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Saturday, April 26, 2014

ढोंगी बाबा रामदेव का कलुषित चरित्र उजागर!

रामदेव नाम का ढोंगी बाबा असल में कितने घिनौने चरित्र का और कितनी घटिया रुग्ण मानसिकता का शिकार है। जो दूसरों का उपचार करने की बात करता है, उसका स्वयं का मस्तिष्क कितना विकृत हो चुका है। जिसे दलित समाज की बहन-बेटियों की इज्जत को तार-तार करने में शर्म नहीं आती, उसे इंसान कहना ही इंसान को गाली देना है। जो पुरुष एक औरत की इज्जत लूटता है तो उसको फांसी की सजा की मांग की जाती है। रामदेव ने तो देश की करोड़ों दलित बहन-बेटियों की इज्जत को तार-तार कर दिया है, अब रामदेव को कितनी बार फांसी पर लटकाया जाना चाहिये, इस बारे में भी देश के लोगों को सोचना होगा। अन्यथा ये भी साफ कर देना चाहिये कि इस देश में दलित स्त्रियों की इज्जत का कोई मूल्य नहीं है! अब इस देश से सहिष्णु, निष्पक्ष और सामाजिक न्याय की व्यवस्था में विश्‍वास रखने वाले देश के बुद्धिजीवियों, स्त्री हकों के लिये सड़कों पर आन्दोलन करने वालों, दलित नेताओं, स्त्रियों के हकों के लिये बढ़चढ़कर लड़ने वाले और लडने वालियों सहित, देश के कथित स्वतन्त्र एवं समभावी मीडिया के लिये भी यह परीक्षा की सबसे बड़ी घड़ी है कि वे रामदेव को जेल की काल कोठरी तक पहुंचाने में अपनी-अपनी भूमिकाएं किस प्रकार से अदा करते हैं! अब देखना यह भी होगा कि इस देश में दलित अस्मिता की खुलेआम धज्जियां उड़ाने वाले अपराधी रामदेव का अन्तिम हश्र क्या होता है?

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

बाबा के नाम से अपने आप को सबसे बड़ा देशभक्त, ईमानदार और संत घोषित करने वाले स्वयंभू योग गुरू रामदेव का कालाधन, भ्रष्टाचार और हिन्दुत्व के बारे में असली चेहरा सारे संसार के सामने प्रकट हो गया है।

राजस्थान के अलवर लोकसभा प्रत्याशी महन्त चॉंदनाथ को कालाधन के बारे में मंच पर बात करने से रोकने का बयान सारा संसार देख चुका है। जिससे उनकी कोले धन की मुहिम के नाटक का पर्दाफाश हो चुका है। यदि रामदेव में जरा भी शर्म होती तो इस घटना के बाद वे जनता के सामने मुंह भी नहीं दिखाते, लेकिन जिन लोगों का काम देश के भोले-भाले लोगों को मूर्ख बनाना हो, उनको शर्म कहां आने वाली है? जो व्यक्ति शुरू से ही योग और प्राणायाम के नाम पर जनता के धन को लूटकर अपने नाम से ट्रस्ट बनाकर उद्योगपति बनने का लक्ष्य लेकर घर से बाहर निकला हो उससे इससे अधिक आशा भी क्या की जा सकती?

काले धन को विदेशों से देश में लाने की बढ चढकर बात करने वाला स्वयं काले धन के बारे में छुप-छुपकर बात करने की सलाह देता हो और फिर भी खुद को बाबा और देशभक्त कहलवाना चाहता हो, इससे अधिक निन्दनीय और शर्मनाक कुछ भी नहीं हो सकता।

काले धन के साथ रामदेवा का काला चेहरा सामने आये कुछ ही दिन बीते हैं कि रामदेव का कलुषित चारित्रिक भी देश ने देख लिया है। अब तो सारी हदें पार करते हुए रामदेव ने सम्पूर्ण दलित समाज की बहन-बेटियों की इज्जत को तार तार कर दिया है। रामदेव का कहना है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी दलित बस्तियों में हनीमून मनाने जाते हैं। इससे पता चलता है कि रामदेव नाम का ढोंगी बाबा असल में कितने घिनौने चरित्र का और कितनी घटिया रुग्ण मानसिकता का शिकार है। जो दूसरों का उपचार करने की बात करता है, उसका स्वयं का मस्तिष्क कितना विकृत हो चुका है। जिसे दलित समाज की बहन-बेटियों की इज्जत को तार-तार करने में शर्म नहीं आती, उसे इंसान कहना ही इंसान को गाली देना है।

