बाबा रामदेव और अन्ना के अनशन
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

यदि इसके कारणों की पड़ताल करें तो पहले हमें यह जानना होगा कि जहॉं अन्ना के साथ देशभर के आम लोग बिना बुलाये आये थे, वहीं बाबा के बुलावे पर भी देश के निष्पक्ष और देशभक्त लोगों ने उनके साथ सड़क पर उतरना जरूरी क्यों नहीं समझा? इसके अलावा यह भी समझने वाली महत्वपूर्ण बात है कि अन्ना का आन्दोलन खतम होते-होते अन्ना-मण्डली का छुपा चेहरा भी लोगों के सामने आ गया और बचा खुचा जन लोकपाल समिति की बैठकों के दौरान पता चल गया| अन्ना की ओर से नियुक्त सदस्यों पर और स्वयं अन्ना पर अनेक संगीन आरोप सामने आ गये, जिनकी सच्चाई तो भविष्य के गर्भ में छिपी है, लेकिन इन सबके चलते अन्ना की निष्कलंक छवि धूमिल अवश्य दिखने लगी|

बाबा के आन्दोलन से देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आम लोगों की मुहिम को बहुत बड़ा घक्का लगा है| बाबा योगी से समाज सेवक और अन्त में राजनेता बनते-बनते कहीं के भी नहीं रहे| उनकी शाख बुरी तरह से गिर चुकी है| इस प्रकार के लोगों के कारण जहॉं भ्रष्ट और तानाशाही प्रवृत्तियॉं ताकतवर होती हैं, वहीं दूसरी ओर आम लोगों की संगठित और एकजुट ताकत को घहरे घाव लगते हैं| आम लोग जो अन्ना की मण्डली की करतूतों के कारण पहले से ही खुद को लुटा-पिटा और ठगा हुआ अनुभव कर रहे थे, वहीं बाबा के ड्रामा ब्राण्ड अनशन के कारण स्वयं बाबा के अनुयायी भी अपने आपको मायूस और हताशा से घिरा हुआ पा रहे हैं|
बाबा ने हजारों लोगों को शस्त्र शिक्षा देने का ऐलान करके समाज के बहुत बड़े निष्प्क्ष तबके को एक झटके में ही नाराज और अपने आप से दूर कर दिया और देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तालिबानी छबि में बदलने का तोगड़िया-ब्राण्ड अपराध अंजाम देने का इरादा जगजाहिर करके अपने गुप्त ऐजेण्डे को सरेआम कर दिया| रही सही कसर भारतीय जनता पार्टी की डॉंस-मण्डली ने सत्याग्रह के नाम पर पूरी कर दी|
इन सब बातों से केन्द्र सरकार को भ्रष्टाचार के समक्ष झुकाने और कठोर कानून बनवाने की देशव्यापी मुहिम को बहुत बड़ा झटका लगा है| आम लोग तो प्रशासन, सरकार और राजनेताओं के भ्रष्टाचार, मनमानी और अत्याचारों से निजात पाने के लिये अन्ना और बाबा का साथ देना चाहते हैं, लेकिन इनके इरादे समाजहित से राजनैतिक हितों में तब्दील होने लगें, विशेषकर यदि बाबा खुलकर साम्प्रदायिक ताकतों के हाथों की कठपुतली बनकर देश को तालिबानी लोगों की फौज से संचालित करने का इरादा जताते हैं तो इसे भारत जैसे परिपक्व धर्मनिरपेक्ष लोकतन्त्र में किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता|कुल मिलाकर अन्ना और बाबा रामदेव के आन्दोलनों और अनशनों के बाद आम व्यथित और उत्पीड़ित जनता को सोचना होगा कि उन्हें इंसाफ चाहिये तो न तो विदेशों के अनुदान के सहारे आन्दोलन चलाने वालों से न्याय की उम्मीद की जा सकती है और न हीं भ्रष्ट लोगों से अपार धन जमा करके भ्रष्टारियों के विरुद्ध आन्दोलन चलाने की हुंकार भरने वाले बाबा रामदेव से कोई आशा की जा सकती है|
तो मीणा साहब आप ही कुछ रास्ता और उपाय बता देते किसी आंदोलन को सार्थक और सफल कैसे बनाया जा सकता है ?
