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Thursday, October 11, 2012

भ्रष्टाचार के खिलाफ मु:ह बंद रखें!

देशभक्त, जागरूक और सतर्क लोगों को इस बात पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना होगा कि भ्रष्ट जन राजनेताओं से कहीं अधिक भ्रष्ट, देश की अफसरशाही है और पूर्व अफसर से राजनेता बने जन प्रतिनिधि उनसे भी अधिक भ्रष्ट और खतरनाक होते हैं। इन्हें किस प्रकार से रोका जावे, इस बारे में गहन चिंतन करने की सख्त जरूरत है, क्योंकि ऐसे पूर्व भ्रष्ट अफसरों को संसद और विधानसभाओं में भेजकर देश की जनता खुद अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है!

Wednesday, April 6, 2011

सीबीआई ने थरथराते और कंपकंपाते हुए पूर्व जज निर्मल यादव के विरुद्ध चालान पेश किया!

सीबीआई ने थरथराते और कंपकंपाते हुए
पूर्व जज निर्मल यादव के विरुद्ध चालान पेश किया!

सीबीआई जहॉं एक ओर सामान्य व्यक्ति के विरुद्ध मामला जॉंचाधीन होने पर भी प्रेस कॉंफ्रेंस करके मीडिया को बढाचढाकर तथ्यों की जानकारी देने में पीछे नहीं रहती है, वही दूसरी ओर हाई कोर्ट की सेवानिवृत जज के विरुद्ध प्रथम दृष्टया अपराधों के तथ्यों की विश्‍वसनीयता प्रमाणित हो जाने पर भी उसका नाम तक लेने में संकोच कर रही है, जिससे सीबीआई की न्यायपालिका के प्रति दौहरी नीति का स्वत: ही पता चलता है| चालान पेश होने के बाद आरोपी पूर्व जज निर्मल यादव ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि ‘‘सीबीआई पागल हो गयी है|’’
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मनीराम शर्मा, एडवोकेट

भारत की सर्वोच्च जॉंच एजेंसी केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने सम्भवत: अपने इतिहास में पहली बार हाई कोर्ट के एक रिटायर्ड जज के विरुद्ध मुकदमा बना कर, कोर्ट में चालान (आरोप-पत्र) पेश किया है| चालान पेश करने के बाद सीबीआई ने जो मीडिया का प्रेस विज्ञप्ति जारी की है, उसे पढकर लगता है कि सीबीआई के अफसरों के हाथ-पॉंव फूले हुए हैं और थरथराते व कंपकंपाते हाथों से सीबीआई ने पंजाब-हरियाणा तथा उत्तराखण्ड हाई कोर्ट की पूर्व जज निर्मल यादव के विरुद्ध मुकदमा बना कर सीबीआई की विशेष कोर्ट में पेश किया है| यह स्थिति तो तब है, जबकि पूर्व जज निर्मल यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने हेतु देश के राष्ट्रपति से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा १९ के अन्तर्गत स्वीकृति मिलने के बाद ही यह चालान पेश किया गया है|

सीबीआई ने भष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा ११ व १२ के अन्तर्गत सीबीआई की विशेष न्यायालय में चालान पेश किया है, जिसमें आगामी पेशी ६ अप्रेल को निर्धारित की गई है| ४५ पृष्ठीय चालान में मुख्य आरोप है कि पूर्व जज निर्मल यादव ने (हरियाणा-पंजाब हाई कोर्ट की जज के रूप में कार्य करते हुए) सम्पति से सम्बन्धित एक मामले का निर्णय करने में अत्यधिक फुर्ती दिखाई तथा जिसमें हरियाणा के अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल द्वारा पैरवी की गयी थी| इस मामले में संजीव बंसल के निकट मित्र और दिल्ली के व्यवसायी रविन्द्र सिंह के माध्यम से १५ लाख रुपये का रिश्‍वत के रूप में भुगतान करने का प्रयास किया गया था, जिसके चलते उसके पक्ष का पोषण किये जाने का पूर्व जज निर्मल यादव पर आरोप है|

सीबीआई कोर्ट में प्रस्तुत आरोप-पत्र के अनुसार उक्त मामले का निर्णय ११ मार्च, २००८ सुनाये जाने के दौरान, पक्षकार रविन्द्र सिंह ने अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल, आरोपी जज निर्मल यादव एवं प्रतिपक्षी सेवा निवृत मजिस्ट्रेट जी. आर. मित्तल से टेलीफोन तथा माबाइल द्वारा लगातार सम्पर्क किया|

