

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
दाम्पत्य मामलों में सलाहकार की भूमिका का वर्षों से निर्वाह करते-करते अचानक विचार आया कि हजारों लोगों की कहानियों को अपने मन में दबा कर दुनिया से विदा हो जाने के बजाय, इस दुनिया को सच्चाई से रूबरू करवाकर बताया जाये कि हमारा दाम्पत्य जीवन किस दौर से गुजर रहा है? लेकिन दम्पत्तियों के नाम, स्थान, आयु आदि के बारे में किसी भी प्रकार की जानकारी को प्रकट करना अनैतिक, गैर-कानूनी और अविश्वासपूर्ण है।
इसलिये मैं यहाँ पर पात्रों के नाम, शहरों के नाम और उनकी आयु को बदल कर अपने अनुभव बांटने जा रहा हूँ। हालांकि कुछ दम्पत्तियों ने उनके नाम सहित उनकी जानकारी प्रकाशित करने के लिये सहमति प्रदान की है, जिससे यह बात भी मजबूत होकर उभर रही है कि अब हमारे शहरों पर अमरीका एवं यूरोप का प्रभाव कितनी तेजी से बढ रहा है?
अक्सर मुझसे वे लोग मिलते हैं, जिनका विवाह हो चुका होता है और कई महिनों के बाद भी उनकी पटरी नहीं बैठ पाती है। कुछ युवक-युवति विवाह पूर्व भी सलाह लेने आते रहते हैं, जिन्हें विवाह पूर्व के यौन-सम्बन्धों को लेकर अपने भावी दाम्पत्य जीवन को लेकर अनेक प्रकार की शंकाएँ होती हैं। विवाहित जोडों की समस्याओं में भी अधिकतर मामलों में विवाह पूर्व के यौन-सम्बन्ध या विवाहेत्तर यौन सम्बन्ध ही समस्या का असली कारण होते हैं।
प्रथम आलेख में कोई दस वर्ष पहले की घटना का उल्लेख कर रहा हूँ। एक नवविवाहिता (जिसके विवाह को 20-25 दिन ही हुए थे), जिसे हम यहाँ काल्पनिक तौर पर मीनाक्षी नाम दे सकते हैं। अपने पति के साथ सिरदर्द का उपचार करवाने के बहाने मेरे पास आयी और धीरे से कहा कि क्या मैं आपसे अकेले में कुछ कह सकती हूँ। मैंने उनके पति को समझाया के वे बाहर के कमरे में बैठकर कर पत्रिकाएँ पढें, तब तक मैं आपकी पत्नी की तकलीफ सुन लेता हूँ।
मीनाक्षी ने घुमाफिरकार जो कुछ बतलाया उसका निष्कर्ष यह था कि उसकी उम्र 23 वर्ष है, वह 16 वर्ष की उम्र से लगातार अनेक पुरुषों/युवकों के साथ यौनसुख का आनन्द प्राप्त करती रही, लेकिन अपने पति से वह तनिक भी सन्तुष्ट नहीं है। उसने सीधा सवाल किया कि क्या इस समस्या का कोई समाधान सम्भव है या उसे तलाक लेना पडेगा? मैंने कुछ प्लासिबों-पिल्स देकर कहा कि चिन्ता मत करो दवाईयों से सब ठीक हो जायेगा। अपने आपको निराशा के भंवर से बाहर निकालो।
मीनाक्षी को तीन दिन बाद आने को कहा और उसके पति सुभाष (परिवर्तित नाम) को अन्दर बुलाकर अगले दिन अकेले में आने का कहा। सुभाष दूसरे दिन आकर मिला। उतावलेपन में खुदबखुद ही कहने लगा कि मेरी पत्नी ने क्या आपसे मेरे बारे में कुछ बताया है? डॉक्टर साहब बताईये मैं क्या करूँ? मुझे लगता है कि मेरी पत्नी मुझसे बिलकुल भी सन्तुष्ट नहीं है! मैंने उससे पूछा कि तुमको ऐसा क्यों लगता है, उसने बताया कि मैं अपनी पत्नी से हर रात, एक तरह से बलात्कार ही कर रहा हूँ। वह मेरा साथ नहीं देती है और रोने लगती है या जोर से गुस्सा हो जाती है। कुछ न कुछ समस्या जरूर है।
सुभाष ने बिना कुछ पूछे ही मुझे बहुत कुछ बतला दिया मैंने उससे पूछा कि विवाह पूर्व क्या स्थिति थी? पहले तो वह झेंपा लेकिन कुछ ही देर में खुलकर बताने लगा कि मैं 16-17 वर्ष का था तब से लगातार हस्तमैथुन करता आ रहा हूँ। बहुत प्रयास करने के बाद भी मुझे विवाह से पूर्व कोई लडकी नहीं मिली। इस कारण मैं हीन भावना का भी शिकार हो गया था, लेकिन खूबसूरत पत्नी पाकर मैं खुश था कि मेरा विवाहित जीवन आगे खुश रहने वाला है। परन्तु दर्भाग्य से सब बेकार हो गया! वो तो मुझसे हमेशा दूर-दूर भागती रहती है। रात को घरवालों के कारण मजबूरी में मेरे साथ आती है। शादी के बाद जो रोमांस की कल्पना थी, वैसा कुछ भी नहीं है। मैं क्या करूँ, जिससे मेरी पत्नी मेरे साथ खुशी-खुशी यौन-सम्बन्ध स्थापित कर सके?
