मेरे शुभचिंतक और समालोचक जिनके विश्वास एवं संबल पर मैं यहाँ लिख पा रहा हूँ!

यदि आपका कोई अपना या परिचित पीलिया रोग से पीड़ित है तो इसे हलके से नहीं लें, क्योंकि पीलिया इतना घातक है कि रोगी की मौत भी हो सकती है! इसमें आयुर्वेद और होम्योपैथी का उपचार अधिक कारगर है! हम पीलिया की दवाई मुफ्त में देते हैं! सम्पर्क करें : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, 098750-66111

Wednesday, February 26, 2014

मीना, मीणा, मैना, मैणा, मेंना, मैंणा आदि सभी पर्यायवाची शब्द

जब पहली बार जिस किसी ने भी ‘मीणा’ जाति को जनजातियों की सूची में शामिल करने के लिए किसी बाबू या किसी पीए या पीएस को आदेश दिये तो उसने ‘मीणा’ शब्द को अंग्रेजी में Meena के बजाय Mina लिखा और इसी Mina नाम से विधिक प्रक्रिया के बाद ‘मीणा’ जाति का जनजाति के रूप में प्रशासनिक अनुमोदन हो गया। लेकिन संवैधानिक रूप से परिपत्रित करने से पूर्व इसे हिन्दी अनुवाद हेतु राजभाषा विभाग को भेजा गया तो वहॉं पर Mina शब्द का शब्दानुवाद ‘मीना’ किया गया जो अन्तत: जनजातियों की सूची में शामिल होकर जारी हो गया। वैसे यह भी विचारणीय है कि मीना और मीणा दोनों शब्दों के लिये तकनीकी रूप से Mina/Meena दोनों ही सही शब्दानुवाद हैं, क्योंकि ‘ण’ अक्षर के लिये सम्पूर्ण अंग्रेजी वर्णमाला में कोई प्रथक अक्षर नहीं है।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

‘मीणा’ जनजाति के बारे में तथ्यात्मक जानकारी रखने वाले और जनजातियों के बारे में बिना पूर्वाग्रह के अध्ययन और लेखन करने वाले इस बात को बखूबी जानते हैं कि ‘मीणा’ अबोरिजनल भारतीय (Aboriginal Indian) जनजातियों में से प्रमुख जनजाति है। फिर भी कुछ पूर्वाग्रही और दुराग्रही लोगों की ओर से ‘मीणा’ जनजाति को ‘मीणा’ एवं ‘मीना’ दो काल्पनिक जातियों में बांटने का कुचक्र चलाया जा रहा है। इन लोगों को ये ज्ञात ही नहीं है कि राजस्थान में हर दो कोस पर बोलियॉं बदल जाति हैं। इस कारण एक ही शब्द को अलग-अलग क्षे़त्रों में भिन्न-भिन्न मिलती जुलती ध्वनियों में बोलने की आदिकाल से परम्परा रही है। जैसे-
गुड़/गुर, कोली/कोरी, बनिया/बणिया, बामन/बामण, गौड़/गौर, बलाई/बड़ाई, पाणी/पानी, पड़ाई/पढाई, गड़ाई/गढाई, रन/रण, बण/बन, वन/वण, कन/कण, मन/मण, बनावट/बणावट, बुनाई/बुणाई आदि ऐसे असंख्य शब्द हैं, जिनमें स्वाभाविक रूप से जातियों के नाम भी शामिल हैं। जिन्हें भिन्न-भिन्न क्षे़त्रों और अंचलों में भिन्न-भिन्न तरीके से बोला और लिखा जाता है।
इसी कारण से राजस्थान में ‘मीणा’ जन जाति को भी केवल मीना/मीणा ही नहीं बोला जाता है, बल्कि मैना, मैणा, मेंना, मैंणा आदि अनेक ध्वनियों में बोला/पुकारा जाता रहा है। जिसके पीछे के स्थानीय कारकों को समझाने की मुझे जरूरत नहीं हैं। फिर भी जिन दुराग्रही लोगों की ओर से ‘मीना’ और ‘मीणा’ को अलग करके जो दुश्प्रचारित किया जा रहा है, उसके लिए सही और वास्तविक स्थिति को समाज, सरकार और मीडिया के समक्ष उजागर करने के लिये इसके पीछे के मौलिक कारणों को स्पष्ट करना जरूरी है।

यहॉं विशेष रूप से यह बात ध्यान देने की है कि वर्ष 1956 में जब ‘मीणा’ जाति को जनजातियों की सूची में शामिल किया गया था और लगातार राजभाषा हिन्दी में काम करने पर जोर दिये जाने के बाद भी आज तक प्रशासन में अंग्रेजी का बोलबाला है। जिसके चलते छोटे बाबू से लेकर विभाग के मुखिया तक सभी पत्रावलि पर टिप्पणियॉं अंग्रेजी में लिखते हैं। जिसके चलते आदेश और निर्णय भी अंग्रेजी में ही लिये जाते हैं। हॉं राजभाषा हिन्दी को कागजी सम्मान देने के लिये ऐसे आदेशों के साथ में उनका हिन्दी अनुवाद भी परिपत्रित किया जाता है। जिसे निस्पादित करने के लिये केन्द्र सरकार के तकरीबन सभी विभागों में राजभाषा विभाग भी कार्य करता है। राजभाषा विभाग की कार्यप्रणाली अनुवाद या भावानुवाद करने के बजाय शब्दानुवाद करने पर ही आधारित रहती है। जिसके कैसे परिणाम होते हैं, इसे मैं एक उदाहरण से समझाना चाहता हूँ। 

