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Friday, June 13, 2014

भ्रष्टाचारियों को बचाने को प्रतिबद्ध राजस्थान सरकार

तथाकथित प्रचलित कमीशन रूपी रिश्‍वत के विभाजन की प्रक्रिया के अनुसार कनिष्ठ व सहायक अभियन्ताओं को ठेकेदारों द्वारा कमीशन सीधे नगद भुगतान किया जाता है, जबकि सभी कार्यपालक अभियन्ताओं द्वारा अपने-अपने अधीन के निर्माण कार्यों को कराने वाले कनिष्ठ व सहायक अभियन्ताओं से संग्रहित करके समस्त कमीशन को समय-सयम पर मुख्य अभियन्ता को पहुँचाया जाता रहता है। मुख्य अभियन्ता अपना हिस्सा काटने के बाद शेष राशि को अपने विभाग के विभागाध्यक्ष/ एमडी/सीएमडी/सचिव (ये सभी सामान्यत: आईएएस ही होते हैं) को पहुँचाते हैं। जिसमें से सभी अपना हिस्सा रखने के बाद निर्धारित राशि विभाग के मंत्री को पार्टी फण्ड के नाम पर भेंट कर दी जाती है। इस प्रकार सवा सौ करोड़ रुपये के कार्य में से पच्चीस करोड़ रुपये का विभाजन तो बिना किसी व्यवधान के आसानी से कमीशन के रूप में चलता रहता है। ठेकेदार को भी इसे अदा करने में कोई दिक्कत नहीं आती है। क्योंकि उसे कार्य केवल सौ करोड़ का ही करना होता है और पच्चीस करोड़ का कमीशन भुगतान करने की अलिखित शर्त पर ही कार्य मिलता है। लेकिन समस्या तब उत्पन्न होती है, जबकि आमतौर पर कुछ अति लालची/चालाक मुख्य अभियन्ता या विभाग प्रमुख, मंत्री के नाम पर सवा सौ करोड़ के कार्य में से पच्चीस करोड़ के बजाय चालीस-पचास करोड़ रुपये की राशि को कमीशन के रूप में प्राप्त करने के लिये नीचे के अभियन्ताओं पर दबाव बनाते हैं।
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

राजस्थान सरकार ने राज्य के दो दर्जन से अधिक भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों अर्थात जनता के नौकरों अर्थात् लोक सेवकों पर जनहित को दरकिनाकर करते हुए दरियादिली दिखायी है। ये सभी लोक सेवक किसी न किसी गैर कानूनी कार्य या गलत कार्य को करते हुए या जनहित को नुकसान पहुँचाते हुए या राज्य के खजाने या जनता को लूटते हुए रिश्‍वत लेते रंगे हाथ पकड़े गये थे। जिन्हें बाकायदा गिरफ्तार भी किया गया और ये जेल में भी बन्द रहे थे। राज्य सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने कड़ी मेहनत करके इन सभी के खिलाफ पर्याप्त सबूत जुटाकर मामले को अदालत में प्रस्तुत करके इन्हें दोषी सिद्ध करने का सराहनीय साहस दिखाने का बीड़ा उठाया, लेकिन भय, भूख और भ्रष्टाचार को समाप्त करके राम राज्य की स्थापना करने को प्रतिबद्ध भाजपा की राजस्थान सरकार ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को कह दिया है कि सरकार की नजर में इन लोक सेवकों ने कोई गलत काम नहीं किया। अत: इनके खिलाफ कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।

आये दिन इस प्रकार के वाकये केवल राजस्थान में ही नहीं, बल्कि हर राज्य में और हर पार्टी की सरकार द्वारा अंजाम दिये जाते रहते रहते हैं। आम जनता समाचार-पत्रों में इस प्रकार के समाचार पढ कर अपना सिर नौचने के अलावा कुछ नहीं कर सकती है। लेकिन कहीं न कहीं मन में यह सवाल जरूर उठता है कि सरकार द्वारा भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिये इस प्रकार के मनामने निर्णय क्यों लिये जाते हैं? सरकार भ्रष्ट लोक सेवकों को क्यों बचाती रहती है या भ्रष्टाचारियों को क्यों संरक्षण प्रदान करती है? करोड़ों देशवासियों के मन में कौंधते इसी प्रकार के सवालों का यहॉं पर उत्तर तलाशने का प्रयास किया गया है।

तथाकथित रूप से सर्वविदित तथ्य यह है कि सरकारी महकमे में नीचे से ऊपर तक हर एक कार्य के निष्पादन में अफसरों की भागीदारी होती है। आजादी के पूर्व से चली आयी इस अलिखित तथाकथित परम्परा का निर्वाह बहुत ईमानदारी से किया जाता है। जनहित का कार्य गुणवत्ता और ईमानदारी के साथ पूरा हो या न हो लेकिन कमीशन रूपी रिश्‍वत का विभाजन पूर्ण ईमानदारी से अवश्य किया जाता है। इसमें किसी भी प्रकार की कोताई या लेट लतीफी बर्दाश्त नहीं की जाती है। 