जो पुरुष एक औरत की इज्जत लूटता है तो उसको फांसी की सजा की मांग की जाती है। रामदेव ने तो देश की करोड़ों दलित बहन-बेटियों की इज्जत को तार-तार कर दिया है, अब रामदेव को कितनी बार फांसी पर लटकाया जाना चाहिये, इस बारे में भी देश के लोगों को सोचना होगा। अन्यथा ये भी साफ कर देना चाहिये कि इस देश में दलित स्त्रियों की इज्जत का कोई मूल्य नहीं है!

रामदेव कितना बड़ा जालसाज है, इस बात का केवल एक ही बात से परीक्षण हो चुका है कि पांच वर्ष पहले तक रामदेव हर बीमारी का इलाज योग के जरिये करने की बात करता था और आज वही रामदेव हर बीमारी का इलाज करने हेतु खुद ही दवा बनाकर बेच रहा है। लेकिन यह इस देश का दुर्भाग्य है कि इस देश के भोले-भाले लोग ऐसे चालाक ढोंगी बाबाओं के चंगुल से आसानी से खुद को मुक्त नहीं कर पा रहे हैं। 

आसाराम का सच बहुत पहले ही देश और दुनिया के सामने आ चुका है। अब रामदेव का कलुषित चेहरा भी सबके सामने आ ही चुका है। दलितों की बहन-बेटियों की इज्जत को तार-तार करने वाला रामदेव आज भी सार्वजनिक रूप से बाबा बनकर घूम रहा है तो ये दलितों की सदाशयता है। अन्यथा तो ऐसे व्यक्ति का अंजाम तो कुछ और ही होना चाहिये था। दलितों की बहन-बेटियों और औरतों को रामदेव ने क्या वैश्या समझ रखा है कि कोई भी उनके साथ कभी भी आकर हनीमून मनाने को आजाद हो? रामदेव को ऐसी घटिया गाली देने से पहले हजार बार सोचना चाहिये था, लेकिन सोचते वहीं हैं, जिनकी कोई सदाशयी सोच हो। जिस रामदेव का एकमात्र लक्ष्य लोगों को मूर्ख बनाना हो उसे सोचने और शर्म करने की कहां जरूरत है?

इतनी घटिया टिप्पणी के बाद भी दलित समाज आश्‍चर्यजनक रूप से चुप है, ये भी दलितों के लिये अपने आप में शर्म की बात है। अन्यथा ऐसे घटिया व्यक्तव्य के बाद तो रामदेव नाम के ढोंगी का ढोंग सदैव को नेस्तनाबूद हो जाना चाहिये था। अभी तक तो रामदेव को जेल में होना चाहिये। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि देश के स्वघोषित भावी प्रधानमंत्री से गलबहियां लड़ाने वाले रामदेव को कोई भी छूने की कोशिश कैसे कर सकता है, आखिर सारे मनुवादियों का साथ जो उनके पीछे है। अन्यथा रामदेव की खुद की औकात ही क्या है? रामदेव का मनुवादी, कलुषित और कुरूप चेहरा देश और दुनिया के सामने है। अब इस देश से सहिष्णु, निष्पक्ष और सामाजिक न्याय की व्यवस्था में विश्‍वास रखने वाले देश के बुद्धिजीवियों, स्त्री हकों के लिये सड़कों पर आन्दोलन करने वालों, दलित नेताओं, स्त्रियों के हकों के लिये बढ़चढ़कर लड़ने वाले और लडने वालियों सहित, देश के कथित स्वतन्त्र एवं समभावी मीडिया के लिये भी यह परीक्षा की सबसे बड़ी घड़ी है कि वे रामदेव को जेल की काल कोठरी तक पहुंचाने में अपनी-अपनी भूमिकाएं किस प्रकार से अदा करते हैं! अब देखना यह भी होगा कि इस देश में दलित अस्मिता की खुलेआम धज्जियां उड़ाने वाले अपराधी रामदेव का अन्तिम हश्र क्या होता है?-09875066111

