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Saturday, April 26, 2014

ढोंगी बाबा रामदेव का कलुषित चरित्र उजागर!

रामदेव नाम का ढोंगी बाबा असल में कितने घिनौने चरित्र का और कितनी घटिया रुग्ण मानसिकता का शिकार है। जो दूसरों का उपचार करने की बात करता है, उसका स्वयं का मस्तिष्क कितना विकृत हो चुका है। जिसे दलित समाज की बहन-बेटियों की इज्जत को तार-तार करने में शर्म नहीं आती, उसे इंसान कहना ही इंसान को गाली देना है। जो पुरुष एक औरत की इज्जत लूटता है तो उसको फांसी की सजा की मांग की जाती है। रामदेव ने तो देश की करोड़ों दलित बहन-बेटियों की इज्जत को तार-तार कर दिया है, अब रामदेव को कितनी बार फांसी पर लटकाया जाना चाहिये, इस बारे में भी देश के लोगों को सोचना होगा। अन्यथा ये भी साफ कर देना चाहिये कि इस देश में दलित स्त्रियों की इज्जत का कोई मूल्य नहीं है! अब इस देश से सहिष्णु, निष्पक्ष और सामाजिक न्याय की व्यवस्था में विश्‍वास रखने वाले देश के बुद्धिजीवियों, स्त्री हकों के लिये सड़कों पर आन्दोलन करने वालों, दलित नेताओं, स्त्रियों के हकों के लिये बढ़चढ़कर लड़ने वाले और लडने वालियों सहित, देश के कथित स्वतन्त्र एवं समभावी मीडिया के लिये भी यह परीक्षा की सबसे बड़ी घड़ी है कि वे रामदेव को जेल की काल कोठरी तक पहुंचाने में अपनी-अपनी भूमिकाएं किस प्रकार से अदा करते हैं! अब देखना यह भी होगा कि इस देश में दलित अस्मिता की खुलेआम धज्जियां उड़ाने वाले अपराधी रामदेव का अन्तिम हश्र क्या होता है?

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

बाबा के नाम से अपने आप को सबसे बड़ा देशभक्त, ईमानदार और संत घोषित करने वाले स्वयंभू योग गुरू रामदेव का कालाधन, भ्रष्टाचार और हिन्दुत्व के बारे में असली चेहरा सारे संसार के सामने प्रकट हो गया है।

राजस्थान के अलवर लोकसभा प्रत्याशी महन्त चॉंदनाथ को कालाधन के बारे में मंच पर बात करने से रोकने का बयान सारा संसार देख चुका है। जिससे उनकी कोले धन की मुहिम के नाटक का पर्दाफाश हो चुका है। यदि रामदेव में जरा भी शर्म होती तो इस घटना के बाद वे जनता के सामने मुंह भी नहीं दिखाते, लेकिन जिन लोगों का काम देश के भोले-भाले लोगों को मूर्ख बनाना हो, उनको शर्म कहां आने वाली है? जो व्यक्ति शुरू से ही योग और प्राणायाम के नाम पर जनता के धन को लूटकर अपने नाम से ट्रस्ट बनाकर उद्योगपति बनने का लक्ष्य लेकर घर से बाहर निकला हो उससे इससे अधिक आशा भी क्या की जा सकती?

काले धन को विदेशों से देश में लाने की बढ चढकर बात करने वाला स्वयं काले धन के बारे में छुप-छुपकर बात करने की सलाह देता हो और फिर भी खुद को बाबा और देशभक्त कहलवाना चाहता हो, इससे अधिक निन्दनीय और शर्मनाक कुछ भी नहीं हो सकता।

काले धन के साथ रामदेवा का काला चेहरा सामने आये कुछ ही दिन बीते हैं कि रामदेव का कलुषित चारित्रिक भी देश ने देख लिया है। अब तो सारी हदें पार करते हुए रामदेव ने सम्पूर्ण दलित समाज की बहन-बेटियों की इज्जत को तार तार कर दिया है। रामदेव का कहना है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी दलित बस्तियों में हनीमून मनाने जाते हैं। इससे पता चलता है कि रामदेव नाम का ढोंगी बाबा असल में कितने घिनौने चरित्र का और कितनी घटिया रुग्ण मानसिकता का शिकार है। जो दूसरों का उपचार करने की बात करता है, उसका स्वयं का मस्तिष्क कितना विकृत हो चुका है। जिसे दलित समाज की बहन-बेटियों की इज्जत को तार-तार करने में शर्म नहीं आती, उसे इंसान कहना ही इंसान को गाली देना है।

जो पुरुष एक औरत की इज्जत लूटता है तो उसको फांसी की सजा की मांग की जाती है। रामदेव ने तो देश की करोड़ों दलित बहन-बेटियों की इज्जत को तार-तार कर दिया है, अब रामदेव को कितनी बार फांसी पर लटकाया जाना चाहिये, इस बारे में भी देश के लोगों को सोचना होगा। अन्यथा ये भी साफ कर देना चाहिये कि इस देश में दलित स्त्रियों की इज्जत का कोई मूल्य नहीं है!