इस तथाकथित बेईमानी की ईमानदार प्रक्रिया को समझने के लिये हम किसी भी सरकार के किसी भी इंजीनियरिंग विभाग के एक उदाहरण से आसानी से समझ सकते हैं। माना कि किसी सिविल इंजीनियरिंग विभाग में कोई निर्माण कार्य करवाना है तो उस कार्य का अनुमानित लागत का प्रपत्र, जिसे एस्टीमेट कहा जाता है, उस क्षेत्र के कनिष्ठ अभियन्ता द्वारा बनाकर सहायक अभियन्ता, कार्यपालक अभियन्ता, अधीक्षण अभियन्ता और मुख्य अभियन्ता के मार्फत एमडी/सीएमडी/विभागाध्यक्ष या सचिव या मंत्री के समक्ष अनुमोदन हेतु पेश किया जाता है।

तथाकथित प्रचलित सामान्य प्रक्रिया के अनुसार यदि सौ करोड़ का निर्माण कार्य करवाना है तो कनिष्ठ अभियन्ता से सवा सौ करोड़ रुपये का एस्टीमेट बनवाकर प्रस्तुत करवाया जाता है। इस पच्चीस करोड़ की राशि का निर्धारित प्रतिशत में नीचे से ऊपर तक प्रत्येक कार्य प्राप्त करने वाले ठेकेदार के द्वारा कार्य के प्रत्येक चरण के पूर्ण होने पर सीधे या निम्न स्तर के अभियन्ताओं के मार्फत नगद भुगतान किया जाता है।

तथाकथित प्रचलित कमीशन रूपी रिश्‍वत के विभाजन की प्रक्रिया के अनुसार कनिष्ठ व सहायक अभियन्ताओं को ठेकेदारों द्वारा कमीशन सीधे नगद भुगतान किया जाता है, जबकि सभी कार्यपालक अभियन्ताओं द्वारा अपने-अपने अधीन के निर्माण कार्यों को कराने वाले कनिष्ठ व सहायक अभियन्ताओं से संग्रहित करके समस्त कमीशन को समय-सयम पर मुख्य अभियन्ता को पहुँचाया जाता रहता है। मुख्य अभियन्ता अपना हिस्सा काटने के बाद शेष राशि को अपने विभाग के विभागाध्यक्ष/ एमडी/सीएमडी/सचिव (ये सभी सामान्यत: आईएएस ही होते हैं) को पहुँचाते हैं। जिसमें से सभी अपना हिस्सा रखने के बाद निर्धारित राशि विभाग के मंत्री को पार्टी फण्ड के नाम पर भेंट कर दी जाती है। इस प्रकार सवा सौ करोड़ रुपये के कार्य में से पच्चीस करोड़ रुपये का विभाजन तो बिना किसी व्यवधान के आसानी से कमीशन के रूप में चलता रहता है। ठेकेदार को भी इसे अदा करने में कोई दिक्कत नहीं आती है। क्योंकि उसे कार्य केवल सौ करोड़ का ही करना होता है और पच्चीस करोड़ का कमीशन भुगतान करने की अलिखित शर्त पर ही कार्य मिलता है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार समस्या तब उत्पन्न होती है, जबकि आमतौर पर कुछ अति लालची/चालाक मुख्य अभियन्ता या विभाग प्रमुख, मंत्री के नाम पर सवा सौ करोड़ के कार्य में से पच्चीस करोड़ के बजाय चालीस-पचास करोड़ रुपये की राशि को कमीशन के रूप में प्राप्त करने के लिये नीचे के अभियन्ताओं पर दबाव बनाते हैं। जिसकी उगाही नहीं करने पर उनकी नौकरी जाने का खतरा बना रहता है। साथ ही इस मनमानी वसूली करने पर ठेकेदार भी कार्य की गुणवत्ता को गिरा देता है, फिर भी कनिष्ठ व सहायक अभियन्ताओं को अपनी नौकरी को दाव पर लगाकर यह प्रमाणित करना होता है कि ठेकेदार द्वारा निर्धारित मापदण्डों और शर्तों के अनुसार ही निर्माण कार्य पूर्ण किया गया है। यदि वे ऐसा नहीं लिखें तो ठेकेदार को भुगतान नहीं हो सकता और भुगतान नहीं होगा तो किसी को कमीशन का एक पैसा भी नहीं मिलेगा। ऐसे में कुछ कनिष्ठ व सहायक अभियन्ताओं द्वारा ऐसा प्रमाण-पत्र जारी करने से पूर्व ठेकेदार पर निर्धारित रीति से सही काम करने का दबाव बनाया जाता है। लेकिन ऐसे हालातों में निर्धारित मापदण्डों और शर्तों के अनुसार सही काम करवाने के बाद ठेकेदार द्वारा अधिक कमीशन देने में आनाकानी की जाती है। जबकि ऊपर से अत्यन्त दबाव होता है जो कनिष्ठ व सहायक अभियन्ताओं के मार्फत ठेकेदार तक जाता है। ऐसे में ठेकेदार भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से सम्पर्क साधकर सम्बन्धित कनिष्ठ या सहायक अभियन्ता को रंगे हाथों कमीशन रूपी रिश्‍वत को लेते गिरफ्तार करवा देते हैं। अखबारों में रिश्‍वत लेने की खबरें छपती हैं। पकड़े गये अभियन्ता का सामाजिक मानसम्मान सब कुछ ध्वस्त हो जाता है।

