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Saturday, September 8, 2012

पुनर्विवाह-Re-Marriage


नई दिल्ली। एक सर्वे में पुनर्विवाह के प्रमुख कारणों का पता लगाया गया है। फिर से विवाह करने के पीछे घर बसाने की चाह है या जीवन साथी की तलाश या फिर वित्तीय सुरक्षा। सर्वे में पता चला है कि ज्यादातर लोग (53 प्रतिशत) घर बसाने के लिए पुनर्विवाह करते हैं। 38 प्रतिशत लोगों की राय में पुनर्विवाह का दूसरा बडा कारण जीवन साथी की तलाश है। यह सर्वे ऑनलाइन किया गया। इसमें एक हजार सदस्यों ने अपनी राय जाहिर की। 

Saturday, September 25, 2010

दिल्ली सरकार का अनुकर्णीय निर्णय

(अदालत में शादी करने के लिए कोई नोटिस नहीं, उसी दिन विवाह पंजीकरण प्रमाण पत्र भी)

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

हमारे देश का संविधान सभी को एक जैसा समान न्याय एवं सम्मानपूर्वक जीवन जीने का मौलिक अधिकार प्रदान करके इसकी गारण्टी भी देता है, लेकिन व्यावहारिक क‹डवी सच्चाई इस बात का समर्थन नहीं करती हैं। ऐसे अनेक क्षेत्र हैं? जिनमें व्यक्ति को न तो समान न्याय मिलता है और न हीं सम्मानपूर्वक जीवन जीने का कानूनी या मौलिक अधिकार प्राप्त है।

वयस्क युवक-युवतियों द्वारा अपनी-अपनी स्वैच्छा से हिन्दू समाज के समाजिक रीति रिवाजों के विरुद्ध जाकर विवाह करने या विवाह करने का प्रयास करने वालों को सम्मानपूर्वक जीवन जीने देने की आजादी प्रदान करना तो दूर, उन्हें हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों द्वारा जीवित रहने के अधिकार से ही वंचित किया जा रहा है।

इसके लिये एक सीमा तक हिन्दू विवाह अधिनियम बनाने वाली संसद भी जिम्मेदार है। जिसमें स्वैच्छा से विवाह करने की लम्बी और ऐसी दुरूह व्यवस्था की गयी है, जिसका मकसद स्वैच्छा से विवाह करने वालों का विवाह सम्पन्न करवाना नहीं, बल्कि उनके विवाह को रोकना ही असली मसद नजर आता है। इस लम्बी प्रक्रिया के कारण स्वैच्छा विवाह करने वाले जो‹डे के परिजनों को सारी जानकारी प्राप्त हो जाती है और फिर खाप पंचायतें अपना रौद्र रूप धारण करके तालिबानी न्याय प्रदान करके संविधान की धज्जियाँ उडाती हैं।

सम्भवत: इसी विसंगति को दूसर करने के आशय से पिछले दिनों दिल्ली सरकार सरकार ने हिन्दू विवाह पंजीकरण नियम (१९५६) में महत्वपूर्ण बदलाव करने को मंजूरी दे दी है। जिसके तहत अभी तक अदालत से विवाह पंजीकरण प्रमाण पत्र हासिल करने में एक माह का समय लगता है। जिसमें विवाह करने वालों के परिजनों को सूचना देना भी अनिवार्य होता है। दिल्ली सरकार के निर्णय के अनुसार, अब अदालत में विवाह करने के लिए कोई नोटिस नहीं देना होगा और विवाह के बाद उसी दिन विवाह पंजीकरण प्रमाण-पत्र भी मिल जाएगा।