ReplyDeleteडॉ. मीना जी आपने जो कुछ लिख है उससे भी अधिक लिखने की जरूरत है, क्योंकि बाबा तो इस देश पर भगवा आतंक और भगवा सरकार थोपने के लिए कुछ भी कर सकते हैं| बाबा का कोई चरित्र ही नहीं है| बाबा की असलियत जानने के लिए मैं एक लेख प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसका लिंक भी साथ में दे रहा हूँ|
ReplyDeleteSource : http://himalayauk.org/2011/06/congress-cllearence-himalaya-uk/
सरकार गिराने के ऐवज में राष्ट्रपति बनाने का था ऑफर
कांग्रेस का सनसनीखेज खुलासा- सरकार गिराने के ऐवज में राष्ट्रपति बनाने का था ऑफर
खुफिया एजेंसियों ने यह जानकारी तो सरकार को दी थी कि रामदेव के पीछे संघ परिवार
योग गुरु बाबा रामदेव दिल्ली के रामलीला मैदान में विदेशों में जमा काला धन वापस लाने के लिए नहीं, बल्कि केंद्र सरकार को गिराने आए थे। रामदेव ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ मिलकर जो व्यूहरचना की थी, उसके मुताबिक रामलीला मैदान को भारत के “तहरीर चौक” में बदलकर केंद्र सरकार को गिराने की थी। बदले में संघ परिवार की ओर से रामदेव को 2012 में राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव दिया गया था।
चार जून को इसकी पुख्ता जानकारी सबसे पहले कपिल सिब्बल को हुई। सिब्बल ने फौरन प्रणब मुखर्जी से बात की। फिर दोनों प्रधानमंत्री के पास गए। प्रधानमंत्री ने चिदंबरम से बात की। सोनिया को बताया। तय हुआ कि शाम को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके रामदेव के साथ हुई “डील” को सार्वजनिक किया जाए और अनशन न खत्म होने पर मैदान खाली कराने के लिए “प्लान दो” को अमल में लाया जाए।
सूत्रों ने बताया कि रामदेव और संघ परिवार की सियासी खिचड़ी कई दिनों से पक रही थी। संघ के थिंक टैंक माने जाने वाले एस.गुरुमूर्ति, संघ और सर्वोदयी और अन्य गैर वामपंथी सोच वाले स्वयंसेवी संगठनों के बीच पुल का काम कर रहे पूर्व प्रचारक गोविंदाचार्य इस योजना के सूत्रधार थे। इनके प्रयासों से रामदेव की संघ प्रमुख मोहन भागवत, भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी व अन्य संघ नेताओं के साथ कई बार मुलाकात हुई। हरिद्वार जाकर भी मोहन भागवत और भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी रामदेव से मिले थे।
रामदेव के सत्याग्रह शुरू होने से पहले लखनऊ में भाजपा की कार्यकारिणी की बैठक के दौरान भी गडकरी इस मामले पर भागवत का निर्देश लेने नागपुर गए थे। वित्तीय अनियमितताओं को लेकर कानून के कठघरे में आए पाँच बड़े पूँजीपतियों समेत कुछ अन्य उद्योगपतियों ने भी पूरा सहयोग देने का वादा किया था। इनमें एक उद्योगपति के रामदेव से रिश्ते जगजाहिर हैं।
रणनीति के मुताबिक चार जून से रामदेव का अनशन शुरू होने के बाद पाँच और छः जून तक संघ और बाबा अपनी ताकत झोंक कर दिल्ली में रामलीला मैदान और उसके आसपास दो से तीन लाख लोगों की भीड़ जुटा देते। फिर रामदेव विदेशी बैंकों में जमा काले धन का कथित ब्यौरा देना शुरू करते, जिससे कांग्रेस और केंद्र सरकार का संकट बढ़ता और सोनिया गाँधी पर निशाना साधते हुए मनमोहन सिंह से इस्तीफे की माँग की जाती।
सूत्रों के मुताबिक भाजपा, जद (यू), अकाली दल, ओमप्रकाश चौटाला, चंद्रबाबू नायडू, नवीन पटनायक, असम गण परिषद जैसे विपक्षी दल भी इस माँग का समर्थन करते हुए अपना दबाव बढ़ाते। जनमत के दबाव में वाम मोर्चे के दल भी इससे जुड़ते। फिर संप्रक में द्रमुक और दूसरे नाखुश घटक दलों को छिटकाने की कोशिश होती। लालकृष्ण आडवाणी और राकांपा अध्यक्ष शरद पवार की पिछले दिनों हुई मुलाकात में भी कुछ खिचड़ी पकने की बात सरकारी सूत्र कह रहे हैं। कहा यह जा रहा था कि सरकार गिरने पर राजग और संप्रग के घटक दलों को मिलाकर कोई ऐसी सरकार बनाई जाएगी, जिसे भाजपा व वाम मोर्चे दोनों का समर्थन मिले। हालाँकि खुफिया एजेंसियों ने यह जानकारी तो सरकार को दी थी कि रामदेव के पीछे संघ परिवार है, लेकिन सरकार गिराने की योजना की मुकम्मल जानकारी सबसे पहले कपिल सिब्बल को पं.एनके शर्मा से मिली
नई दिल्ली से विनोद अग्निहोत्री
"निरंकुश" जी आपने लिखा है "बाबा के पीछे भीड़ तो जुटी लेकिन आम जनता नहीँ आई" तो बाबा के साथ भूख हड़ताल पर बैठने वाले कौन थे क्या वे जनता मेँ नहीँ आते? स्वामी जी के मंच से तो दो मुस्लिम धर्मगुरुओँ ने भी भाषण दिया था लेकिन मीडिया मेँ केवल साध्वी ऋतम्भरा की ही चर्चा क्योँ हुई? अगर इस देश के सभी कायर बुद्धिजीवी विद्धानोँ ने स्वामी जी का साथ दिया होता तो भारत की सभी समस्याओँ का समाधान हो जाता लेकिन जिस तरह गाँधी ने सुभाष और पटेल को साजिश से हटा कर नेहरु को इन्डिया का प्रधानमन्त्री बनाया वही साजिश स्वामी रामदेव के साथ भी हो रही है और इसमेँ शामिल हैँ लालची गद्दार कायर शर्म निरपेक्ष विद्वान बुद्धिजीवी जो कभी इन्डिया को भारत बनने नहीँ देँगे
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