मैंने रेलवे में करीब 21 वर्ष सेवा की है। रेलसेवा के दौरान मैंने एक अधिकारी के अंग्रेजी आदेश को हिन्दी अनुवाद करवाने के लिये राजाभाषा विभाग में भिजवाया, वाक्य इस प्रकार था-'10 minute, Loco lost on graph' इस वाक्य का रेलवे की कार्यप्रणली में आशय होता है कि ‘रेलवे इंजिन के कारण रेलगाड़ी को दस मिनिट का विलम्ब हुआ।’ लेकिन राजभाषा विभाग ने इस वाक्य का हिन्दी अनुवाद किया ‘‘10 मिनट, लोको ग्राफ पर खो गया।’’ इसे शब्दानुवाद का परिणाम या दुष्परिणाम कहते हैं। इसी प्रकार से एक बार एक अंग्रेजी पत्र में भरतपुर स्थित Keoladeo (केवलादेव) अभ्यारण (इसे भी अभ्यारन भी लिखा/बोला जाता है) शब्द का उल्लेख था, जिसका राजभाषा विभाग ने हिन्दी अनुवाद किया ‘‘केओलादेओ’।

मुझे अनुवाद प्रणाली पर इसलिये चर्चा करनी पड़ी, क्योंकि जब पहली बार जिस किसी ने भी ‘मीणा’ जाति को जनजातियों की सूची में शामिल करने के लिए किसी बाबू या किसी पीए या पीएस को आदेश दिये तो उसने ‘मीणा’ शब्द को अंग्रेजी में Meena के बजाय Mina लिखा और इसी Mina नाम से विधिक प्रक्रिया के बाद ‘मीणा’ जाति का जनजाति के रूप में प्रशासनिक अनुमोदन हो गया। लेकिन संवैधानिक रूप से परिपत्रित करने से पूर्व इसे हिन्दी अनुवाद हेतु राजभाषा विभाग को भेजा गया तो वहॉं पर Mina शब्द का शब्दानुवाद ‘मीना’ किया गया जो अन्तत: जनजातियों की सूची में शामिल होकर जारी हो गया। वैसे यह भी विचारणीय है कि मीना और मीणा दोनों शब्दों के लिये तकनीकी रूप से Mina/Meena दोनों ही सही शब्दानुवाद हैं, क्योंकि ‘ण’ अक्षर के लिये सम्पूर्ण अंग्रेजी वर्णमाला में कोई प्रथक अक्षर नहीं है।

चूँकि उस समय (1956 में) आदिवासियों का नेतृत्व न तो इतना सक्षम था और न ही इतना जागरूक था कि वह इसे जारी करते समय सभी पर्याय वाची शब्दों के साथ उसी तरह से जारी करवा पाता, जैसा कि गूजर जाति के नेतृत्व ने गूजर, गुर्जर, गुज्जर, के रूप में जारी करवाया है। यही नहीं आज तक जो भी आदिवासी राजनेता रहे हैं, उन्होंने भी इस पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया और ‘मीणा’ एवं ‘मीना’ दोनों शब्द चलते रहे, क्योंकि व्यक्तिगत रूप से हर कोई इस बात से वाकिफ रहा कि इन दोनों शब्दों का वास्तविक मतलब एक ही है, और वो है-‘‘मीणा जनजाति’’, जिसे अंग्रेजी में Meena लिखा जाता है। अब जबकि कुछ असन्तोषियों या प्रचारप्रेमियों को ‘मीणा’ जन जाति की सांकेतिक प्रगति से पीड़ा हो रही है तो उनकी ओर से ये गैर-जरूरी मुद्दा उठाया गया है। जिसका सही समाधान प्रारम्भ में हुई त्रुटि को ठीक करके ही किया जा सकता है।

-लेखक : भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष, जर्नलिस्ट्स, मीडिया एण्ड राईटर्स वैलफेयर एशोसिएशन के नेशलन चेययरमैन, प्रेसपालिका (पाक्षिक) के सम्पादक हैं। ऑल इण्डिया ट्राईबल रेलवे एम्पलाईज एशोसिएशन के संस्थापक व राष्ट्रीय अध्यक्ष और अजा एवं अजजा के अखिल भारतीय परिसंघ के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव रह चुके हैं। इसके अलावा लेखक को लेखन एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये एकाधिक राष्ट्रीय सम्मानों से विभूूषित भी किया जा चुका है।-98750-66111

1 comment:

  1. Aap ka kehna bilkul sahi h lekin humare samaj k neta central government ki tribal ministry ko is baat k saboot dene ki jagah sirf sadko pe utar k aandolan karne ki hi baat kyu kar rhe hn or humare samaj k buddhijivi is maamle se judhe praman kendra or rajya sarkar ko kyu nahi dete, sarkar humare paksh me court me majboot dalile dengi ye kyu maan k bethe hn.. agar sarkar ki mansha meena jati k hito ki raksha karne ki hoti to itna bawal hi nhi uthta

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी, केवल मेरे लिये ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ब्लॉग जगत के लिये मार्गदर्शक हैं. कृपया अपने विचार जरूर लिखें!