प्रकरण के तथ्यों के बारे में प्राप्त जानकारी के अनुसार पंचकुला के सेक्टर १६ के विवादित प्लाट नं. ६०१, जिसे कि सेवा निवृत मजिस्ट्रेट जी. आर. मित्तल को बेचने का करार हुआ था, उसके विषय में वीणा गोयल व मित्तल के बीच विवाद उत्पन्न हो गया| मितल ने कई दौर के मुकदमों के बाद निचली अदालत में मामला जीता था और यह मामला अन्नत: पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत हुआ|

अरूण जैन नामक वरिष्ठ अधिवक्ता ने गोयल की अपील याचिका तैयार की थी, किन्तु तत्पश्‍चात जैन से अनापत्ति लेकर संजीव बंसल को इस मामले की पैरवी हेतु लगाया गया| प्रकरण ०१ फरवरी, २००८ को पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट की जज निर्मल यादव के समक्ष सुनवाई हेतु प्रस्तुत हुआ था, किन्तु उस दिन वह डिवीजन बैंच में व्यस्त थी| अत: पेशकार द्वारा मामला ०३ मार्च, २००८ को सुनवाई के लिए स्थगित किया गया, किन्तु डिवीजन बैंच से लौटने के बाद जज निर्मल यादव ने इस मामले को ०४ फरवरी, ०८ को अपने कोर्ट में लगवाकर सुनवाई की एवं निर्णय सुरक्षित रख लिया और एक माह से अधिक समय तक मामले के निर्णय को लम्बित रखने के बाद ११ मार्च, २००८ को वीणा गोयल के पक्ष में निर्णय सुनाया गया|

इस मामले में सीबीआई की ओर से पिछले दिनों कोर्ट में पेश आरोप-पत्र (चालान) में कहा गया है कि इस मामले की आरोपी पूर्व जज निर्मल यादव ने मामले की सुनवाई करने में जल्दबाजी दिखाई| यह भी आरोप है कि अगस्त २००८ में एक व्यापारी रविन्द्र सिंह ने गलती से रिश्‍वत की राशि १५ लाख रुपये पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट की ही मिलते-जुलते नाम वाली अन्य महिला जज निर्मलजीत कौर के यहां पहुंचा दी थी, जिसने इस १५ लाख रुपये की रिश्‍वत की राशि के सम्बन्ध में पुलिस को रिपोर्ट कर दी थी| इसी से यह मामला सामने आया था|

पुलिस ने अपनी जॉंच-पड़ताल में पाया कि महिला जज निर्मलजीत कौर के निवास पर पहुँचायी गयी १५ लाख रुपये की धनराशि वास्तव में न्यायाधीश निर्मल यादव को देने के लिए भेजी गयी थी, लेकिन मिलते-जुलते नाम के कारण गलती से निर्मलजीत कौर के निवास पर पहुँचा दी गयी| चण्डीगढ पुलिस ने मात्र ९ दिन में तथ्यों का अन्वेषण कर संजीव बंसल, राजीव गुप्ता व रविन्द्र सिंह को गिरफ्तार कर लिया, जिन्होंने पुलिस को बताया कि उक्त धनराशि हाई कोर्ट की तत्कालीन जज निर्मल यादव को उक्त मामले में उनके हितों के पूर्ण करने वाला निर्णय देने के लिए भेजी गयी थी| पक्षकार एवं जज तथा अन्य शामिल लोगों के मोबाईल कॉल डिटेल से भी इन तथ्यों की पुष्टि हुई|

पंजाब के गवर्नर एस. एस. रोडरिगस ने पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तीर्थसिंह ठाकुर के ध्यान में लाते हुए २६ अगस्त, ०८ को इस मामले की सीबीआई से जांच कराने का आग्रह किया था| यद्यपि इसके विपरीत केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने सीबीआई से कहा कि संजीव बंसल, रविन्द्रसिंह और निर्मल सिंह द्वारा न्यायाधीश निर्मल यादव के साथ मिलकर षडयन्त्र कर अपराध करने का नाम मात्र का भी साक्ष्य उपलब्ध नहीं है| अत: भारत सरकार से आरोपी जज एवं अन्य के विरुद्ध अभियोजन चलाने की स्वीकृति के अभाव में मार्च, २०१० में सीबीआई द्वारा चण्डीगढ स्थित सीबीआई कोर्ट से मामले को बन्द करने की प्रार्थना भी की गयी थी, जिसे सीबीआई कोर्ट द्वारा अस्वीकार कर दिया था|

