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Monday, April 13, 2015

एनसीआरटी की स्थापना से आज तक अजा/अजजा के कर्मचारियों के साथ भेदभाव जारी कार्यवाही हेतु हक रक्षक दल के प्रमुख ने प्रधानमंत्री और मानव संसाधन मंत्री को पत्र लिखा

एनसीआरटी की स्थापना से आज तक अजा/अजजा के कर्मचारियों के साथ भेदभाव जारी
कार्यवाही हेतु हक रक्षक दल के प्रमुख ने प्रधानमंत्री और मानव संसाधन मंत्री को पत्र लिखा
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जयपुर। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) में अजा/अजजा के कर्मचारियों के मौलिक अधिकारों का हनन, अत्याचार, भेदभाव और मनमानी के विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही करने के सम्बन्ध में हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन के राष्ट्रीय प्रमुख डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने प्रधानमंत्री, भारत सरकार, नयी दिल्ली और मानव संसाधन मंत्री भारत सरकार, नयी दिल्ली को पत्र लिखकर मांग की है कि अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों को जानबूझकर क्षति पहुंचाने वाले गैर अजा/अजजा प्रशासकों के खिलाफ कठोर दंडात्मक कार्यवाही की जावे और अभियान चलाकर अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों को पदोन्नतियां प्रदान की जावें।
पत्र में डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने लिखा है कि हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन के राष्ट्रीय प्रमुख डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने प्रधानमंत्री, भारत सरकार, नयी दिल्ली और मानव संसा को प्राप्त जानकारी के अनुसार-भारत सरकार के मानव संसाधन विभाग के अधीन संचालित राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद में इसकी स्थापना से आज तक अजा एवं अजजा के कर्मचारियों को संविधान में निर्धारित प्रावधानों और सरकारी नीति तथा प्रक्रियानुसार पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने के लिये विधिवत रोस्टर बनाकर लागू नहीं किया गया है। रोस्टर में जानबूझकर विसंगतियॉं छोड़ने वाले कर्मचारियों को अनारक्षित वर्ग के उच्चाधिकारियों का दुराशयपूर्ण संरक्षण प्राप्त है। अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों के उच्च श्रेणी में पद रिक्ति होने के वर्षों बाद तक डीपीसी का गठन नहीं किया जाता है। यही नहीं अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों की पदोन्नति की पात्रता में किसी भी प्रकार की छूट का नियम लागू नहीं किया गया है। जबकि भारत सरकार की सभी मंत्रालयों में इस प्रकार की छूट के स्पष्ट प्रावधान लागू हैं।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने आगे लिखा है कि इस प्रकार उपरोक्त कारणों से राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की स्थापना से आज तक अनारक्षित वर्ग के उच्च पदस्थ प्रशासकों द्वारा निम्न से उच्च पदों पर अजा एवं अजजा के कर्मचारियों की पदोन्नति दुराशयपर्वक बाधित की जाती रही हैं और इस कारण राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की स्थापना से आज तक उच्चतम पदों पर अजा एवं अजजा वर्गों का संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के अनुसार पर्याप्त और निर्धारित प्रतिनिधित्व सम्भव नहीं हो पाया है। जिसके चलते अजा एवं अजजा के निम्न स्तर के कर्मचारियों का संरक्षण और उनका उत्थान असंसभव हो चुका है। परिषद के उच्च पदस्थ गैर-अजा एवं अजजा वर्ग के प्रशासकों का यह कृत्य अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की धारा 3 (1) (9) के तहत दण्डनीय अपराध की श्रेणी में आता है।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने उपरोक्त तथ्यों से अवगत करवाकर प्रधानमंत्री और मानव संसाधन मंत्री  से आग्रह है कि-

1. अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों को पदोन्नति की क्षति पहुँचाने वाले गैर-अजा एवं अजजा वर्गों के उपरोक्तानुसार लिप्त रहे सभी प्रशासकों के विरुद्ध अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की धारा 3 (1) (9) के तहत आपराधिक मुकदम दर्ज करवाकर उन्हें कारवास की सजा दिलवाई जावे और साथ ही साथ ऐसे प्रशासकों के विरुद्ध विभागीय सख्त अनुशासनिक कार्यवाही भी की जावे। जिससे भविष्य में अजा एवं अजजा वर्गों के हितों को नुकसान पहुँचाने की कोई गैर-अजा एवं अजजा वर्गों का प्रशासक हिम्मत नहीं जुटा सके।
2. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की स्थापना से आज तक अजा एवं अजजा वर्गों को हुए नुकसान की भरपाई करने के लिये किसी बाहरी स्वतन्त्र और निष्पक्ष ऐजेंसी से सभी पदों का सही रोस्टर बनवाया जावे और भारत सरकार की नीति के अनुसार पदोन्नति पात्रता में शिथिलता प्रदान करते हुए अजा एवं अजजा वर्गों के समस्त रिक्त पदों को अभियान चलाकर तुरन्त प्रभाव से भरवाये जाने के आदेश प्रदान किये जावें।
पत्र के अंत में डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने लिखा है की पत्र पर की जाने वाली कार्यवाही सेहक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन को अवगत करवाने का कष्ट करें।

(डॉ. पुरुषोत्तम मीणा)
राष्ट्रीय प्रमुख
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लिखा गया पात्र  ----------------------------------------------------------------------------
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प्रेषक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन 
राष्ट्रीय कार्यालय : 7, तंवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
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पत्रांक : /भारत सरकार/पत्र/2 दिनांक : 13.04.2015
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प्रतिष्ठा में :
प्रधानमंत्री, भारत सरकार, नयी दिल्ली।
शिक्षामंत्री, भारत सरकार, नयी दिल्ली।

विषय : राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) में अजा/अजजा के कर्मचारियों के मौलिक अधिकारों का हनन, अत्याचार, भेदभाव और मनमानी के विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही करने के सम्बन्ध में।
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इस संगठन को प्राप्त जानकारी के अनुसार-

भारत सरकार के मानव संसाधन विभाग के अधीन संचालित राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद में इसकी स्थापना से आज तक अजा एवं अजजा के कर्मचारियों को संविधान में निर्धारित प्रावधानों और सरकारी नीति तथा प्रक्रियानुसार पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने के लिये विधिवत रोस्टर बनाकर लागू नहीं किया गया है। रोस्टर में जानबूझकर विसंगतियॉं छोड़ने वाले कर्मचारियों को अनारक्षित वर्ग के उच्चाधिकारियों का दुराशयपूर्ण संरक्षण प्राप्त है। अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों के उच्च श्रेणी में पद रिक्ति होने के वर्षों बाद तक डीपीसी का गठन नहीं किया जाता है। यही नहीं अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों की पदोन्नति की पात्रता में किसी भी प्रकार की छूट का नियम लागू नहीं किया गया है। जबकि भारत सरकार की सभी मंत्रालयों में इस प्रकार की छूट के स्पष्ट प्रावधान लागू हैं।

इस प्रकार उपरोक्त कारणों से राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की स्थापना से आज तक अनारक्षित वर्ग के उच्च पदस्थ प्रशासकों द्वारा निम्न से उच्च पदों पर अजा एवं अजजा के कर्मचारियों की पदोन्नति दुराशयपर्वक बाधित की जाती रही हैं और इस कारण राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की स्थापना से आज तक उच्चतम पदों पर अजा एवं अजजा वर्गों का संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के अनुसार पर्याप्त और निर्धारित प्रतिनिधित्व सम्भव नहीं हो पाया है। जिसके चलते अजा एवं अजजा के निम्न स्तर के कर्मचारियों का संरक्षण और उनका उत्थान असंसभव हो चुका है। परिषद के उच्च पदस्थ गैर-अजा एवं अजजा वर्ग के प्रशासकों का यह कृत्य अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की धारा 3 (1) (9) के तहत दण्डनीय अपराध की श्रेणी में आता है।