विवाह करने के इच्छुक युवक-युवती किसी भी कार्य दिवस में बिना पूर्व सूचना अदालत में जाकर विवाह कर सकेंगे। हिन्दू विवाह पंजीकरण नियम,१९५६ के संशोधन के लिए अब दिल्ली सरकार एक अधिसूचना जारी करेगी। यह तय किया गया है कि मौजूदा नियम की धारा-७ की उप धारा ६ के प्रावधान अब दिल्ली में विवाह पंजीकरण के लिए जरूरी नहीं होंगे। जिनमें अभी तक यह व्यवस्था थी कि दिल्ली में विवाह पंजीकरण के लिए दोनों पक्षों में से कम से कम एक के अभिभावक का दिल्ली में कम से कम ३० दिन से अधिक का निवास होना चाहिए। अब यह तय किया गया है कि दिल्ली में किये गये विवाह के पंजीकरण के लिए यह शर्त लागू नहीं होगी। अब ३० दिन के निवास की शर्त समाप्त कर करने का प्रस्ताव है।

दिल्ली मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए निर्णय से ३० दिन की तय सीमा खतम होने के कारण परिजनों या समाज की मर्जी के खिलाफ जाकर विवाह करने वाले युवाओं को परेशानी का सामना नहीं करना प‹डेगा। अभी तक विवाह का पंजीकरण प्रमाण पत्र न होने के कारण ऐसे दंपती खुलकर समाज या पुलिस के सामने नहीं आ पाते थे और इनमें से कई तो ऑनर किqलग के नाम पर खाप पंचायतों द्वारा मौत के घाट उतार दिये जाते थे। अब जल्द विवाह होने एवं पंजीकरण प्रमाण पत्र मिल जाने से ऐसे दपंती पुलिस व कोर्ट के समक्ष पेश होकर सुरक्षा की मांग भी कर सकते हैं।

दिल्ली सरकार का उक्त निर्णय अन्य राज्य सरकारों के लिये अनुकरणीय निर्णय है। जिस पर यदि सभी सरकारें अमल करती हैं या स्वयं भारत सरकार इस पर अमल करती है तो बहुत सारी ऑनर किqलग (प्रतिष्ठा के लिये हत्या) को रोका जा सकेगा। जब तक ऐसा नहीं होता है, तब तक के लिये दिल्ली सरकार के प्रस्तावित कानून ने यह सन्देश तो दे ही दिया है कि कोई भी इच्छुक युवक-युवति दिल्ली में आकर अपना विवाह पंजीकरण करवा सकते हैं और अपने विवाह को उजागर करके पुलिस तथा प्रशासन का संरक्षण मांगकर मनमानी खाप पंचायतों से कानूनी संरक्षण पा सकते हैं।

-लेखक : जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र "प्रेसपालिका" के सम्पादक, होम्योपैथ चिकित्सक, मानव व्यवहारशास्त्री, दाम्पत्य विवादों के सलाहकार, विविध विषयों के लेखक, टिप्पणीकार, कवि, शायर, चिन्तक, शोधार्थी, तनाव मुक्त जीवन, लोगों से काम लेने की कला, सकारात्मक जीवन पद्धति आदि विषय के व्याख्याता तथा समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। जिसमें 19 सितम्बर, 2010 तक, 4470 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे)

Saturday, August 21, 2010

बेड़ियों और भेड़ियों से मुक्ति सच्चे प्यार (स्नेह) और ध्यान से सम्भव!


बेड़ियों और भेड़ियों से मुक्ति
सच्चे प्यार (स्नेह) और ध्यान से सम्भव!

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

आप लिखती हैं कि-

1- "औरत को आज़ाद तभी माना जा सकता है जब उसे बेड़ियों और भेड़ियों से रिहा कर दिया जाय। कहने का अर्थ उसे भी बराबरी का दर्जा दिया जाय।"

2- "प्यार, सम्मान और सुरक्षा की दरकार उसे भी है तथा औरत की आज़ादी के मायने भी यही हैं।"

आपके उक्त दो बिन्दुओं पर में कुछ लिखने की इच्छा रखता हूँ। आशा है कि आप इन विचारों को निरपेक्ष भाव से पढकर समझने का प्रयास करेंगी।

1. औरत को बेड़ियों और भेड़ियों से भारत में सरकार या समाज द्वारा अभियान चलाकर या घर-घर फैरी लगाकर आजाद करने की किसी नयी और पुख्ता व्यवस्था की उम्मीद करना, दिन में सपने देखने के समान है। जहाँ तक कानून की बात है तो सब आजाद हैं।