उपरोक्त मामला इसी स्तर पर दबने के कगार पर ही था, लेकिन सूचना का अधिकार कानून के अन्तर्गत एक आवेदन केे जबाब में खुलासा हुआ कि रिश्‍वत के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट तथा केन्द्र सरकार द्वारा क्लीन चिट देने के दो माह बाद पंजाब के गवर्नर, सीबीआई तथा गोखले कमेटी ने निष्कर्ष निकाला कि पूर्व जज निर्मल यादव को वास्तव में १५ लाख रुपये दिए जाने थे| यह तथ्य मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक हो गया|

इसके बाद अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था, जबकि निर्मल यादव नैतिकता के आधार पर अवकाश पर चली गई| बाद में उन्हें उत्तराखण्ड हाई कोर्ट में स्थानान्तरित कर दिया गया| भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधिपति बालाकृष्णन ने अलग से न्यायाधीशों की कमेटी से जांच हेतु अनुशंसा की थी, किन्तु इसके साथ-साथ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की हैसियत से केन्द्रीय सरकार को निर्मल यादव के विरुद्ध किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं करने की सलाह भी दी थी| उस समय के मुख्य न्यायाधिपति की अनुशंसा पर गठित गोखले कमेटी ने अपनी ९२ पृष्ठीय रिपोर्ट में कहा है कि न्यायाधीश निर्मल यादव पर लगाये गये आरोप सारभूत व गंभीर है जो न्यायाधीश निर्मल यादव को अपने पद से हटाने की कार्यवाही प्रारम्भ करने हेतु पर्याप्त हैं|

अन्तत: भारत के मुख्य न्यायाधीश कपाड़िया की राय पर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा २८ फरवरी, २०११ को सेवा निवृत्त हो चुकी जज निर्मल यादव के विरुद्ध अभियोजन चलाने की स्वीकृति प्रदान की गई| इसके उपरान्त भी सीबीआई की ओर से जो आरोप-पत्र कोर्ट में पेश किया गया है, उसकी प्रेस विज्ञप्ति में ओरापी जज एवं अन्य के नाम तक उजागर नहीं दिये गये हैं और इसके विपरीत विज्ञप्ति में विशेष रूप से यह भी लिखा गया है कि ‘‘भारतीय कानून में एक अभियुक्त को उचित परीक्षण में दोषी न पाये जाने तक निर्दोष समझा जाता है|’’

इस प्रकार सीबीआई जहॉं सामान्य व्यक्ति के विरुद्ध मामला जॉंचाधीन होने पर भी प्रेस कॉंफ्रेंस करके मीडिया को बढाचढाकर तथ्यों की जानकारी देने में पीछे नहीं रहती है, वही सीबीआई एक हाई कोर्ट की सेवानिवृत जज के विरुद्ध प्रथम दृष्टया अपराधों के तथ्यों की विश्‍वसनीयता प्रमाणित हो जाने पर भी उसका नाम तक लेने में संकोच कर रही है, जिससे सीबीआई की न्यायपालिका के प्रति दौहरी नीति का स्वत: ही पता चलता है|

उक्त चालान पेश होने के बाद आरोपी पूर्व जज निर्मल यादव ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि ‘‘सीबीआई पागल हो गयी है|’’ यहॉं विशेष रूप से ध्यान देने योग्य तथ्य है कि सीबीआई की विज्ञप्ति में आरोपी पूर्व जज के साथ-साथ उच्च पदासीन आरोपी व्यक्तियों के नाम तक उजागर नहीं किए गए है और अन्त में स्पष्टीकरण जोड़कर अभियुक्तों को निर्दोष भी बताया गया है| यद्यपि यह समाचार दैनिक समाचार पत्रों में पूर्व में सचित्र प्रकाशित होता रहा है| कानून की दृष्टि में किसी के भी विरुद्ध प्रस्तुत किया जाने वाला आरोप पत्र एक लोक दस्तावेज (पब्लिक डॉक्यूमेण्ट) होता है, जिसे कोई भी व्यक्ति कोर्ट में आवेदन देकर प्राप्त कर सकता है| जिसको सीबीआई द्वारा गोपनीय रखने का कोई औचित्य नहीं है|

जबकि इसके विपरीत सुप्रीम कोर्ठ द्वारा शिवनंदन पासवान (एआईआर, १९८७ सुप्रीम कोर्ट-८७७) के प्रकरण में व्यक्त विचारों के अनुसार चूंकि अपराधिक कार्यवाही समाज हित में संचालित होती है, अत: कोई भी नागरिक इसमें किसी भी स्तर पर भागीदार बन सकता है| ऐसे में प्रश्‍न यह है कि क्या सीबीआई पूर्व में भी कभी ऐसा बर्ताव करती रही है और क्या सभी मामलों में ऐसा स्पष्टीकरण जोड़ा जाता रहा है कि ‘‘कोर्ट द्वारा दोषी सिद्ध नहीं हो जाने तक आरोपियों को दोषी नहीं समझा जाना चाहिये|’’