अत: आपको उपरोक्त तथ्यों से अवगत करवाकर आग्रह है कि-

  • 1. अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों को पदोन्नति की क्षति पहुँचाने वाले गैर-अजा एवं अजजा वर्गों के उपरोक्तानुसार लिप्त रहे सभी प्रशासकों के विरुद्ध अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की धारा 3 (1) (9) के तहत आपराधिक मुकदम दर्ज करवाकर उन्हें कारवास की सजा दिलवाई जावे और साथ ही साथ ऐसे प्रशासकों के विरुद्ध विभागीय सख्त अनुशासनिक कार्यवाही भी की जावे। जिससे भविष्य में अजा एवं अजजा वर्गों के हितों को नुकसान पहुँचाने की कोई गैर-अजा एवं अजजा वर्गों का प्रशासक हिम्मत नहीं जुटा सके।
  • 2. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की स्थापना से आज तक अजा एवं अजजा वर्गों को हुए नुकसान की भरपाई करने के लिये किसी बाहरी स्वतन्त्र और निष्पक्ष ऐजेंसी से सभी पदों का सही रोस्टर बनवाया जावे और भारत सरकार की नीति के अनुसार पदोन्नति पात्रता में शिथिलता प्रदान करते हुए अजा एवं अजजा वर्गों के समस्त रिक्त पदों को अभियान चलाकर तुरन्त प्रभाव से भरवाये जाने के आदेश प्रदान किये जावें।
  • 3. उक्त पत्र पर की जाने वाली कार्यवाही से इस संगठन को अवगत करवाने का कष्ट करें।

भवदीय 
(डॉ. पुरुषोत्तम मीणा)
राष्ट्रीय प्रमुख

Friday, April 5, 2013

राजस्थान को गुजरात बनाने से रोक पाना मुश्किल होगा।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

राजस्थान शुरू से ही शान्ति, सौहार्द, सांस्कृतिक मिठास और मेहमान नवाजी के लिये जाना जाता रहा है, लेकिन पिछले दो दशकों से राजस्थान में ऐसे तत्वों का दबदबा बढा है, जो यहॉं की शान्ति और सौहार्द को तहस-नहस करने पर तुले हुए हैं। इनका एकमात्र लक्ष्य है किसी भी प्रकार से सत्ता पर काबिज होना। ये जब-

Thursday, March 10, 2011

सभी लोक सेवक कृपया याद रखें!

सभी लोक सेवक कृपया याद रखें!

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' / Dr. Purushottam Meena 'Nirankush'

जब एक लोक सेवक (जनता का नौकर), जनता के प्रति अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह कानून द्वारा अधिरोपित ईमानदारी से, निष्ठा से और कानून में निर्धारित समय पर/में नहीं करता है तो उससे वह जनता के अधिकारों का हनन कर रहा होता है, जिससे लोक सेवक (जनता का नौकर) द्वारा विभागीय एवं भारतीय दंड संहिता की धारा 406 तथा 409 आदि में वर्णित कानूनों का उल्लंघन होता है और कानून का उल्लंघन ही अपराध का निर्माण करते हैं, जिसके लिए कानून में सजा का प्रावधान है.

लोक सेवक (जनता का नौकर) कुर्सी के मद में अकेला ही मनमानी करता है, लेकिन सजा उसके पूरे परिवार को भुगतनी पड़ती है. पकडे जाने और सजा मिलने पर बच्चों का जीवन बर्बाद हो जाता है. ऐसे लोक सेवक (जनता
के
नौकर), जनता में असंतोष पैदा करने का कारण भी बनते हैं, ऐसे लोक सेवकों के कारण लोकप्रिय एवं लोकतान्त्रिक सरकारें बदनाम होती हैं.

Sunday, February 20, 2011

एक साथ काम करना सफलता है!

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

श्री संजय राणा जी ने क्रान्तिकारी देशभक्त हिन्दुस्तान के नाम से इसी ब्लॉग पर प्रकाशित मेरे आलेख "आपने पुलिस के लिये क्या किया" पर निम्न टिप्पणी दी है।