लेकिन सभी जानते हैं कि आप हम सब समाज के शिकंजे में फंसे हुए हैं। औरत की बेड़ियाँ मजबूत हैं। अत: औरत को ही क्यों और किसी भी कमजोर या संवेदनशील व्यक्ति को समाज से आजादी मिलना प्राय: असम्भव है। आप जिन बेड़ियों तथा भेड़ियों की बात कर रही हैं, ये इसी धर्मभीरू, बहुरंगी और ढोंगी समाज की दैन हैं।

मेरा मानना है कि इन बेड़ियों और भेड़ियों से केवल औरत या कोई भी व्यक्ति स्वयं सक्षम होने पर ही स्वयं को मुक्त कर सकता है।

इस दुनिया में लोग उसी की मदद करते हैं, जो स्वयं अपनी मदद करने को तत्पर हो। इसलिये निराशा के गहरे अन्धकार में डुबकी लगाने से बेहतर हैं कि हम वही देखें, वही सोचें और वही करें, जिसकी हमें वास्तव में जरूरत है।

हमारी स्वयं की सकारात्मक सोच, हमारी असम्भव सी प्रतीत होने वाली बहुत सारी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर देती है। जब हम सकारात्मक होते हैं तो बुरी से बुरी स्थिति में भी हमें आशा की किरण नजर आने लगती है और इसके विपरीत जब हम नकारात्मकता के भंवर में गौता लगा रहे होते हैं तो अच्छी से अच्छी स्थिति में भी हमें केवल निराशा एवं अन्धकार ही नजर आता है।

2-प्यार, सम्मान और सुरक्षा की दरकार औरत को भी है और आजादी के मायने भी यही हैं। आपकी इस बात से असहमत होने का कोई कारण ही नहीं
है
। यदि किसी औरत को प्यार, सम्मान और सुरक्षा नहीं मिलती तो उसका जीवन, नर्कमय हो जाता है। इसीलिये अधिकांश भारतीय गृहणियों का जीवन नर्कमय है। उन्हें हिस्टीरिया जैसी कभी न मिटने वाली बीमारियों को झेलना पडता है।

आपको एक कडवी बात बतला रहा हूँ कि भारत में प्रचलित वैवाहिक पारिवारिक बन्धनों रूपी
जेल
में (
सामाजिक व्यवस्था में) स्त्री द्वारा दैहिक सुरक्षा की आशा तो की जा सकती है, लेकिन प्यार और सम्मान किन्हीं अपवादों को छोड दिया जाये तो असम्भव है। जबकि हर कुंवारी लडकी विवाह के बाद आशा करती है कि उसे ससुराल में प्यार, सम्मान और सुरक्षा मिलेगी।

स्त्री ही नहीं पुरुष भी विवाह के बाद प्यार एवं सम्मान की अपेक्षा करते हैं। सुरक्षा के मामले में पुरुषों की स्थिति थोडी बेहतर है। लेकिन पुरुषों को भी कहाँ मिलता है-वांछित प्यार एवं सम्मान? मैं फिर से दौहराना चाहूँगा कि भारत में प्रचलित वैवाहिक पारिवारिक बन्धनों की व्यवस्था में प्यार और सम्मान किन्हीं अपवादों को छोड दिया जाये तो असम्भव है।

एक विद्वान मानव व्यवहार शास्त्री का कहना है कि यदि आप किसी स्त्री का या किसी पुरुष का प्यार पाने की आकांक्षा रखते/रखती हैं तो उस पुरुष/स्त्री से कभी भी विवाह नहीं करे और यदि आपने किसी से विवाह रचा लिया है और आपकी चाह है कि आपका विवाह ताउम्र चले तो अपने पति/पत्नी से कभी भी प्यार पाने की उम्मीद नहीं करें।

उक्त कथन की अन्तिम पंक्ति को समझ कर जीने क नाटक करने वाले पति-पत्नी समाज में सफल दम्पत्ति की उपाधि से नवाजे जाते हैं।

हो सकता है कि भारतीय सामाजिक परिवेश में आपको मेरी उपरोक्त बातें अप्रासंगिक लगें, लेकिन मानव हृदय के उदगार या प्यार के अहसास देश और समाज की सीमाआ में नहीं बांधे जा सकते!