केवल इतना ही नहीं, बल्कि सीबीआई का यह व्यवहार विनीत नारायण (विनीत नारायण बनाम भारत संघ, सुप्रीम कोर्ट-८८९) के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्यक्त विचारों का भी उल्लंघन करता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि ‘‘कानून अभियोजन एवं अनुसंधान हेतु अभियुक्तों को उनकी हैसियत के अनुसार वर्गीकृत नहीं करता है| समान प्रकार का अपराध करने वाले सभी अपराधियों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए|’’ ऐसे हालात में यह संदेहास्पद है कि जो सीबीआई आरोपी सिद्ध हो चुके अभियुक्तों का नाम तक प्रकट करने में संकोच कर रही है और साथ ही साथ उन्हें निर्दोष भी बताने का प्रयास कर रही है, क्या वही सीबीआई उनके विरुद्ध कोर्ट के समक्ष अभियोजन (मुकदमे) का दृढ़तापूर्वक संचालन करते समय दबाव में नहीं आयेगी| अत: यह संदिग्ध ही है कि सीबीआई कंपकंपाते और थरथराते हाथों से अभियुक्तों को दण्डित करवाने में सफल हो पायेगी|

सीबीआई की ४ अप्रेल, २०११ की प्रेस विज्ञप्ति में मात्र इतना सा कहा गया है कि अगस्त २००८ में पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के एक अन्य न्यायाधीश के दरवाजे पर पाये गये १५ लाख रुपये के सम्बन्ध में पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश और चार अन्य लोगों के विरूद्ध चंडीगढ के विशेष न्यायाधीश के न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल कर दिया है| विधि एवं न्याय मंत्रालय से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा १९ के अन्तर्गत अभियोजन स्वीकृति प्राप्त होने बाद यह आरोप पत्र दाखिल किया गया है|

From : PRESSPALIKA-01.04.2011

Monday, May 3, 2010

भ्रष्टाचार का परिणाम है : जासूसी व देशद्रोह!

भ्रष्टाचार का परिणाम है : जासूसी व देशद्रोह

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
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आईएएस, आईपीएस, आयकर विभाग के उच्च अधिकारी, सीबीआई, सीआईडी, भ्रष्टाचार अन्वेषण ब्यूरो, सतर्कता टीम के छोटे बडे अधिकारी रंगे हाथ रिश्वतखोरी में पकडे जा रहे हैं। माधुरी गुप्ता को देश की सूचनाएँ पाकिस्तान को बेचने के आरोपों में पकडा गया है। पुलिस और सीआरपीएफ के जवान नक्सलवादियों को सरकारी कारतूस बेचते हैं। अनेक राज्यों के पुलिस के लोग आतंकवादियों को हथियार एवं कारतूस सप्लाई करते हैं। मुस्लिम एवं आदिवासी विरोध के नाम पर राष्ट्रवाद की बात करने वाले अजमेर की दरगाह में विस्फोटों में शामिल पाये जाते हैं। इस सबके उलट जिन मासूम बच्चियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया जाता है, उन्हें चोरी के इल्जाम में जेल में बन्द कर दिया जाता है और बालात्कारियों से मोटी रकम लेकर, शेष कुवारी लडकियों की इज्जत लूटने के लिये छोड दिया जाता है। इन हालातों में इस देश में कौन सुरक्षित हो सकता है और इन हालातों में कोई कब तक जिन्दा रह सकता है? इस सवाल का जवाब इस देश की जनता इस देश के शासकों से चाहती है? लेकिन कोई भी जवाब जनता के जख्मों पर मरहम नहीं लगा सकता, क्योंकि भ्रष्टाचार की गन्दी नदी में कुछ भी पवित्र नहीं बचा है। भ्रष्टाचार की गंगोत्री से ही जासूसी, नक्सलवाद, आतंकवाद, उग्रवाद और देशद्रोह का जन्म हो रहा है।
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हाल ही में माधुरी गुप्ता को जासूसी के मामले में पकडे जाने के बाद सारे के सारे कथित ढोंगी राष्ट्रवादी न जाने कहाँ गायब हो गये। जबकि कल तक ये धोखेबाज और मुखौटे पहने राष्ट्रवाद की बात करने वाले और अपने आपको बुद्धिजीवी कहने वाले सारे देश के मुसलमानों को आतंकवादी और देश के सारे आदिवासियों को नक्सलवादी ठहराने में हजारों तर्क गिना रहे थे। माधुरी और अजमेर में पकडे देशभक्तों के मामले में इनमें से किसी ने भी आगे आकर इनको फांसी पर लटकाने की मांग करने की हिम्मत नहीं दिखाई। जबकि इसके विपरीत चिल्लाचोट करने के आदी कुछ उथली मानसिकता के लोगों ने अवश्य माधुरी के नाम को लेकर झूठा हल्ला मचाया हुआ है।