रामदेव कितना बड़ा जालसाज है, इस बात का केवल एक ही बात से परीक्षण हो चुका है कि पांच वर्ष पहले तक रामदेव हर बीमारी का इलाज योग के जरिये करने की बात करता था और आज वही रामदेव हर बीमारी का इलाज करने हेतु खुद ही दवा बनाकर बेच रहा है। लेकिन यह इस देश का दुर्भाग्य है कि इस देश के भोले-भाले लोग ऐसे चालाक ढोंगी बाबाओं के चंगुल से आसानी से खुद को मुक्त नहीं कर पा रहे हैं। 

आसाराम का सच बहुत पहले ही देश और दुनिया के सामने आ चुका है। अब रामदेव का कलुषित चेहरा भी सबके सामने आ ही चुका है। दलितों की बहन-बेटियों की इज्जत को तार-तार करने वाला रामदेव आज भी सार्वजनिक रूप से बाबा बनकर घूम रहा है तो ये दलितों की सदाशयता है। अन्यथा तो ऐसे व्यक्ति का अंजाम तो कुछ और ही होना चाहिये था। दलितों की बहन-बेटियों और औरतों को रामदेव ने क्या वैश्या समझ रखा है कि कोई भी उनके साथ कभी भी आकर हनीमून मनाने को आजाद हो? रामदेव को ऐसी घटिया गाली देने से पहले हजार बार सोचना चाहिये था, लेकिन सोचते वहीं हैं, जिनकी कोई सदाशयी सोच हो। जिस रामदेव का एकमात्र लक्ष्य लोगों को मूर्ख बनाना हो उसे सोचने और शर्म करने की कहां जरूरत है?

इतनी घटिया टिप्पणी के बाद भी दलित समाज आश्‍चर्यजनक रूप से चुप है, ये भी दलितों के लिये अपने आप में शर्म की बात है। अन्यथा ऐसे घटिया व्यक्तव्य के बाद तो रामदेव नाम के ढोंगी का ढोंग सदैव को नेस्तनाबूद हो जाना चाहिये था। अभी तक तो रामदेव को जेल में होना चाहिये। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि देश के स्वघोषित भावी प्रधानमंत्री से गलबहियां लड़ाने वाले रामदेव को कोई भी छूने की कोशिश कैसे कर सकता है, आखिर सारे मनुवादियों का साथ जो उनके पीछे है। अन्यथा रामदेव की खुद की औकात ही क्या है? रामदेव का मनुवादी, कलुषित और कुरूप चेहरा देश और दुनिया के सामने है। अब इस देश से सहिष्णु, निष्पक्ष और सामाजिक न्याय की व्यवस्था में विश्‍वास रखने वाले देश के बुद्धिजीवियों, स्त्री हकों के लिये सड़कों पर आन्दोलन करने वालों, दलित नेताओं, स्त्रियों के हकों के लिये बढ़चढ़कर लड़ने वाले और लडने वालियों सहित, देश के कथित स्वतन्त्र एवं समभावी मीडिया के लिये भी यह परीक्षा की सबसे बड़ी घड़ी है कि वे रामदेव को जेल की काल कोठरी तक पहुंचाने में अपनी-अपनी भूमिकाएं किस प्रकार से अदा करते हैं! अब देखना यह भी होगा कि इस देश में दलित अस्मिता की खुलेआम धज्जियां उड़ाने वाले अपराधी रामदेव का अन्तिम हश्र क्या होता है?-09875066111

Saturday, June 19, 2010

अगला भगत सिंह कभी भी पैदा होने वाला नहीं है!


युवा सोच के धनी श्री विकास भारतीय ने मुझे निम्न आलेख पढने का संकेत मेल पर किया, मैंने इसे पढ़कर नीचे अपनी प्रतिक्रिया भी उनको लिख भेजी है :-

TUESDAY, FEBRUARY 16, 2010


अगला भगत सिंह कौन?