"बहुत ही सही कहा है आपने पर कुछ पुलिस वाले होते ही ऐसे हैं जैसे ही खाकी में आते हैं उनका रूप ही बदल जाता है अभी कल की ही बात है हम अपनी बोलेरो गाड़ी से बरोटीवाला हिमाचल से करनाल हरयाना के लिए जा रहे थे तो जैसे ही हमारी गाड़ी अम्बाला क्रोस करके निकली तो पुलिस के एक नाके ने हमें हाथ दिया हमने गाड़ी सईड की और इतने में एक कोंस्टेबल आया और ड्राईवर को कहने लगा की गाड़ी के कागज़ दिखा तो ड्राईवर ने सारे सम्बंधित कागजात दिखाए फिर उसने लाईन्सेंस माँगा उसने वो भी दिखा दिया, इतने में वो कहने लगा नीचे उतर और साहब के पास आजा, वो ड्राईवर भी उतर गया और साथ ही साथ दूसरी तरफ से में भी उसके साथ उनके बड़े साहब के पास पहुंचा वो कड़क आवाज में पूछा कितने आदमी बैठे हैं गाड़ी में ड्राईवर ने कहा साहब आठ और एक में यानी कुल नौ , साहब कहने लगा कितने पास हैं गाड़ी में उसने कहा इतने ही पास हैं साहब जितने बिठाये हैं कहने लगा बेवकूफ बनाता है मेरा उसने कहा साहब इसमें बेवकूफ की कोण सी बात है कहने लगा तुने सीट बेल्ट क्यूँ नि लगा रखी थी उसने कहा साहब लगा राखी थी पर जब आपके पास आना था तो वो तो खोल के ही आना पडेगा पर वो कहाँ माने कहा मन्ने बेवकूफ ब्न्नावे तू बीस साल हो गए नोकरी कर्वे से, ये तो चालान हे तेरा हमने रक्वेस्ट भी की की साहब क्यूँ जान बूझ के कर रहे हो पर वो नि मन और उसने सीट बेल्ट का चालान कर ही दिया और कहा सिर्फ सौ रुपे का चालान करा मेने तेरे लिए इन्ना करूँ की दस दिना के अंदर अंदर अपनी आर सी अम्बाला पुलिस लाईन ते ले जावें आईके बस जा अब क्या मुंह देखे खड़े खड़े से...
बस इतना तानाशाह सारा मूड ही खराब हो गया तो फिर आप ही बताओ की कैसे हैं ये वर्दी वाले हमारे सेवक..."
उक्त टिप्पणी के प्रतिउत्तर में, मैंने श्री संजय जी को निम्न जानकारी प्रस्तुत की है:-

आदरणीय श्री संजय राणा जी,
नमस्कार।

आशा है कि आप कुशल होंगे।

आपने बास-वोइस पर टिप्पणी की एवं बास-वोइस पर प्रकाशित अनेक आलेखों को अपने ब्लॉग पर भी प्रकाशित किया हुआ है। केवल इतना ही नहीं, बल्कि आपने अपने ब्लॉग पर भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) की सदस्यता के लियेhttp://baasindia.blogspot.com का लिंक भी दिया हुआ है। यह सब आपके एक अच्छे व्यक्ति होने की प्रीतीति कराने के संकेत हैं। इस सबके लिये बास के 17 राज्यों में सेवारत 4610 आजीवन सदस्यों की ओर से मैं आपका आभार ज्ञापित करता हूँ। आपकी ओर से कुछ सवाल भी उठाये गये हैं। इन सबके बारे में कुछ बातें आपके समक्ष रखना जरूरी समझता हूँ। यदि एक भी बात अनुचित लगे तो कृपया अवगत कराने का कष्ट करें :-

यह बात सही है और हम सभी जानते भी हैं कि देशभर में भ्रष्टाचार हर जगह पर व्याप्त है। जिसके शिकार सभी आम लोग हो रहे हैं। मैं ऐसा मानता हूँ कि अब समय बहुत तेजी से बदल रहा है। केवल इतने से ही काम नहीं चल सकता कि हम सही हैं और कानून का पालन करते हैं, इस कारण हमें कोई परेशान नहीं करें। आप रोड पर चलते समय इस बात का अनेकों बार अहसास कर सकते हैं। जब आप यातायात नियमों का पालन करते हुए वाहन चलाते हैं या पैदल चलते हैं। फिर भी दुर्घटना हो जाती है या होते-होते बचती है। कहने का मतलब यह है कि आपको सडक पर चलना है तो न मात्र स्वयं यातायात के नियमों का पालन करना है, बल्कि दूसरों द्वारा नियमों का पालन नहीं करने से भी अपने आपको बचाना होगा। क्या करोगे जिन्दा रहने के लिये जरूरी है।

इसी प्रकार से हमें भ्रष्ट व्यवस्था में रहते हुए यदि स्वयं को भ्रष्टाचार से बचाना है तो न मात्र स्वयं सही रहना होगा, बल्कि इसके साथ-साथ हमें अपने बचाव एवं संरक्षण के सरकार से इतर भी कुछ उपाय करने होंगे। जब बर्षात हो रही होती है या होने की सम्भावना होती है तो हम घर से छतरी या रैनकोट साथ में लेकर निकलते हैं। यद्यपि इसके बावजूद भी अनेक बार हम बर्षात में न मात्र भीग जाते हैं, बल्कि बीमार भी हो जाते हैं। क्योंकि तूफानी बर्षात छतरी को भी उडा ले जाती है। बर्षात के साथ ओले गिरने पर छतरी या रैनकोट बचाव नहीं कर सकते हैं। इसके बावजदू भी हम बर्षात से बचाव के लिये घर से छतरी और रैनकोट साथ में लेकर अवश्य निकलते हैं।

