पॉंच राज्यों के चुनाव परिणामों से जो सन्देश निकलकर सामने आया है, उसके ये संकेत तो स्पष्ट रूप से प्रकट हो ही चुके हैं कि मतदाता ने केवल कॉंग्रेस, भाजपा और बसपा को ही धूल नहीं चटायी है, बल्कि इसके साथ-साथ अन्ना हजारे और रामदेव को भी मटियामेट कर दिया है। जो इस देश के भ्रष्टाचार से त्रस्त आम लोगों के लिये दु:खद बात है। क्योंकि पूरे देश में सेवारत हजारों सच्चे सामाजिक कार्यकर्ताओं के दशकों के सतत और कड़े प्रयासों से भ्रष्टाचार जो वास्तव में देशभर में मुद्दा बन चुका था, उस मुद्दे का अन्ना और बाबा ने सत्यानाश कर दिया है। इन्होंने भ्रष्टाचार की लड़ाई को कई वर्ष पीछे धकेल दिया है।
मणीपुर, गोआ, पंजाब, उत्तराण्ड और उत्तर प्रदेश सहित 5 राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव परिणामों ने इलेक्ट्रॉलिक मीडिया, प्रिंट मीडिया, स्वतंत्र पत्रकार और राजनेताओं सहित सभी को चौंका दिया है। सभी के अंदाज और कयासों को फैल कर दिया है। जीतने वाले और हारने वाले दलों को प्राप्त परिणामों ने सकते में डाल दिया है। जोड़तोड़ के दौर में जहॉं मणीपुर में लगातार तीसरी बार कॉंग्रेस का सत्ता में आना अनहोनी घटना लगती है, वहीं चालीस वर्ष बाद किसी भी दल का लगातार दुबारा सत्ता में आना पंजाब के मतदाता का ही कमाल है। उत्तराखण्ड में भाजपा को दण्डित करते समय मतदाता ने कॉंग्रेस को भी साफ संकेत दिया है कि कॉंग्रेस किसी मुगालते में नहीं रहे! मतदाता की नजर में भाजपा और कॉंग्रेस दोनों ही सत्ता के योग्य नहीं हैं। ये अलग बात है कि गणितीय समीकरणों, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता में राजनैतिक आस्था के कारण उत्तराखण्ड की सत्ता कॉंग्रेस के हिस्से में आ गयी है। आज के युग में इसी को लोकतन्त्र का गठजोड़ीय चमत्कार कहा जाता है। गोआ में भाजपा की ताजपोशी स्वयं भाजपा के नेताओं के लिये भी अप्रत्याशित बतायी जा रही है।
उपरोक्त चार राज्यों के मतदाता ने एक बार फिर से सत्ता की धुरी को हिलाकर और घुमाकर सत्ताधीशों को बतला दिया है कि वे किसी भी मुगालते में नहीं रहें! जनता जो चाहेगी वही होने वाला है। जिसका परिणाम सबके सामने है, लेकिन उत्तर प्रदेश विधानसभा के परिणामों ने सभी राजनीतिक पण्डितों के छक्के छुड़ा दिये हैं। सारे एग्जिट पोल और प्रिइलेक्शन पोलों के परिणामों की पोल खोल कर रख दी। उत्तर प्रदेश के वोटर ने तो राष्ट्रीय दलों को तो अपनी औकात बतला ही दी है, साथ ही डॉ. अम्बेड़कर तथा कांशीराम के आदर्शों को तिलांजलि देकर भी स्वयं को दलितों की मसीहा कहाने वाली मायावती के जातीय गणित तथा निजी अहंकार को भी बेरहमी से चकनाचूर कर दिया है।
उत्तर प्रदेश में कहने को तो समाजवादी पार्टी की जीत हुई है। मुलायम सिंह, आजम खान और अखिलेश यादव की जीत हुई है, लेकिन गहराई में जाकर देखा जाये तो उत्तर प्रदेश में सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा की जमीनी जरूरत को मतदाता ने पुष्ट किया है। ऐसा लगता है, मानों मण्डल आयोग के बाद की राजनैतिक धारा को उत्तर प्रदेश की जनता ने फिर से सही दिशा में मोड़ दिया है। इसकी दुसरे दौर की शुरूआत बिहार से हो चुकी थी, लेकिन साम्प्रदायिक कही जाने वाली और संघ के इशारों पर शासन चलाने के आरोप झेलने वाली भाजपा के साथ गठजोड़ करके सरकार चलाने के कारण नीतीश कुमार की जीत को शुरू में सीधे तौर पर सामाजिक न्याय एवं धर्म निरपेक्षता की विजय नहीं माना गया था। यद्यपि नीतीश कुमार की बिहार में दुबारा ताजपोशी करके बिहार के मतदाता ने नीतीश कुमार को साफ तौर पर यह संकेत दे दिया है कि उन्हें बिहार की सत्ता भाजपा के सहयोग के कारण नहीं, बल्कि जनतादल द्वारा मण्डल कमीशन को लागू किये जाने के बाद देश के जिस बड़े वर्ग को आत्मसम्मान की अनुभूति हुई है, उस वर्ग के सम्मान की रक्षा के लिये सत्ता प्राप्त हुई है। जिसे नीतीश को संभालना होगा। उत्तर प्रदेश में भी साफ तौर पर यही संकेत दिख रहा है।