इसके बावजूद भी बहुत कम ऐसे अभियन्ता या रिश्‍वतखोर लोक सेवक होते हैं, जिनको सजा मिलती है। कारण कि पकड़े गये अभियन्ता या रिश्‍वतखोर लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति सरकार द्वारा दी जाती है। सरकार का मतलब एमडी/सीएमडी/सचिव/मंत्री जो अधिकतर मामलों में ऐसी स्वीकृति नहीं देते हैं, क्योंकि उनको धन एकट्ठा करने के कारण ही तो अभियन्ता या रिश्‍वतखोर लोक सेवकों को पकड़ा जाता है। लेकिन कभी-कभी इसमें भी व्यवधान आ जाता है। कमीशन मांगने वाले और अभियोजन चलाने की स्वीकृति देने वाले अधिकारी बदल जाते हैं। ऐसे में आपसी सामंजस्य बिगड़ जाता है या मामले को मीडिया में उठवा दिया जाता है और कभी-कभी अभियोजन चलाने की स्वीकृति मिल भी जाती है। फिर भी अदालत से दो फीसदी से अधिक मामलों में सजा नहीं मिलती है। क्योंकि मामले को कोर्ट के समक्ष सिद्ध करने की जिम्मेदारी जिन लोक सेवकों के ऊपर होती है, उनके साथ आरोपियो द्वारा आसानी से सामंजस्य बिठा लिया जाता है।  

बताया यह भी जाता है कि जब भी नयी सरकार या नये मंत्री या नये विभागाध्यक्ष पदस्थ होते हैं, आमतौर पर भ्रष्टाचार के मामलों में पकड़े गये लोक सेवकों से मोटी रकम वसूल करके उनके खिलाफ अभियोजन चलाने की स्वीकृति देने से किसी न किसी बहाने इनकार कर देते हैं और ऐसे लोक सेवकों को माल कमाने के लिये मलाईदार पदों पर पदस्थ करके उन्हें उपकृत कर देते हैं। ऐसे में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो या भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिये कार्य करने वाली सरकारी एजेंसियों का हतोत्साहित होना स्वाभाविक है। कभी-कभी इसका परिणाम ये होतो है कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो या भ्रष्टाचार उन्मूलन ऐजेंसी द्वारा रिश्‍वत लेते रंगे हाथ पकड़े जाने पर खुद ही सौदा कर लिया जाता है और आरोपियों को छोड़ दिया जाता है।

अच्छे दिनों के सपने दिखाने वाले भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की राजस्थान सरकार लोकसभा चुनावों के बाद असली रंग में आ चुकी है और अपने पिछले कार्य काल की ही भांति मनमानी और अफसरों की तानाशाही प्रारम्भ हो चुकी है। यही कारण था कि पिछली बार भाजपा और कॉंग्रेस का पतन हुआ था, लेकिन सत्ता में आते ही जनहित सहित सब कुछ भुलाकर राजनेता और अफसरशाही का अटूट भ्रष्ट गठजोड़ केवल और केवल माल कमाने में मशगूल हो जाता है।-लेखक 1993 से देश भर में सेवारत-"भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान" (बास) का राष्ट्रीय अध्यक्ष है। मोबाईल : -098750661111