जबकि विचारणीय मुद्दा यह है कि माधुरी गुप्ता द्वारा जो कुछ किया गया है, वह तो एक नमूना है, क्योंकि देशभर में हर क्षेत्र में पैठ जमा चुकी हजारों माधुरियाँ अभी पकडी जानी बाकी हैं। ऐसी अनेकों माधुरी और भ्रंवर हर सरकारी ऑफिस में उपलब्ध हैं। आज हजारों स्त्री और पुरुष धन, सुविधा और पदोन्नति के बदले कुछ भी करने को तैयार हैं। असल मुद्दा माधुरी गुप्ता, केतन देसाई या अन्य ऐसे लोगों को का पर्दाफाश करके इन्हें प्रचारित करना नहीं है, ये सब निहायती उथली और बेवकूफी भरी बातें हैं। असल में हमारे लिये विचारणीय मुद्दा यह होना चाहिये कि आगे से कोई माधुरी या केतन देसाई पैदा नहीं हो, इसके लिये क्या किया जाना चाहिये?

इसे हमें इस प्रकार से समझना होगा कि रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार नहीं करके उसको जान से खत्म कर देने से समाज के शेष लोगों को बीमारी से मुक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि जब तक वातावरण में रोग के जीवाणु तैरते रहेंगे, किसी भी स्वस्थ व्यक्ति को वे अपनी चपेट में लेकर बीमार बना सकते हैं। रोग के कारण अर्थात्‌ जीवाणुओं को पहचानने की सख्त जरूरत है। इसलिये सबसे पहले हमें इस बात को स्वीकारना होगा कि भ्रष्टाचार नामक रोग के जीवाणुओं को पनपने देने के लिये हम सब सुशिक्षित और तेजी से आगे बढने की चाह रखने वाले इण्डियन मानसिकता के भारतीय नागरिक जिम्मेदार हैं। हम अपने आसपास नजर दौडाकर देख सकते हैं कि किसी भी प्रकार से धन कमाने वालों को हम कितना सम्मान देते हैं? हम किसी भी तरह से अपना काम बिना बारी और बिना लाईन में लगे करवाने पर कितने फक्र का अनुभव करते हैं? धन के बल पर चुनाव जीतने वालों का हम जुलूस निकालते हैं? इन सब कार्यों से हम खुले तौर पर भ्रष्टाचार को बढावा ही नहीं देते हैं, बल्कि भ्रष्टाचार को सामाजिक स्वीकृति एवं मान्यता भी प्रदान करते हैं।

ऐसा करते समय हम भूल जाते हैं कि जो व्यक्ति राशन कार्ड बनाने के लिये वेतन पाता है और फिर भी राशन बनाने के बदले में रिश्वत लेता है, वही व्यक्ति अवसर मिलने पर देश की खुफिया जानकारियाँ उपलब्ध करने के बदले में चीन या पाकिस्तान से धन क्यों नहीं ले सकता है? जो व्यक्ति नकली दवाईयों के सैम्पल पास करते हैं, जो व्यक्ति असली पुर्जे बेचकर नकली पुर्जे लगाकर सरकारी बसों को दुर्घटना होने के लिये छोड देते हैं! जो लोग पुलों ओर बडी-बडी इमारतों में निर्धारित मापदण्डों के अनुरूप सामग्री का इस्तमाल नहीं करते, ऐसे व्यक्तियों को हम देशद्रोही क्यों नहीं मानते हैं?