हम सबको ज्ञात है कि रोड पर कहीं न कहीं यातायात पुलिस अवश्य मिलेगी। हमें यह भी ज्ञात है और यदि ज्ञात नहीं है तो ज्ञात होना चाहिये कि यातायात पुलिस में पोस्टिंग करवाने के लिये बडे अफसरों को अग्रिम घूस तो देनी ही होती है। इसके अलावा जब तक यातायात पुलिस में रहना है, वाहनों के चालान का टार्गेट पूरा करने के साथ-साथ प्रतिमाह निर्धारित रकम भी साहब लोगों को पहुँचानी होती है। जो लोग आपकी तरह से हर प्रकार के नियम का पालन करके चलते हैं, उन्हें चालान कटवाना होता है और केवल जुर्माना भरना होता है, जिससे यातायात पुलिस का टार्गेट पूरा होता है। लेकिन जो लोग कानून का पालन नहीं करते हैं, उनसे हवालात में बन्द करने की धमकी के सहारे रिश्वत भी वसूली जाती है। इस सबका का यातायात पुलिस के सिपाही से लेकर यातायात मन्त्री तक सबको पता है। फिर भी कोई कुछ नहीं कर रहा है।

ऐसे में आपको और हम सबको अर्थात् सडक पर चलने वालों को ही अपने बचाव के लिये कुछ करना होगा। ऐसा करना किसी कानून के कारण तो जरूरी नहीं है, लेकिन रोड पर चलने की परिस्थितिजन्य बाध्यता अवश्य है। जिससे बचाव के उपाय कोई और नहीं, बल्कि स्वयं हमें ही करने होंगे। हम सभी जानते हैं कि जब भी हमारे मोहल्ले में मलेरिया फैलता है तो हम मलेरिया रोधी छिडकाव नहीं करने के लिये, जिम्मेदार लोगों के भरोसे नहीं बैठे रहते हैं, बल्कि मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों ये बचाव के उपाय खुद ही करते हैं और अपने आपको बीमार होने से बचाने का हर सम्भव प्रयास करते हैं, बेशक बचाव करते-करते हम अनेक बार बीमार भी हो जाते हैं, क्योंकि सब कुछ हमारे नियन्त्रण में तो नहीं होता है।

इसी प्रकार से जनता की सेवा करने के नाम पर वेतन उठाने वाले और कानून का पालन कराने के लिये तैनात लोक सेवकों अर्थात् सरकारी कर्मचारियों एवं अफसरों के कानूनी कहर से बचने के लिये देश के आम व्यक्ति को अपने स्तर पर कुछ वैकल्पिक उपाय करने होते हैं।

आम लोगों के पास अपनी एकता के अलावा और क्या है? लेकिन एकता में बहुत ताकत होती है और ताकत से लोग डरते हैं। बेशक ताकत कानूनी हो या गैर-कानूनी! ताकत के सामने कौन टिक सकता है और संगठित ताकत तो देश की सरकार तक को बदल सकती है। इसलिय हमने 1993 में "भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान" की स्थापना की थी और कानून का कवच धारण करके आम लोगों का खून पीने वालों के कहर से अपने आपको बचाने, जरूरतमन्दों की मदद करने एवं सार्वजनिक हित के मामलों में हस्तक्षेप करने के लिये सजग लोगों का एक मंच तैयार किया। जिसके सहारे हम इस कुव्यवस्था के खिलाफ संघर्षरत हैं। बेशक इसके बावजूद भी हमारे कार्यकर्ताओं को भी अनेक बार अप्रिय स्थितियों का सामना करना पडता है, लेकिन जैसा कि मैंने ऊपर लिखा है कि तूफान में छतरी उड जाने के कारण छतरी को दोष नहीं दिया जा सकता और न हीं छतरी रखना छोडा जा सकता है। तूफान की ताकत से कहीं अधिक मजबूत छतरी का निर्माण करने एवं छतरी का उपयोग करना सीखना जरूरी है।

मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि बास के "प्रोटेक्शन अम्ब्रेला" को अपनाने वालों के सम्मान एवं अधिकारों की रक्षा होती है। बशर्ते कि ऐसे लोग स्वयं ठीक हों और अपने आचरण से अपने आदर्शों को प्रमाणित कर सकें। मेरा ऐसा मानना है कि मैं वहीं बातें लोगों से कहूँ, जिनपर सबसे पहले मैं स्वयं अमल कर सकूँ। जिन बातों को मैं अपने जीवन में धारण नहीं कर सकता, उन्हें दूसरे कैसे अपनायेंगे? संजय जी क्षमा कीजियेगा आप जब तक बास के सदस्य नहीं हैं, आपके ब्लॉग के पाठकों को आप"http://baasindia.blogspot.com" का लिंक देकर भी बास की सदस्यता के लिये ईमानदारी से प्रेरित नहीं कर सकते हैं।

हमारे अनेक सदस्यों को आपकी ही भांति यातायात पुलिस से दो-चार होना पडता है, लेकिन जैसे ही यातायात पुलिस को पता चलता है कि वाहन मालिक या चालक बास का पदाधिकारी है, कम से कम धौंस-दबट या असंसदीय भाषा का प्रयोग करने या अकारण चालान काटने से पूर्व यातायात पुलिस को सोचना पडता है। ऐसा नहीं है कि बास का फोटो कार्ड अभेद्य "सुरक्षा कवच" है। अनेक बार बास के परिचय के बाद भी अप्रिय स्थिति का सामना करना पडता है, जिससे घटना के बाद संगठन द्वारा कानूनी तरीके से निपटा जाता है, जो आतताईयों को अधिक कष्टप्रद अनुभव होता है।

अत: मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि हमारे कार्यकर्ताओं को अत्याचारों, नाइंसाफी एवं मनमानी के विरुद्ध काफी सीमा तक संरक्षण प्राप्त हो रहा है। इसलिये अकसर मैं जहाँ कहीं भी बुलाया जाता हूँ या जब कभी भी कहीं बोलने का मौका मिलता है, दो बातें जरूर कहता हूँ।

एक-"बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैस?" और

दूसरी-"एक साथ आना शुरूआत है, एक साथ चलना प्रगति है और एक साथ काम करना सफलता है!"

श्री संजय जी पुलिस जैसी भी है, उसे उसके लिये दोषी ठहराकर समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता। जैसा समाज है और समाज में जितने भी गुण-दोष हैं, वैसे ही समाज में नागरिक हैं और उन्हीं नागरिकों में से पुलिस है।

शुभकामनाओं सहित।
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
098285-02666
0141-2222225

Monday, November 29, 2010

संगठित जनता की एकजुट ताकत के आगे झुकना सत्ता की मजबूरी!

"या तो हम अत्याचारियों के जुल्म और मनमानी को सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय-सरकारी कर्मचारी, अफसर तथा आम लोग एकजुट होकर एक-दूसरे की ढाल बन जायें।"

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
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आज हमारे लिये सबसे जरूरी और महत्वपूर्ण है कि देश या समाज के लिये न सही, कम से कम अपने आपके और अपनी आने वाली पीढियों के सुखद एवं सुरक्षित भविष्य के लिये तो हम अपने वर्तमान जीवन को सुधारें। यदि हम सब लोग केवल अपने वर्तमान को सुधारने का ही दृढ निश्चय कर लें तो आने वाले कल का अच्छा होना तय है, लेकिन हमारे आज अर्थात् वर्तमान के हालात तो दिन-प्रतिदिन बिगडते ही जा रहे हैं। हम चुपचाप सबकुछ देखते और झेलते रहते हैं। जिसका दुष्परिणाम यह है कि आज हमारे देश में जिन लोगों के हाथों में सत्ता की ताकत हैं, उनमें से अधिकतर का सच्चाई, ईमानदारी एवं इंसाफ से दूर-दूर का भी नाता नहीं रह गया है। अधिकतर भ्रष्टाचार के दलदल में अन्दर तक धंसे हुए हैं और अब तो ये लोग अपराधियों को संरक्षण भी दे रहे हैं। ताकतवर लोग जब चाहें, जैसे चाहें देश के मान-सम्मान, कानून, व्यवस्था और संविधान के साथ बलात्कार करके चलते बनते हैं और सजा होना तो दूर इनके खिलाफ मुकदमे तक दर्ज नहीं होते! जबकि बच्चे की भूख मिटाने हेतु रोटी चुराने वाली अनेक माताएँ जेलों में बन्द हैं। इन भ्रष्ट एवं अत्याचारियों के खिलाफ यदि कोई आम व्यक्ति या ईमानदार अफसर या कर्मचारी आवाज उठाना चाहे, तो उसे तरह-तरह से प्रताड़ित एवं अपमानित करने का प्रयास किया जाता है और सबसे दु:खद तो ये है कि पूरी की पूरी व्यवस्था अंधी, बहरी और गूंगी बनी देखती रहती है।