Thursday, February 13, 2014

जर्नादन द्विवेदी कांग्रेस में संघ के प्रतिनिधि

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
 
कॉंग्रेस के चोटी के नीति-निर्धारकों में जर्नादन द्विवेदी शामिल हैं। वे प्रभावशाली राष्ट्रीय महासचिव हैं। ऐसी ताकवर हैसियत रखने वाले जर्नादन द्विवेदी का सार्वजनिक रूप से यह कहना कि दलित-आदिवासियों को प्रदत्त जाति आधारित आरक्षण समाप्त करके, आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू किया जाना चाहिये, अनेक लोगों को आश्‍चर्य में डाल सकता है। जिसके चलते अनेक लोगों ने इसके पक्ष-विपक्ष में अपने-अपने तर्कों के आधार पर अनेक आलेख और सम्पादकीय भी लिखे हैं। किन्तु दु:खद आश्‍चर्य तो यह है कि इस बारे में सच को कहने की कोई भी हिम्मत क्यों नहीं जुटाता?
 
आरक्षण विरोधियों का पहला तर्क होता है कि आरक्षण का जिन लोगों को लाभ मिल रहा है, वे लोग इसके सच्चे हकदार नहीं है, वास्तविक हकदारों को आरक्षण का लाभ ही नहीं मिल रहा है। इसमें ‘‘लाभ’’ शब्द गौर करने लायक है, क्योंकि यह ‘‘लाभ’’ शब्द ही भ्रान्तियों का असली कारण है। संविधान को जिन लोगों ने पढा है, वे जानते हैं कि दलित-आदिवासियों को दिया जा रहा आरक्षण उन्हें किसी भी प्रकार का ‘‘लाभ’’ पहुँचाने के लिये दिया ही नहीं गया है। ऐसे में किसे ‘‘लाभ’’ मिला है या किसे ‘‘लाभ’’ मिलना चाहिये, ये सवाल ही अपने आप में बेमानी और असंवैधानिक है, जबकि इसी पर मीडिया में सर्वाधिक चर्चा होती है। जिसका मूल कारण है-चर्चा करने वाले दुराग्रहों और पूर्वाग्रहों से ग्रसित हैं ही साथ उन्हें संवैधानिक आरक्षण अवधारणा का ज्ञान भी नहीं है। ऐसे लोग दलित-आदिवासियों के विरुद्ध लगातार विष वमन करते रहते हैं। जिन्हें ऊर्जा मिलती है-मनुवादी, संघवादी लोगों से; जिनका एकमेव लक्ष्य इस देश में फिर से मनुवाद लागू करना है।

समझने वाली बात ये है कि आरक्षण का संवैधानिक मकसद दलित और आदिवासी वर्गों को प्रत्येक सरकारी क्षेत्र में सशक्त प्रतिनिधित्व प्रदान करना है। जो तब ही सम्भव है, जबकि पीढी दर पीढी आरक्षित वर्ग के सशक्त लोग नीति-नियन्ता पदों पर पदस्थ हों। इसीलिये इन वर्गों को पदोन्नतियों में प्रदान किया जा रहा आरक्षण न मात्र संवैधानिक है, बल्कि न्यायसंगत भी है।

जहॉं तक जनार्दन द्विवेदी के बयान की बात है तो मैं बहुत पहले से इस बात को कहता और लिखता आया हूँ कि कांग्रेस पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ परोक्ष रूप से अपना कब्जा जमा चुका है। इसी कड़ी में जनार्दन द्विवेदी एक बड़ा नाम है जो कांग्रेस में रहकर संघ-प्रतिनिधि के रूप में काम कर रहे हैं। कांग्रेस को शीघ्रता से ऐसे छद्म संघियों को ढूंढकर बाहर करना होगा, अन्यथा कांग्रेस इस देश से बाहर हो जायेगी। हालांकि अब बहुत देर हो चुकी है।

हम पिछले एक दशक से कांग्रेस को आगाह करते रहे हैं कि कांग्रेस में संघियों का प्रवेश हो चुका है, जिनके मार्फत सत्ता के तीनों स्तम्भों पर संघ का लगातार दबदबा बढ रहा है। एक बार नहीं, बल्कि अनेकों बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा दलित-आदिवासी उत्थान विरोधी और संघ की विचारधारा के पोषक असंवैधानिक निर्णय सुनाये गये हैं। जिन्हें संविधान संशोधन के जरिये बार-बार निरस्त करना पड़ता रहा है। इसके उपरान्त भी यदि कांग्रेस हाई कमान की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा है और जनार्दन द्विवेदी जैसे लोगों के सहारे कांग्रेस सत्ता पर कायम रहना चाहती है, तो ये असम्भव है!