इन लोगों की अनदेखी तो हम करते ही हैं, साथ ही साथ हम भ्रष्टाचार एवं अन्ततः देशद्रोह को भी बढावा देते हैं। लेकिन सब चलता है! भ्रष्टाचार तो देश के विकास के लिये जरूरी है। भ्रष्टाचार तो अन्तर्राष्ट्रीय बीमारी है, इसे रोका नहीं जा सकता आदि बेतुकी बातों का अनेक लोग बिना विचारे समर्थन करते रहते हैं! ऐसा कहते समय हम भूल जाते हैं कि हम भ्रष्टाचार के साथ-साथ परोक्ष रूप से जासूसी, आतंकवाद, नक्लवाद जैसे देशद्रोह को जन्म देने वाले अपराधों को भी बढावा दे रहे हैं।

इसके अलावा हमारी अन्धी और मीडिया द्वारा नियन्त्रित सोच का मूर्खता का जीता जागता नमूना यह भी है कि जब मुम्बई में ताज होटल में आतंकी घुस जाते हैं तो इसे राष्ट्र पर हमला बताया जाता है। लेकिन मुझे आज तक यह बात समझ में नहीं आता कि बम्बई बम ब्लॉक, जयपुर बम ब्लॉस्ट, कानपुर बम ब्लॉस्ट, लाल किले पर हमला और देश के विभिन्न हिस्सों में हुए सैकडों हमले राष्ट्र पर हमला क्यों नहीं थे और केवल मुम्बई के ताज होटल में हुआ हमला ही राष्ट्र पर हमला क्यों है? यही नहीं इस कथित राष्ट्रीय हमले पर मीडिया की जुबानी सारा देश आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर खडा होने का नाटक करता हुआ दिखता है, लेकिन आतंकवादियों को चांदी के चन्द सिक्कों के बदले होटल तक आने का रास्ता दिखलाने वाले देशद्रोहियों के नाम न जाने कहाँ गुम हो जाते हैं? मुम्बई में ताज होटल पर हुअे हमले को सरकार ने इतनी गम्भीरता से लिया कि पाकिस्तान से चल रही वार्ता को हर स्तर पर स्थगित कर दिया और ताज होटल मामले में पकडे गये एक मात्र आतंकी कसाब को सजा मिलने से पूर्व ही भूटान यात्रा के दौरान दोनों देशों के प्रधानमन्त्री विदेश मन्त्री स्तर की वार्ता के लिये सहमत हो गये। समझ में यह नहीं आता कि गत डेढ वर्ष में ऐसा कौनसा बदलाव आ गया, जिससे पाकिस्तान और भारत में फिर से वार्ता जारी रखने का माहौल बन गया है?

यदि हम सच को स्वीकार सकें तो बहुत कडवी सच्चाई यह है कि जिस प्रकार से मीडिया ने ताज होटल हमले के दौरान सारे राष्ट्र को एकजुट दिखाने का सफल नाटक किया था, उसी प्रकारसे भारत और पाकिस्तान के शासक गत छह दशकों से सचिव एवं मन्त्री स्तर की तथा शिखर वार्ताओं पर अरबों रुपये खर्च करके वार्ताओं के जरिये समस्याओं के समाधान ढँूढने का सफलतापूर्व नाटक करते आ रहे हैं। असल में दोनों देशों के शासकों में से कोई भी नहीं चाहता कि शान्ति कायम हो, क्योंकि दोनों देशों में जनता को पडौसी मुल्क का खतरा दिखाकर वोट मांगने और धार्मिक उन्माद फैलाकर शासन करने का इससे बढिया कोई और रास्ता हो ही नहीं सकता। ऐसा नहीं है कि हमारे देश में ही ऐसा हो रहा है। विश्व के अनेक देशों के शासक ऐसा करते रहते हैं।

बात मुम्बई ताज होटल की हो रही थी, तो इसकी कडवी और नंगी सच्चाई यह है कि ताज होटल जैसे आश-ओ-आराम उपलब्ध करवाने वाले आधुनिक होटलों में सांसद, विधायक, आईएएस, आईपीएस, कार्पोरेट मीडिया के लोग, क्रिकेटर, ऐक्टर, सारे उोगपति, पंँूजीपति, सफेदपोश अपराधी आदि बडे-बडे लोग न मात्र रुकते ही हैं, बल्कि सभी प्रकार की काली-सफेद डील भी इन्हीं होटलों में होती हैं। इसलिये जब ताज होटल पर हमला हुआ तो मुम्बई की फिल्मी दुनिया के लोग, जो एसी से बाहर नहीं निकलते रोड पर आकर शान्ति मार्च करते दिखे, उनके साथ कन्धा मिला रहे थे-अम्बानी जैसे उोगपति और सारा इल्क्ट्रोनिक एवं प्रिण्ट मीडिया ताज होटल पर हुए हमले को राष्ट्र पर हमला करार दे रहा था। ताज होटल पर हुए हमले को सभी दलों ने एक स्वर में राष्ट्र पर हमला करार दिया। वामपंथियों ओर दक्षिणपंथियों में इस मामले में एक राय होना कितना आश्चर्यजनक है।