सुभाष ने आगे बतलाया कि पहली रात को वह घबराहट एवं भय के कारण बहुत प्रयास करने के बाद भी सम्भोग नहीं कर पाया। उसे इतनी घबराहट हो गयी और उत्तेजना ही नहीं हुई। पहली रात को उसके अनुसार उसकी पत्नी का व्यवहार अच्छा था, लेकिन सारी रात कुछ नहीं कर पाने के कारण सुबह बिस्तर छोडते समय ही मीनाक्षी ने सुभाष को व्यंगात्मक लहजे में कहा कि मुझसे शादी किसलिये की है? बस इसके बाद तो सुभाष की मनोस्थित अत्यन्त खराब हो गयी। वह शर्म के मारे मरा जा रहा था, उसने बताया कि पत्नी की बात सुनकर एक बार तो उसके मन में खुदकुशी का विचार भी आया था।
सुभाष ने बतलाया कि उसने अपने आपको जैसे-तैसे संभाला और साहस करके अपनी पत्नी को समझाया कि आज उसकी तबियत ठीक नहीं है। शान्त रहो आगे भी बहुत सारी रात आयेंगी। इस पर उसकी पत्नी ने उसे उलाहना दिया कि सुहाग रात तो दुबारा नहीं आने वाली! कहते-कहते सुभाष मेरे सामने रो दिया था।
सुभाष ने आगे बताया कि जैसे-तैसे अगली रात को उसने अर्द्ध-उत्तेजना में अपनी पत्नी से सम्भोग का प्रयास किया तो कुछ ही क्षणों में वीर्यपात हो गया। इस पर उसकी पत्नी गुस्सा हो गयी और रोने गली। साहस करके कुछ समय बाद दुबारा सम्भोग करने का प्रयास किया तो इन्द्रिय में उत्तेजना तो पूर्ण थी, लेकिन मीनाक्षी ने सहयोग ही नहीं दिया और बिना यौनि में इन्द्रिय को डाले ही वीर्यपात हो गया।
मैंने सुभाष को भी तीन दिन बाद अकेले आने को कहकर और कुछ प्लासिबों-पिल्स देकर विश्वास दिलाया कि उसे कोई बीमारी नहीं है और वह पूरी तरह से स्वस्थ है। उसे केवल अपने आत्मविश्वास को बनाये रखने की जरूरत है। उससे कह दिया कि जब भी वह अपनी पत्नी को लेकर आये तो उसे अन्दर छोडकर, खुद बाहर बैठ जाये।
अगली बार जब सुभाष के साथ मीनाक्षी आयी तो वह प्रसन्न थी। सुभाष बाहर बैठ गया। वह बोली डॉक्टर साहब आपने मेरे पति को कुछ कहा? नहीं मैंने तो कुछ नहीं कहा, मैंने उसे स्पष्ट किया! मीनाक्षी बोली, आपके पास से जाने के बाद मुझे सुभाष कुछ बदला-बदला सा लग रहा है? डॉक्टर साहब कुछ ऐसा करें कि हमारा जीवन बर्बाद होने से बच जाये।
मीनाक्षी की बातों से लगा कि वह विवाह पूर्व की बातों को लेकर स्वयं पर गुस्सा थी और स्वयं को अपराधी मान रही थी। उसका कहना था कि मैंने विवाह पूर्व जो पाप किये हैं, मुझे उसी की सजा मिल रही है।
मीनाक्षी को समझाया कि सुभाष में कोई शारीरिक दोष नहीं है, तुम उसे न चाहते हुए भी पूरा सहयोग दो और सम्भोग के दौरान ऐसा प्रकट करो कि जैसे तुमको पूर्ण यौनानन्द की प्राप्ति हो रही है, फिर देखना कुछ ही दिनों में चमत्कार हो जायेगा। इसके अलावा यौनि को सिकोडने के कुछ तरीके भी मीनाक्षी को सुझाये और तीन दिन की प्लासिबो-पिल्स दे दी।
अगले दिन सुभाष खुश था, बोला साहब आपने तो चमत्कार कर दिया। मेरी पत्नी भी बदल गयी है, मुझे भी सम्भोग में आनन्द आ रहा है। लेकिन अभी भी पूर्ण सुधार बाकी है। उसने बताया कि उसकी असल समस्या यह है कि उसकी पत्नी की यौनि ढीलीढाली है, जिसके कारण उसे घर्षण में उतना भी आनन्द नहीं आता, जितना कि हस्तमैथुन में आता था। सुभाष ने बताया कि इसलिये वह अभी भी दिन में एक बार हस्तमैथुन के जरिये यौनसुख प्राप्त करता है।