मुलायम सिंह की विजय धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय और मण्डल कमीशन के बाद की राजनीतिक जमीन में जनतादल द्वारा बोयी गयी फसल का सुफल है। जिसे मुलायम, आजम और अखिलेश ने बेहतर तरीके से काटा है। समाजवादी पार्टी को आने वाले पॉंच वर्षों में इस नयी, जमीनी हकीकत और बहुसंख्यक दबे-कुचले भारतीय मतदाता की राजनीतिक समझ को केवल समझना ही नहीं होगा, अपितु इसे अपनी संवैधानिक शक्ति और राजनैतिक कौशल से सींचना भी होगा। उत्तर प्रदेश विधानसभा के ताजा परिणाम इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि अब मतदाता को समझ में आ गया है, कि हजारों वर्षों से देश और देश के बहुसंख्यकों का क्रूरतापूर्वक शोषण करने वाला दो फीसदी वर्ग, देश का और देश के बहुसंख्यकों का शुभचिंतक नहीं है। अत: इस वर्ग को सत्ता से उठाकर फेंक दिया जाये और जिन लोगों का ये देश है, उन्हीं लोगों को उनके सम्पूर्ण हक, पूर्ण सम्मान और आदर के साथ मिलें।
यहॉं पर हमें ये नहीं भूलना चाहिये कि दो फीसदी वर्ग द्वारा पोषित भ्रष्ट और अकर्मण्य नौकरशाही इस प्रकार के देश-हितकारी प्रयासों को कभी भी आसानी से सफल नहीं होने देगी। जिसके लिये नीतीश कुमार और मुलायम सिंह को नौकरशाही पर कूटनीतिक तरीके से न मात्र लगाम लगानी होगी, बल्कि नौकरशाही को इस बात का अहसास भी करवाना होगा कि नौकरों का काम जनता की सेवा करना है, न कि जनता का शोषण करना!
यद्यपि अभी से कुछ कहना बहुत जल्दबाजी होगी, लेकिन फिर भी विधानसभा चुनाव परिणामों के सन्दर्भ में यदि 2014 के लोकसभा चुनावों की तैयारी की बात करें तो परिणाम मिलेजुले दिख रहे हैं। इससे पूर्व राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव होने हैं। जहॉं पर स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक हैं। जहॉं एक ओर गहलोत सरकार में भ्रष्ट नौकरशाही को विश्वस्त मानकर, नौकरशाही के भरोसे ही सत्ता का संचालन किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर लगता है मनो मध्य प्रदेश में नौकरशाही को लूट में सीधे-सीधे राझीदार बना लिया गया है। ऐसे हालात में बिना कुछ किये कॉंग्रेस और भाजपा आलाकमान द्वारा मतदाता को बेवकूफ समझने वाले प्रान्तीय राजनेताओं को आगामी विधानसभा चुनावों में अपनी जमीनी हकीकत से दो-चार होने से बचा पाना बहुत मुश्किल होगा।
अन्त में एक और महत्वूपर्ण बात पॉंच राज्यों के चुनाव परिणामों से जो सन्देश निकलकर सामने आया है, उसके ये संकेत तो स्पष्ट रूप से प्रकट हो ही चुके हैं कि मतदाता ने केवल कॉंग्रेस, भाजपा और बसपा को ही धूल नहीं चटायी है, बल्कि इसके साथ-साथ अन्ना हजारे और रामदेव को भी मटियामेट कर दिया है। जो इस देश के भ्रष्टाचार से त्रस्त आम लोगों के लिये दु:खद बात है। क्योंकि पूरे देश में सेवारत हजारों सच्चे सामाजिक कार्यकर्ताओं के दशकों के सतत और कड़े प्रयासों से भ्रष्टाचार जो वास्तव में देशभर में मुद्दा बन चुका था, उस मुद्दे का अन्ना और बाबा ने सत्यानाश कर दिया है। इन्होंने भ्रष्टाचार की लड़ाई को कई वर्ष पीछे धकेल दिया है।
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