सचिन तेन्दुलकर ने भी इसकी भर्त्सना की, अमिताभ की नींद उड गयी थी। परन्तु कोई भी इस बात का जवाब नहीं दे रहा था कि केवल यही हमला क्यों राष्ट्र पर है? क्या जयपुर या दिल्ली या कानपुर या मेरठ या अजमेर दरगाह भारत में नहीं हैं? यदि भारत में हैं तो उन हमलों को राष्ट्र पर हमला क्यों नहीं माना जाता? कडवी सच्चाई यह है कि इस देश के असली मालिक वे लोग हैं, जो इण्डिया में बसते हैं और इण्डिया इन्हीं ताज होटलों की गिरफ्त में है। शेष जो भारत में बसते हैं वे तो ताज होटलों में एश-ओ-आराम करने वाले इण्डिया के राजाओं की प्रजा हैं। हम सभी जानते हैं और इतिहास गवाह है कि आदिकाल से प्रजा केवल मरने के लिये ही पैदा होती रही है। प्रजा पर होने वाले हमलों का न तो हिसाब रखा जाता है और हीं उन पर चर्चा होती है।

अन्यथा क्या कारण है कि बांग्लादेश जैसे पिद्दी से देश के सुरक्षा गार्डों द्वारा कुछ वर्षों पर हमारे देश के सैनिकों के यौनांगों को काट डाला गया? उनके आँख, कान, नाक आदि काट दिये गये और लाश को हमारी सीमा में यह दिखाने के लिये पहुँचाया गया कि देख लो हम बांग्लादेशी कितने ताकतवर हैं? इस मामले में इण्डिया की सरकार ने कुछ भी नहीं किया, क्योंकि हमला इण्डिया पर नहीं, बल्कि भारत के लोगों पर हुआ था। सडकों पर मरने वाले भारतीय होते हैं ओर ताज होटलों में मरने वाले इण्डियन! इसलिये ताज होटल का हमला राष्ट्र पर हमला कहकर प्रचारित किया गया। यही फर्क है इस देश में भारतीय और इण्डियन होने का!

मुम्बई के ताज होटल में प्रवेश करने वालों को बेशक राष्ट्र का दुश्मन बतलाया गया हो और आगे से ऐसी घटनाएँ न हों इसके लिये बेशक कितने भी प्रयास किये गये हों, लेकिन जब तक माधुरी गुप्ता, केतन देसाई जैसे लोग इस देश में हैं न तो भारतीय सुरक्षित हैं और न हीं इण्डियन! यदि हम चाहते हैं कि यह देश नक्सलवाद, आतंकवाद, उग्रवाद, साम्प्रदायिकता आदि बीमारियों से मुक्त हो तो सबसे पहले इस देश को भ्रष्टाचार एवं भ्रष्टाचारियों से से मुक्त रखना होगा। इस देश की संसद को निर्णय लेना होगा कि भ्रष्टाचार की सजा कम से कम उम्र कैद और अधिकतम फांसी हो। इसके साथ-साथ आईएएस लॉबी की प्रशासनिक मनमानी पर रोक लगानी होगी, बल्कि तत्काल आईएएस प्रणाली को समाप्त करना होगा और विभागीय जाँच के नाटक बन्द करने होंगे। अन्यथा इस देश की सम्प्रभुता की सुरक्षा मुश्किल ही नहीं, असम्भव है।

लेकिन अभी तक के आजाद भारत के इतिहास की ओर नजर डालें तो पायेंगे कि हम कुछ भी नहीं कर रहे हैं, क्योंकि हम सारी मुसीबतों के लिये दूसरों को जिम्मेदार ठहराने की प्रवृत्ति को छोडने को और स्वयं को तनिक भी दोषी मानने को तैयार हो ही नहीं सकते। हमें तो हमारे धर्मगुरुओं और शंकराचार्यों द्वारा सिखाया गया है कि हम तो गलत हो ही नहीं सकते! सारा का सारा दोष तो बाहरी संस्कृति का है। हमें बताया गया है कि रोग के जीवाणू तो बाहर से फैलाये जाते हैं। हमारी संस्कृति तो इतनी पवित्र है कि हमारे यहाँ किसी प्रकार की बुराई पैदा हो ही नहीं सकती। परिणाम सामने हैं!