जहॉं तक आर्थिक आधार पर आरक्षण प्रदान करने की बात है तो दलित-आदिवासियों के सन्दर्भ में तो यह अवधारणा प्रारम्भ से ही गैर कानूनी, असंवैधानिक और अन्यायपूर्ण है, क्योंकि जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया गया है कि दलितों और आदिवासियों को प्रदत्त आरक्षण का संवैधानिक मकसद उन्हें किसी प्रकार ‘‘लाभ’’ पहुंचाना या उनकी उन्नति करना या उन्हें नौकरी देना मात्र नहीं है, बल्कि हर एक क्षेत्र में उनका सशक्त प्रतिनिधित्व कायम करना है। जिससे कि वे अपने वर्गों के साथ हजारों सालों से किये जाते रहे भेदभाव और अन्याय को कम से कम रोकने में तो सक्षम हो सकें।

इसके विपरीत आर्थिक रूप से विपन्न वर्ग के लोगों में कोई भावनात्मक लगाव नहीं होता है। उदाहरण के लिये गरीबी के आधार पर आरक्षरण प्राप्त करने वाले परिवार का व्यक्ति जैसे कि आईएएस बनेगा वह गरीब नहीं रहेगा और ऐसे में क्रीमी लेयर के आधार पर उसे गरीब वर्ग से बाहर कर दिया जायेगा, फिर वह अनारक्षित वर्ग में शामिल हो जायेगा। जो सेवा के दौरान गरीबों के प्रति सवर्ण अनारक्षितों की ही भांति व्यवहार करेगा। जिससे पिछड़े व दमित लोगों का कभी भी उत्थान नहीं होगा। अत: सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े दलित-आदिवासी वर्गों को हर हाल में जाति आधारित आरक्षण प्रदान किया जाना संविधान सम्मत है, जो तब तक कायम रहना चाहिये, जब तक कि इन वर्गों का आनुपातिक और सशक्त प्रतिनिधित्व प्रत्येक स्तर पर कायम नहीं हो जाता है। लगता नहीं इस सदी में ऐसा होने दिया जायेगा। क्योंकि न्यायपालिका के सहयोग से मनुवादी संघियों द्वारा लगातार दलित-आदिवासी प्रतिनिधित्व को हर एक क्षेत्र में हर दिन और लगातार कुचला जा रहा है।

ऐसे में जनार्दन द्विवेदी के असंवैधानिक बयान का अर्थ और तो कुछ भी नहीं है, लेकिन यह कांग्रेस को आगाह जरूर करता है कि वह अपने संगठन में घुस आये संघियों को तत्परता से बाहर करे, अन्यथा कांग्रेस को विनिष्ट होने से बचाना सम्भव नहीं होगा।

Friday, May 10, 2013

दलित-आदिवासी और स्त्रियों का धर्म आधारित उत्पीड़न हमारी चिन्ता क्यों नहीं?


तत्काल समाधान हेतु इस देश में यदि आज सबसे बड़ी कोई समस्या है तो वो है, देश के पच्चीस फीसदी दलितों और आदिवासियों और अड़तालीस फीसदी महिला आबादी को वास्तव में सम्मान, संवैधानिक समानता, सुरक्षा और हर क्षेत्र में पारदर्शी न्याय प्रदान करना और यदि सबसे बड़ा कोई अपराध है तो वो है-दलितों, आदिवासियों और स्त्रियों को धर्म के नाम पर हर दिन अपमानित, शोषित और उत्पीड़ित किया जाना। यही नहीं इस देश में आज की तारीख में यदि सबसे सबसे बड़ी सजा का हकदार कोई अपराधी हैं तो वे सभी हैं, जो दलितों, आदिवासियों और स्त्रियों के साथ खुलेआम भेदभाव, अन्याय, शोषण, उत्पीड़न कर रहे हैं और जिन्हें धर्म और संस्द्भति के नाम पर जो लोग और संगठन लगातार सहयोग प्रदान करते रहते हैं।

Friday, December 21, 2012

बलात्कार से निजात कैसे?