जब व्यक्ति अपने अहसास और समाज के बन्धनों के बीच कशमशाता है तो वह सबसे बडी सजा भुगत रहा होता है, जिससे कोई समाज या कानून मुक्त नहीं कर सकता! स्वयं व्यक्ति को इस प्रकार की स्थिति से मुक्त होने के रास्ते अपनाने होते हैं, जिनका मार्ग सच्चे प्यार (स्नेह) और ध्यान से सम्भव है।

शुभकामनाओं सहित।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

Monday, March 15, 2010

प्रधान न्यायाधीश का बयान अस्वीकार्य : डॉ. मीणा



जयपुर। भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने एक बयान जारी करके कहा है कि देश की सबसे बडी अदालत के प्रधान न्यायाधीश का बलात्कारी से विवाह करने की अनुमति दिये जाने सम्बन्धी बयान निन्दनीय तो है ही साथ ही साथ प्रधान न्यायाधीश की गरिमा के अनुरूप भी नहीं है।



डॉ. मीणा का कहना है कि देश के प्रधान न्यायाधीश जैसे गरिमामयी और संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति से ऐसे अमानवीय और अव्यावहारिक बयानों की अपेक्षा नहीं की जा सकती। यदि इस प्रकार से बलात्कारी से विवाह करने को परोक्ष रूप से बढावा दिया गया तो आगे चलकर सम्पूर्ण समाज को इसके अनेक प्रकार के अकल्पनीय, गम्भीर और घातक परिणामों का सामना करना पडेगा।

बास के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम मीणा का कहना है कि यदि एक क्षण को हम प्रधान न्यायाधीश के सुझाव को मान लेते हैं तो ऐसे रुग्ण लोग जो किसी लडकी से विवाह करने में सफल नहीं हो पाते हैं, वे पहले तो उससे बलात्कार करेंगे और बाद में पीडित लडकी को विवश करके विवाह करने को राजी कर लिया जायेगा। इससे जहाँ एक ओर तो महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में वृद्धि होगी, वहीं दूसरी ओर इससे बलात्कार जैसे गम्भीर अपराध की सजा से अपराधी बच निकलेगा।

डॉ. मीणा का कहना है कि अब समय आ गया है, जबकि संवैधानिक एवं जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों द्वारा स्त्री के प्रति अधिक संवेदनशीलता का परिचय दिया जाये और उसे भी इंसान समझा जाये। जब किसी बलात्कारी से विवाह करने की बात कहीं जाती है तो किसी भी पीडिता स्त्री के लिये इससे बडी अपमानजनक कोई बात नहीं हो सकती।

डॉ. मीणा कहते हैं कि इस प्रकार के बयान देने वाला चाहे देश का प्रधान न्यायाधीश हो या अन्य कोई भी हो, हर एक इंसाफ पसन्द व्यक्ति द्वारा उसकी आलोचना और भर्त्सना की ही जानी चाहिये। डॉ. मीणा ने कहा है कि इस प्रकार के अमानवीय और असंवेदनशील बयान की कुछ महिला संगठनों के अलावा अन्य किसी के द्वारा आलोचना नहीं किया जाना भी बेहद चिन्ता का विषय है।

बास के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम मीणा का कहना है कि जब भी स्त्री के सवाल पर निर्णय लेना हो पुरुष को केवल पति या प्रेमी बनकर ही नहीं, बल्कि पिता और भाई बनकर भी सोचने की आदत डालनी चाहिये। तब ही पुरुष, स्त्री से जुडे मामलों में पूर्ण न्याय कर सकेगा।
-प्रेस विज्ञप्ति जारी करंता : पंकज सत्तावत, सहायक कार्यालय सचिव, राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय, भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास), जयपुर।