादी लोग चाहते ही नहीं कि इस देश के सभी वर्गों और सभी जातियों के लोगों को उनकी जनसंख्या के अनुसार सत्ता, प्रशासन और संसाधनों में संवैधान की मूल भावना के अनुसार समान हिस्सेदारी मिले| ये लोग चाहते हैं कि अन्य पिछड़ा वर्ग सहित, सभी आरक्षित वर्गों की सही-सही जनसंख्या का देश की सरकार को पता ही नहीं चलना चाहिये| अन्यथा इनके पास कोर्ट को भ्रमित करने के सारे रास्ते बन्द हो जायेंगे|
यही नहीं इन सबकी नजर में सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ों को भी यदि बहुत जरूरी हो तो आरक्षण देने का प्रावधान केवल और केवल आर्थिक आधार पर ही नजर आता है और दूसरी ओर आर्थिक रूप से पिछड़े अन्य पिछड़ा वर्ग को उच्च शिक्षा में आरक्षण प्रदान करने पर ये ही लोग गला फाड़-फाड़ कर उसका विरोध करने के लिये सड़कों पर उतर आते हैं| आज इन लोगों को भी ओबीसी के आरक्षण में से साढे चार फीसदी हिस्सा अल्पसंख्यकों को दे देने पर, महान भारत राष्ट्र के खण्डित होने के खतरे सहित, ओबीसी के साथ कथित रूप से हो रहे घोर अन्याय के कारण हार्ट अटैक आने जैसी वेदना हो रही है|
जबकि कड़वी सच्चाई यही है कि अल्पसंख्यकों की केवल और केवल उन्हीं पिछड़ी जातियों को ही साढे चार फीसदी आरक्षण प्रदान किया गया है, जो ओबीसी वर्ग में पूर्व से ही शामिल हैं और जिनका समानुपातिक दृष्टि से साढे चार फीसदी हक ओबीसी के सत्ताईस फीसदी आरक्षण में बनता है|
यही नहीं ऐसा निर्णय करने से पूर्व भारत सरकार ने हर प्रकार से अध्ययन और जानकारी एकत्रित करके इस बात को जॉंचा-परखा है कि अल्पसंख्यकों की जातियों को ओबीसी वर्ग में कितनी हिस्सेदारी मिल रही है| जिसके बाद ही अलग से आरक्षण प्रदान करने का निर्णय लिया गया है| यह अलग बात है कि यह निर्णय राजनैतिक लाभ पाने के लिये पॉंच राज्यों के विधानसभा चुनावों से ठीक पूर्व लिया गया है| जिसे संवैधानिक भावना के अनुकूल नहीं माना जा सकता| इस सबके उपरान्त भी लगातार आरक्षण और आरक्षित वर्गों के हितों का विरोध करने को ही राष्ट्रहित बतलाने वाली भाजपा और भाजपा के अनुसांगिक संगठनों को भारत सरकार के इस निर्णय का विरोध करने का कोई औचित्य समझ में नहीं आता है|
जहॉं तक धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों को आरक्षण प्रदान करने की बात है तो ये बात तो प्रारम्भ से ही लागू की जाती रही है| ओबीसी की सूची में इस्लाम से सम्बन्धित जातियों को शामिल किया गया है| यही नहीं अजा एवं अजजा वर्गों की सूचियों में भी किस-किस धर्म की कौन-कौन सी धर्म-परिवर्तित जातियों को आरक्षण प्राप्त होगा और किस-किस धर्म की धर्म-परिवर्तित जातियों को आरक्षण प्राप्त नहीं होगा| इस बारे में स्पष्ट नीति बनाकर लागू की हुई है| जिसका आज तक इसी आधार पर विरोध क्यों नहीं किया गया? इस बात पर भी चर्चा होनी चाहिये| भाजपा और भाजपा के अनुसांगिक संगठनों को क्या यह नहीं पता कि आदिवासियों के सत्तर फीसदी हक को केवल कुछ मुठ्ठीभर ईसाई आदिवासी छीन रहे हैं| इस बारे में एक भी आवाज सामने नहीं आती है| क्योंकि निरीह आदिवासियों के बारे में भाजपा और उससे सम्बद्ध लोग क्योंकर अपनी ऊर्जा खपाने लगे?
इसी सन्दर्भ में यह बात भी स्पष्ट कर देना जरूरी है कि वेब मीडिया सहित अनेक मंचों पर यह सवाल उठाया जाता रहा है कि आने वाले दिनों में यदि अजा एवं अजजा वर्गों में शामिल अल्पसंख्यक जातियों को भी अलग से आरक्षण प्रदान किया जायेगा, तब अजा एवं अजजा के प्रतिनिधियों, कार्यकर्ताओं, विचारकों और बुद्धिजीवियों का क्या विचार (तर्क) होगा| मैं इस बारे में यहॉं पर यह कहना बेहद जरूरी समझता हूँ कि जिन मानदण्डों और जिन पैमानों के आधार पर ओबीसी वर्ग की सूची में शामिल अल्पसंख्यक वर्ग की जातियों को अलग से साढे चार फीसदी आरक्षण दिया गया है| यदि उन्हीं सब मानदण्डों और पैमानों पर अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि अजा एवं अजजा वर्गों में शामिल अल्पसंख्यक धर्मावलम्बियों की जातियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है तो अवश्य ही उन्हें उनकी जनसंख्या के अनुपात में अलग से ‘आरक्षण के अन्दर आरक्षण’ दिया ही जाना चाहिये| केवल यही नहीं-अजा एवं अजजा वर्ग में शामिल हिन्दू या अहिंदू या अन्य धर्मावलम्बी जातियों में भी विभाजन होना चाहिये| जिससे सभी जातियों और समूहों को संविधान की सामाजिक न्याय की मंसा के अनुरूप सत्ता और प्रशासन में अपने-अपने प्रतिनिधि भेजने का अवसर मिल सकें| आखिर हमें, हमारे संविधान की भावना का आदर तो करना ही होगा|
बेशक यह सब हमें सेपरेट इलेक्ट्रोल के हक को मोहनदास कर्मचन्द गॉंधी द्वारा धोखे से छीने जाने के कारण सहना और करना पड़ रहा है| अन्यथा यदि डॉ. भीमराव अम्बेड़कर की सैपरेट इलेक्ट्रोल की न्यायसंगत मांग को मानकर के भी गॉंधी द्वारा छलपूर्वक देश पर पूना पैक्ट नहीं थोपा गया होता तो सरकारी सेवाओं में और सरकारी शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण नाम की कोई अवधारणा भारत में होती ही नहीं! गॉंधी की विरासत को संभालते हुए हमें एम के गॉंधी के निष्ठुर और हृदयहीनता के पिरचायक धोखेभरे निर्णयों को भी तो सहना ही होगा|
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