एक पुलिस का जवान कानून व्यवस्था का हिस्सा बनने के लिये पुलिस में भर्ती होता है, लेकिन पुलिस अधीक्षक उसे अपने घर पर अपनी और अपने परिवार की चाकरी में तैनात कर देता है। (जो अपने आप में आपराधिक न्यासभंग  का अपराध है और इसकी सजा उम्र कैद है) जहॉं उसे केवल घरेलु कार्य करने होते हैं-ऐसा नहीं है, बल्कि उसे अफसर की बीवी-बच्चियों के गन्दे कपड़े भी साफ करने होते हैं। क्या यह उस पुलिस कॉंस्टेबल के सम्मान का बलात्कार नहीं है?


Thursday, November 1, 2012

मनुवादियों ने दलित जोड़ों को मंदिर से खदेड़ा!

यदि हम वास्तव में चाहते हैं कि देश में अमन-चैन बना रहे और समाज के सभी दबे-कुचले लोग तरक्की करें और सम्मान के साथ जीवन यापन करें तो हमें मनुवाद को तत्काल प्रतिबन्धित करने और मुनवादी कुकृत्यों को अंजाम देने वालों को देशद्रोही के समान दण्डनीय अपराध घोषित करने की सख्त जरूरत है| जिसके लिये संविधान के भाग तीन के अनुच्छेद 13 (1) एवं 13 (3) में सरकार को सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त हैं| यदि सरकार में राजनैतिक इच्छा-शक्ति हो तो इस प्रावधान के तहत मनुवादी दैत्य को नेस्तनाबूद किया जा सकता है| लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है, जिसके पीछे हर पार्टी में मनुवादियों का वर्चस्व होना बड़ा कारण है|

Friday, December 30, 2011

लोकपाल-हमाम में सभी नंगे!


डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

लोकपाल विधेयक के बहाने कॉंग्रेस के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबन्धन यूपीए और भाजपा के नेतृत्व वाले मुख्य विपक्षी गठबन्धन एनडीए सहित सभी छोटे-बड़े विपक्षी दलों एवं ईमानदारी का ठेका लिये हुंकार भरने वाले स्वयं अन्ना और उनकी टीम के मुखौटे उतर गये! जनता के समक्ष कड़वा सत्य प्रकट हो गया!

Monday, April 11, 2011

ये है हमारे देश का धार्मिक चरित्र-दलित रिटायर हुआ तो रूम को गोमूत्र से धोया!



डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

केरल तिरूअनंतपुर से एक खास खबर है, कि ‘‘दलित रिटायर हुआ तो रूम को गोमूत्र से धोया’’ जिसे इलेक्ट्रोनिक मीडिया और प्रिण्ट मीडिया ने दबा दिया और इसे प्रमुखता से प्रकाशित या प्रसारित करने लायक ही नहीं समझा| कारण कोई भी समझ सकता है| मीडिया बिकाऊ और ऐसी खबरों को ही महत्व देता है, जो उसके हितों के अनुकूल हों| दलितों के अपमान की खबर के प्रकाशन या प्रसारण से मीडिया को क्या मिलने वाला है? इसलिये मीडिया ने इसे दबा दिया या बहुत ही हल्के से प्रकाशित या प्रसारित करके अपने फर्ज की अदायगी करली, लेकिन यह मामला दबने वाला नहीं है| खबर क्या है पाठक स्वयं पढकर समझें|

खबर यह है कि देश के सामाजिक दृष्टि से पिछड़े माने जाने वाले राज्यों में किसी दलित अधिकारी का अपमान हो जाए तो यह लोगों को चौंकाता नहीं है, लेकिन सबसे शिक्षित और विकसित केरल राज्य में ऐसा होना हैरान करता है| यह सोचने को विवश करता है कि सर्वाधिक शिक्षित राज्य के लोगों को प्रदान की गयी शिक्षा कितनी सही है?