आने वाले विगत वर्षो में भारत में जो भुखमरी आनेवाली है उसका अंदाजा न तो केंद्र सरकार को है नाही इसपर कोई क्रांतिकारी कदम आम जनता द्वारा ही उठाया जा रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रतिस्पर्धा के कारण छोटे उद्योगों का दिन प्रतिदिन विनाश होता जा रहा है। अपार्टमेंट्स और बहुमंजिली इमारतों से आम जनता को कुछ भी मिलने वाला नहीं है। आम जनता को तो रोजगार चाहिए। यहाँ मै ये बता देना चाहता हूँ की आम जनता आखिर है कौन? आम जनता वो है जिनके माँ बाप गरीबी रेखा से नीचे की जीवन श्रेणी में जीवन यापन करते है। जिनको मिलने वाला सरकारी फंड सरकारी लुटेरो की जेबों को गर्म रखता है। जो घुट घुट कर जीने को मजबूर है। जिनके पास खाने को नहीं है और सरकार कहती है अपने बच्चो को पढ़ाओ और काम न करवाओ। इसके लिए सरकार ने श्रम मंत्रालय तक का निर्माण किया है जिनका ज्यादातर समय कार्यालयों में सेब, चाय, सिगरेट और मशाले खाते हुए कटता है। जिस घर में बीमारी ने अपना ठेहा जमा रखा हो और घर में दो जून की रोटी न हो अगर उससे सरकार कहे की अपने बच्चो से काम न करवाओ तो यह कहा तक उचित है। अंग्रेजी आसान भाषा है ऐसा ज्यादातर विद्वानों से सुनने को मिलता है। अगर ऐसा है तो महात्मा गाँधी, राम मनोहर लोहिया और खुद केंद्र सरकार आज़ादी के समय से ही क्यों हिंदी लाने के लिए प्रयत्नसिल थे और है भी? प्रश्न यह उठता है की आखिर हम इंग्लिश क्यों सीखे? हमारे ब्यूरोक्रेट्स, अधिकारी और सरकारी कर्मचारी अगर अपने कर्तव्यों का सही से पालन करते और कर रहे होते तो आज जो भयावह स्थिति बनी है क्या वो बन पाती? क्योकि अगर शुरू से ही हिंदी का विकास और सत्प्रयोग किया गया होता तो शायद आज ये स्थिति नहीं बनती। महात्मा गाँधी ने तो यहाँ तक कहा था की ये राष्ट्र द्रोह है उन्होंने प्रसिद्ध स्वराज्य में लिखा था की अंग्रेजी जानने वाले ने आम जनता को ठगने में कुछ न उठा रखा है।
लेकिन वर्तमान में उन गरीबो का जो शीतलहर से पूल के निचे, किसी राजमार्ग के किनारे मर रहे है? शायद वो नहीं होता। अगर आज़ादी के पश्चात हमारे देश के करता धर्ताओ ने देश के साथ थोडा भी देशभक्ति दिखाया होता तो शायद जो स्थिति आज उत्पन्न हुई है वो न हो पाती। आज सामाचार पत्रों में ये मुद्दे प्राचीन सभ्यताओ की तरह अथवा हिंदी भाषा को ही ले लीजिये की तरह ख़तम होते जा रहा है। हमारे देश की जनसँख्या १ अरब से कही ज्यादा है और कुछ लाख लोगो के इंजिनियर, डॉक्टर बन जाने से अथवा कुछ हज़ार अच्छे बहुमंजिली इमारतों के बन जाने से उन गरीबो का क्या लेना देना है। सरकार दिखा रही की देश का विकास हो रहा है लेकिन सरकार इसपर प्रकाश नहीं डाल रही है। नरेगा हो या अन्य बहुत से मद जो गरीबो के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू किये गए है पूरा देश जानता है की कितने गरीबो का उससे कल्याण हो पाता है। समाचार पत्र, और एन.जी.ओ समाज में रुआब और सरकारी फंड पाने हेतु या गरीबो के स्वार्थ हेतु खोला जा रहा है ये शायद उन्ही हो मालूम होगा। आर.एन.आई के आकड़ो को देखा जाये और मार्केट में बिक रहे समाचार पत्रों को देखा जाये तो इसका अंदाजा और बेहतरी से किया जा सकता है। सरकार के खिलाफ अब बहुत कम ही पत्रकार अपना मुंह खोलने को तैयार है लेकिन ये सब समय की माया है। जनता अब क्रांति के मायने भूल चुकी है अथवा उसको कोई भगत सिंह , चंद्रशेखर आज़ाद जैसा नहीं मिल पा रहा है। अथवा आज के भगत सिंह और चन्द्र शेखर आज़ाद को फिक्र हो गयी है की वो जमाना कुछ और था उस समय तो मात्र अंग्रेजो से भय था या उनकी जमात काम थी। लेकिन आज अगर आवाज उठाया तो कही मेरे ही खिलाफ सी.बी.आई जाँच न शुरू हो जाए, कही मुझे मार न दिया जाये या कही मुझे समूचे लोकतंत्र से तो नहीं जूझना पड़ेगा।
समय का तकाजा है देखना है अगला भगत सिंह कब सामने आएगा।
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अगला भगत सिंह कभी भी पैदा होने वाला नहीं है!