अब तो हालात इतने बिगडते चुके हैं कि मसाले, घी, तेल और दवाइयों तक में धडल्ले से मिलावट की जा रही है। ऐसे में कितनी माताओं की कोख मिलावट के कारण उजड जाती है और कितनी नव-प्रसूताओं की मांग का सिन्दूर नकली दवाईयों के चलते युवावस्था में ही धुल जाता है, कितने पिताओं को कन्धा देने वाले तक नहीं बचते, इस बात का अन्दाजा भी नहीं लगाया जा सकता। इस सबके उपरान्त भी इन भ्रष्ट एवं अत्याचारियों का एकजुट होकर सामना करने के बजाय हम चुप्पी साधकर, अपने कानूनी हकों तक के लिये भी गिडगिडाते रहते हैं।

अधिकतर लोग तो इस डर से ही चुप्पी साध लेते हैं कि यदि वे किसी के खिलाफ बोलेंगे तो उन्हें भी फंसाया जा सकता है। इसलिये वे अपने घरों में दुबके रहते हैं! ऐसे लोगों से मेरा सीधा-सीधा सवाल है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले समय में हमारे आसपास की गंदगी को साफ करने वाले यह कहकर सफाई करना बन्द कर देंगे, कि गन्दगी साफ करेंगे तो गन्दगी से बीमारी होने का खतरा है? खानों में होने वाली दुर्घटनाओं से भयभीत होकर खनन मजदूर यह कहकर कि खान गिरने से जीवन को खतरा है, खान में काम करना बंद कर दे, तो क्या हमें खनिज उपलब्ध हो पायेंगे? इलाज करते समय मरीजों से रोगाणुओं से ग्रसित होने के भय से डॉक्टर रोगियों का उपचार करना बन्द कर दें, तो बीमारों को कैसे बचाया जा सकेगा? आतंकियों, नक्सलियों एवं गुण्डों के हाथों आये दिन पुलिसवालों के मारे जाने के कारण यदि पुलिस यह सोचकर इनके खिलाफ कार्यवाही करना बन्द कर दें कि उनको और उनके परिवार को नुकसान पहुँचा सकता हैं, तो क्या सामाज की कानून व्यवस्था नियन्त्रित रह सकती है? पुलिस के बिना क्या हमारी जानमाल की सुरक्षा सम्भव है? आतंकियों तथा दुश्मनों के हाथों मारे जाने वाले फौजियों के शवों को देखकर, फौजी सरहद पर पहरा देना बंद कर दें, तो क्या हम अपने घरों में चैन की नींद सो पाएंगे?

यदि नाइंसाफी के खिलाफ हमने अब भी अपनी चुप्पी नहीं तोडी और यदि आगे भी ऐसा ही चलता रहा तो आज नहीं तो कल जो कुछ भी शेष बचा है, वह सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट हो जाने वाला है। आज आम व्यक्ति को लगता है कि उसकी रक्षा करने वाला कोई भी नहीं है! क्या इसका कारण ये नहीं है, कि आम व्यक्ति स्वयं ही अपने आप पर विश्वास खोता जा रहा है? ऐसे हालात में दो ही रास्ते हैं-या तो हम अत्याचारियों के जुल्म और मनमानी को सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय-सरकारी कर्मचारी, अफसर तथा आम लोग एकजुट होकर एक-दूसरे की ढाल बन जायें। क्योंकि लोकतन्त्र में समर्पित, संगठित एवं सच्चे लोगों की एकजुट ताकत के आगे झुकना त्ता की मजबूरी है और सत्ता वो धुरी है, जिसके आगे सभी प्रशासनिक निकाय और बडे-बडे अफसर आदेश की मुद्रा में मौन खडे रहते हैं।