खबर है कि केरल राज्य के तिरूअनंतपुरम में एक दलित अधिकारी के सेवानिवृत्त होने के बाद उसकी जगह आए उच्च जातीय अधिकारी ने उसके कक्ष और फर्नीचर को शुद्ध करने के लिए गोमूत्र का छिड़काव करवाया| दलित वर्ग के ए. के. रामकृष्णन 31 मार्च को पंजीयन महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए थे| उन्होंने उक्त बातों का पता लगने पर मानव अधिकार आयोग को लिखी अपनी शिकायत में कहा है कि उनके पूर्ववर्ती कार्यालय के कुछ कर्मचारियों ने मेज, कुर्सी और यहां तक कि कार्यालय की कार के अंदर गोमूत्र छिड़का है| इस घटना की जांच की मांग करते हुए उन्होंने मानव अधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाया है|

रामकृष्णन ने कहा कि ‘‘कार्यालय और कार का शुद्धिकरण इसलिए किया गया, क्योंकि वह अनुसूचित जाति (दलित वर्ग) से हैं और यह उच्च जातीय व्यक्ति द्वारा जानबूझकर किया गया उनके मानव अधिकार एवं नागरिक स्वतंत्रता के अधिकारों का खुला उल्लंघन है|’’

दलित वर्ग के ए. के. रामकृष्णन की याचिका के आधार पर मानव अधिकार आयोग ने मामला दर्ज कर राज्य सरकार के कर-सचिव को नोटिस भेजा है| इसका जवाब सात मई तक देना है|

दलित वर्ग के ए. के. रामकृष्णन का कहना है कि ‘‘मैं इस मामले को सिर्फ व्यक्तिगत अपमान के तौर पर नहीं ले रहा हूँ| यह सामाजिक रूप से वंचित समूचे तबके का अपमान है| यदि एक सरकारी विभाग में शीर्ष पद पर बैठे व्यक्ति को इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है तो निचले पायदान पर रहने वाले आम लोगों की क्या हालत होगी?’’ उन्होंने बताया कि ‘‘पंजीयन महानिदेशक के पर पर पिछले पांच साल का उनका अनुभव बहुत खराब रहा है|’’

इस मामले में सबसे बड़ा और अहम सवाल तो यह है कि नये पदस्थ उच्च जातीय अधिकारी को गौ-मूत्र ये कार्यालय की सफाई करने के लिये कितना जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? क्योंकि उन्होंने तो वही किया तो उन्हें उसके धर्म-उपदेशकों ने सिखाया या उन्हें जो संस्कार प्रदान किये गये| ऐसे में केवल ऐसे अधिकारी के खिलाफ जॉंच करने, नोटिस देने या उसे दोषी पाये जाने पर दण्डित करने या सजा देने से भी बात बनने वाली नहीं है|

सबसे बड़ी जरूरत तो उस कुसंस्कृति, रुग्ण मानसिकता एवं मानव-मानव में भेद पैदा करने वाली धर्म-नीति को प्रतिबन्धित करने की है, जो गौ-मूत्र को दलित से अधिक पवित्र मानना सिखाती है और गौ-मूत्र के जरिये सम्पूर्ण दलित वर्ग को अपमानित करने में अपने आप को सर्वोच्च मानती है| इस प्रकार की नीति को रोके बिना कोई भी राज्य कितना भी शिक्षित क्यों न हो, अशिक्षित, हिंसक और अमानवीय लोगों का आदिम राज्य ही कहलायेगा|

लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र "प्रेसपालिका" (PRESSPALIKA) के सम्पादक, विविध विषयों के लेखक, टिप्पणीकार, चिन्तक, शोधार्थी तथा समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार, मनमानी, मिलावट, गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन "भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान" (बास) (BAAS) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। जिसके हजारों आजीवन कार्यकर्ता (4747) राजस्थान के सभी जिलों एवं देश के आधे से अधिक राज्यों में सेवारत हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष : ऑल इण्डिया ट्राईबल रेलवे एम्पलाईज एसोसिएशन, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव : अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ, dr.purushottammeena@yahoo.in Ph. 0141-2222225 Mob. : 098285-02666
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