मैंने सुभाष को बतलाया कि तुम्हारी समस्या की असली जड यही सोच है। तुम अपनी हथेली के मनमाफिक दबाव के साथ अपनी इन्द्रिय को उत्तेजित करके यौनसुख प्राप्त करने के आदि हो चुके हो, जबकि यौनि का अन्दर का भाग बहुत ही नाजुक और लचीला तथा हथैली की तुलना में बेहद कौमल होता है, जो तुमको ढीलाढाला अनुभव होता है। प्रकृति की अनुपम सौगात यौनि की कौमलता को तुम समझ ही नहीं पा रहे हो और अप्राकृतिक हस्तमैथुन को सच्चा यौनानन्द समझ बैठे हो। जब तक इस मानसिकता को नहीं बदलोगे, न तुम सुखी रहोगे और न तुम्हारी पत्नी को सुखी रख सकोगे। तुमको हस्तमैथुन के बारे में सब कुछ भुलाकर पत्नी संसर्ग को ही सच्चा सुख मानना होगा। इसके अलावा मैंने उसे विश्वास दिलाया कि तुम्हारी पत्नी को कुछ ऐसी दवाई दी हैं, जिनसे उसकी यौनि में कुछ कसावट आयेगी। लेकिन तुम गलती से भी आगे कभी हस्तमैथुन नहीं करना।
अगली मुलाकता में मीनाक्षी ने भी वही बात कही कि मुझे लगता है कि विवाह पूर्व अनेक वर्षों तक अनेक पुरुषों और लडकों के साथ सम्भोग करने के कारण उसकी यौनि ढीली हो गयी है, इस कारण सुभाष को मजा नहीं आता है। इस बारे में मीनाक्षी को समझाया कि हाँ इससे कुछ फर्क जरूर पडता है, लेकिन इतना फर्क नहीं पडता जितना की वह सोचती है। उसे बतलाया कि बच्चे होने के बाद भी तो पुरुष स्त्री के साथ पूर्ण यौन आनन्द प्राप्त करता है। उसे कहा कि होम्योपैथी में कुछ दवाई ऐसी होती हैं, जो यौनि में कसावट ला देती हैं। एक माह तक इसका सेवन करो और अपने दिमांग से पुरानी बातों को निकाल दो। तुम पूर्ण नारी हो और तुम्हारे पति पूर्ण पुरुष हैं। दोनों को एक-दूसरे के बारे में कुछ गलतफहमियाँ हैं, जिन्हें समझकर तुम सुखी एवं सन्तुष्ट जीवन जी सकते हो।
कुल मिलकार नतीजा ये हुआ कि करीब दो माह तक कुछ होम्योपैथिक दवाईयों तथा प्लासिबो-पिल्स का सेवन करने एवं हमारी परामर्श रूपी मनोचिकित्सा के बाद मीनाक्षी एवं सुभाष दोनों के जीवन में बहार आ गयी और उनका यौन जीवन सन्तोषप्रद हो गया।
परमात्मा की कृपा से सुभाष एवं मीनाक्षी के दो फूल से बच्चे भी हैं। जरा-जरा सी भ्रान्ति जीवन को बर्बाद कर देती हैं।
आजकल ऐलोपैथ चिकित्सक युवकों को खुलेआम यह सलाह देते हैं कि हस्तमैथुन से कोई नुकसान नहीं होता। मैं भी मानता हूँ कि कोई बडा शारीरिक नुकसान नहीं होता, लेकिन इसके मानसिक कुप्रभाव घातक होते हैं जो सम्पूर्ण जीवन को बर्बाद कर सकते हैं। इसलिये हस्तमैथुन के मानसिक कुप्रभावों से बचने के लिये हस्तमैथुन कभी नहीं करें और यदि अब से पूर्व कोई युवक करता रहा है तो हस्तमैथुन एवं यौनिजनति यौन सुख में तुलना करके अपने यौन जीवन को बर्बाद नहीं करें।
अन्त में वही एक पंक्ति जो मैं हमेशा कहता रहा हूँ कि-
सेक्स दो टांगों के बीच का खेल नहीं, बल्कि दो कानों के बीच (दिमांग) का खेल है।
अत: स्वस्थ सेक्स के लिये स्वस्थ शरीर के साथ-साथ स्वस्थ मन को होना बेहद जरूरी है।
..................-लेखक होम्योपैथ चिकित्सक, मानव व्यवहारशास्त्री, दाम्पत्य विवादों के सलाहकार, विविध विषयों के लेखक, टिप्पणीकार, कवि, शायर, चिन्तक, शोधार्थी, तनाव मुक्त जीवन, लोगों से काम लेने की कला, सकारात्मक जीवन पद्धति आदि विषय के व्याख्याता तथा समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध १९९३ में स्थापित एवं १९९४ से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। जिसमें ०९ सितम्बर, २०१० तक, ४४५४ रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता देश के १७ राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. ०१४१-२२२२२२५ (सायं ७ से ८ बजे)