क्या हम इस बात को स्वीकार करना पसन्द करेंगे कि इस देश में आईएएस नाम का जीव भ्रष्टाचार, अत्याचार, आतंकवाद, नक्सलवाद, उग्रवाद, साम्प्रदायिकता जैसी देश को खोखला एवं पथभ्रष्ट कर देने वाली सभी बुराईयों की असली जड है। जिसे अंग्रेजों ने इन्हीं सब कामों को पैदा करने के लिये जन्म दिया था, लेकिन यह जीव आजादी के बाद भी ज्यों का त्यों कुर्सी पर बिराजमान है, बल्कि और ताकतवर हो गया है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले गौरा अंग्रेज था, अब काला अंग्रेज बैठ गया है। यदि किसी को विश्वास नहीं हो तो जाँच करवाकर देख लो यूपीएएससी से भर्ती होने के बाद १० वर्ष की सेवा करते-करते ८० प्रतिशत से अधिक आईएएस कम से कम ५० करोड से अधिक की सम्पत्ती के स्वामी बन जाते हैं!

बेरोकटोक धन कमाने के लिये आजाद ऐसे लोगों को धन के संग्रह के साथ-साथ, आसानी से उपलब्ध गरम गोश्त की भी जरूरत होती है। ऐसे में उन्हें अविवाहित माधुरियाँ आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। फिर माधुरियों के लिये पाकिस्तान तक पहुँचना मुश्किल नहीं रह जाता? केतन देसाई जैसे भ्रष्ट लोग क्या देश द्रोही नहीं हैं? क्या केतन देसाई या ललित मोदी अकेले इतने बडे कारनामों को अंजाम दे सकते हैं? कभी नहीं, हर एक माधुरी गुप्ता, हर एक ललित मोदी, हर एक केतन देसाई जैसों को इस देश के नीति-नियन्ता आईएएस और राजनेताओं का बरदहस्त प्राप्त होता है। जिन्हें हम सब आम लोग जमकर सम्मान देते हैं। जब तक भ्रष्टाचार करने वालों को आजादी मिली रहेगी और हम इन भ्रष्टाचारियों को सम्मान तथा पुरस्कार देते रहेंगे, तब तक देशद्रोह, आतंकवाद और नक्सलवाद चलता ही रहेगा, कोई कुछ नहीं कर सकता।

यदि हम दुनिया को बदलना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें स्वयं को बदलना होगा। जो बदलाव हम दूसरों में देखना चाहते हैं, सबसे पहले वे सभी बदलाव हमें अपने-आप में करने होंगे और जो कुछ हम दूसरों से पालन करने को कहते हैं, उन सभी बातों को हमें अपने आचरण से प्रमाणित करना होगा। हमें शहीद भगत सिंह और सुभाष चन्द्र बोस जैसे सर्वकालिक सच्चे राष्ट्रीयवीरों के दिलों में धधकती ज्वाला, अपने-आपके अन्दर जलानी होगी, लेकिन सावधान भगत सिंह जैसी गलती कभी नहीं करें! आक्रोश की आग में भगत सिंह की भांति स्वयं को नहीं जलायें, क्योंकि सारा देश जानता है कि यदि भगत सिंह और उनके जैसे देशभक्त जिन्दा रहे होते तो मोहन दास कर्मचन्द गाँधी देश के टुकडे करने के लिये आजाद नहीं होता। आजादी के बाद शासक तुष्टिकरण की कुनीतियों के जरिये समाज को विभाजित नहीं कर पाते। हमें भगत सिंह, चन्द्र शेखर, सुभाष चन्द्र बोस, ऊधम सिंह, असफाकउल्ला जैसे अमर शहीद देश भक्तों के संघर्ष को अपने दिलों में संजोकर, इस देश और मानवता को बचाने के लिये अपने आसपास के वातानुकूलित कक्षों में बिराजे देशद्रोहियों और गद्दारों से लडना होगा। तब ही हम विदेशी ताकतों से लडने में सक्षम हो सकते हैं।

अन्त में एक बात और कि शुक्र है कि पकडी गयी महिला मुसलमान नहीं है, अन्यथा आरएएस, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, दुर्गावाहिनी, श्री राम सेना, शिव सेना और बीजेपी के अन्य सहयोगी संगठन देश में सडकों पर उतर आते और उत्पात मचाना शुरू कर देते।

-लेखक जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र "प्रेसपालिका" के सम्पादक एवं राष्ट्रीय संगठन "भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान" (बास), के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं,
जिसमें दि. 03/05/2010 तक 4231 आजीवन कार्यकर्ता देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं
। फोन नं. 0141- 2222225 (सायं 7 से 8 बजे के बीच)।