Monday, June 27, 2011

रसोई गैस-डीजल-केरोसीन और पेट्रोल की मंहगाई


डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

मंहगाई का असली कारण
रसोई गैस का कार में उपयोग
सरकार जब-जब भी रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें बढाती है, सरकार की ओर से हर बार रटे-रटाये दो तर्क प्रस्तुत करके देश के लोगों को चुप करवाने का प्रयास किया जाता है| पहला तो यह कि कि अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव बढ गये हैं, जो सरकार के नियन्त्रण में नहीं है| दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की आपूर्ति करने वाली कम्पनियों को भारी घाटा हो रहा है| इसलिये रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें बढाना सरकार की मजबूरी है| राष्ट्रीय मीडिया की ओर से हर बार सरकार को बताया जाता है कि यदि सरकार अपने करों को कम कर दे तो रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें बढने के बजाय घट भी सकती हैं और आंकड़ों के जरिये यह सिद्ध करने का भी प्रयास किया जाता है कि रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की आपूर्ति करने वाली कम्पनियों को कुल मिलाकर घाटे के बजाय मुनाफा ही हो रहा है, फिर कीमतें बढाने की कहॉं पर जरूरत है|

मीडिया और जागरूक लोगों की ओर से उठाये जाने वाले इन तर्कसंगत सवालों पर सरकार तनिक भी ध्यान नहीं देती है और थोड़े-थोड़े से अन्तराल पर रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें लगातार और बेखौप बढाती ही जा रही है| जिससे आम गरीब लोगों की कमर टूट चुकी है| लेकिन इन लोगों में सरकार के इस अत्याचार का संगठित होकर प्रतिकार करने की क्षमता नहीं है| मध्यम एवं उच्च वर्ग जो हर प्रकार से प्रतिकार करने में सक्षम है, वह एक-दो दिन चिल्लाचोट करके चुप हो जाता है|


राजनैतिक दल भी औपचारिक विरोध करके चुप हो जाते हैं| क्योंकि राजनेता तो सभी दलों के एक जैसे हैं| उन्हें सत्ता से बाहर होने पर ही जनता की तकलीफें नरज आती हैं| मोरारजी देसाई के छोटे से कार्यकाल को छोड़ दिया जाये तो यह बात पूरी तरह से सच है कि सत्ता में आने पर किसी भी राजनैतिक दल के नेताओं को आम लोगों की गम्भीर समस्याएँ भी नजर ही नहीं आती हैं| इसीलिये अन्य अनेक जीवन रक्षक जरूरी वस्तुओं की कीमतों में परोक्ष वृद्धि के साथ-साथ रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें प्रत्यक्ष रूप से बढने का सिलसिला लगातार चलता रहता है|

मैं समझता हूँ कि अब आम-अभावग्रस्त लोगों को इस दिशा में कुछ समाधानकारी मुद्दों को लेकर सड़क पर आने की जरूरत है, क्योंकि राजनैतिक लोगों से इस समस्या के बारे में आम लोगों के साथ खड़े होने की आशा करना अपने आपको धोखा देने के समान है| बल्कि जनता को अपने आन्दोलन से राजनैतिक लोगों को अलग भी रखना चाहिये| केवल दो बातें ऐसी हैं, जिन्हें देश के आम-अभावग्रस्त लोगों को देश की अंधी-बहरी सरकार को समझाने की जरूरत है:-

1. रसोई गैस एवं केरोसीन की कुल खपत का करीब 40 प्रतिशत व्यावसायिक उपयोग हो रहा है, जिसके लिये मूलत: इनकी कालाबाजारी जिम्मेदार है| जिसमें सरकार के अफसर भी शामिल हैं, क्योंकि उनको हर माह रसोई गैस एवं केरोसीन की कालाबाजारी करने वालों और इनका व्यावसायिक उपयोग करने वालों की ओर से कमीशन मिलता है| जिसकी रोकथाम के लिये सरकार कोई प्रयास नहीं करके रसोई गैस एवं केरोसीन की कीमतें बढकार जनता पर अत्याचार करती है| जबकि कालाबाजारी करने वालों, व्यावसायिक उपयोग करने वालों और सम्बन्धित सरकारी अमले को कठोर सजा मिलनी चाहिये|

2. रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की आपूर्ति करने वाली कम्पनियों के कर्मचारियों और अफसरों को जिस प्रकार की सुविधा और वेतन दिया जा रहा है, वह उनकी कार्यक्षमता से कई गुना अधिक है| जिसका भार अन्नत: देश की जनता पर ही पड़ता है| जब सरकार रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें बढाने के मामले में इन कम्पनियों की ओर से हस्तक्षेप कर सकती है तो इन कम्पनियों के खर्चों को नियन्त्रित करने के लिये हस्तक्षेप क्यों नहीं करती है? जब भी इस बारे में सरकार से नियन्त्रण की बात की जाती है तो सरकार इसे कम्पनियों का आन्तरिक मामला कहकर पल्ला झाड़ लेती है, जबकि कम्पनियों द्वारा अर्जित धन की बर्बादी के कारण होने वाले घाटे की पूर्ति के लिये सरकार रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें बढाने के लिये इन कम्पनियों की ओर से जनता पर भार बढाने में कभी भी संकोच नहीं करती है|