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Monday, April 2, 2012

अन्ना और बाबा के दुष्चक्र से सावधान!

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

जहॉं एक ओर अन्ना हजारे और उसकी टीम के लोग गॉंधी की कथित शालीनता का चोगा उतार कर, जन्तर मंतर पर आसीन होकर अभद्र और असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करने पर उतर आये हैं, जिस पर संसद में एकजुट विरोध हो रहा है। वहीं दूसरी ओर अन्ना हजारे टीम जो अभी तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा भारतीय जनता पार्टी से असम्बद्ध होने का लगातार दावा करती रही थी, अब सार्वजनिक रूप से संघ एवं भाजपा के निकट सहयोगी और सत्ताधारी प्रमुख दल कॉंग्रेस के कटु आलोचक बाबा रामदेव का साथ लेकर और उन्हें साथ देकर सरेआम संयुक्त रूप से आन्दोलन चलाने के लिये कमर कस चुकी है।

Thursday, July 28, 2011

बाबा रामदेव और अन्ना हजारे अलग-अलग क्यों?

बाबा रामदेव और अन्ना हजारे अलग-अलग क्यों? 

बाबा रामदेव और अन्ना हजारे अलग-अलग क्यों?
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बाबा रामेदव लम्बे समय से अपने योग शिविरों में जनान्दोलन चलाते आ रहे हैं| उन्होंने कुछ बड़ी रैलिया भी की हैं और देशभर में जनजागरण अभियान चलाया हुआ है| वहीं दूसरी ओर अन्ना हजारे भी लम्बे समय से महाराष्ट्र में रहकर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ते आ रहे हैं| जन्तर-मन्तर पर अनशन से पूर्व उनको बाबा रामदेव की तुलना में बहुत कम लोग जानते थे| अन्ना के अनशन का असर यह हुआ कि बाबा रामेदव ने स्वयं अन्ना के मंच पर पहुँचकर, अन्ना हजारे के आन्दोलन को समर्थन दिया| जिससे देश को लगा कि बाबा रामेदव का असल मकसद भ्रष्टाचार को नेस्तनाबूद करना है, न कि उन्हें स्वयं सत्ता हासिल करनी है|

अनशन समाप्त हुआ और जन लोकपाल बिना बनाने की कमेटी के गठन के साथ ही बाबा रामेदव एवं अन्ना हजारे के बीच वैचारिक मतभेद की खबरें भी मीडिया के माध्यम से जनता तक आने लगी| जो लोक अन्ना का प्रचार-प्रसार करते नहीं थक रहे थे, अचानक वे अन्ना के विरोधी और बाबा रामेदव के समर्थक हो गये| बाबा रामेदव ने रामलीला मैदान में अनशन किया| पहले सरकार ने बाबा की अगवानी की| बाबा से बन्द कमरें में चर्चाएँ की और उसी सरका ने अनशन को समाप्त करने के लिये अनैतिक, असंवैधानिक और अमानवीय रास्ता अख्तियार किया|  इसके बाद बिना किसी उपलब्धि के बाबा का अनशन टूट गया| इससे बाबा रामेदव का ग्राफ एकदम से चीचे आ गया|

इसके बाद फिर से अन्ना हजारे ने अनशन करने की घोषणा कर दी और साथ ही अपने मंच पर बाबा रामेदव के आने पर सार्वजनिक रूप से शर्तें लगा दी हैं| जो बाबा रामेदव आगे से चलकर जन्तर-मन्तर पर अन्ना हजारे को समर्थन देने गये थे, उन्हीं बाबा रामेदव को अब अन्ना हजारे अपने मंच पर नहीं आने देना चाहते हैं! यह अकारण नहीं हो सकता| देश के लोगों के बीच इस बारे में अनेक प्रकार की भ्रान्तिया पनप रही हैं|

इस प्रकार से दोनों अनशनों के बाद से देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाले दो बड़े नाम उभरकर सामने आ रहे हैं-बाबा रामेदव एवं अन्ना हजारे| इस कारण से देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध चल रहा आन्दोलन बौंथरा होता जा रहा है| जनता को समझ में नहीं आ रहा है कि देश का मीडिया बता रहा है, उसमें कितनी सच्चाई है?

दूसरी ओर इस देश के मीडिया की विश्‍वसनीयता सन्देह के घेरे में है| ऐसे में आम व्यक्ति का मार्गदर्शन करने की जिम्मेदारी वैकल्पिक मीडिया की है| जिसे वैकल्पिक मीडिया एक सीमा तक निभा भी रहा है, लेकिन वैकल्पिक मीडिया भी सामन्ती मीडिया, साम्प्रदायिक मीडिया, वामपंथी मीडिया, धर्मनिरपेक्ष मीडिया, दलित मीडिया, धर्मनिरपेक्ष मीडिया, अल्पसंख्यक मीडिया आदि कितने ही हिस्सों में बंटा हुआ नजर आ रहा है| केवल इतना ही नहीं, वैकल्पिक मीडिया पर आधारही आलेखों के प्रकाशन और लेखन का ‘क’ ‘ख’ ‘ग’ नहीं जानने वाले घटिया पाठकों की घटिया, संकीर्ण, स्तरहीन और असंसदीय टिप्पणियों को बिना सम्पादकीय नियन्त्रण के प्रकाशन के कारण भी वैकल्पिक मीडिया की उपस्थिति एवं समाज में विश्‍वसनीयता संन्देह के घेरे में है|

ऐसे में बाबा रामेदव और अन्ना हजारे के बीच बंट चुके भ्रष्टाचार विरोधी जनान्दोलन के बारे में आम जनता को सही, पुष्ट एवं विश्‍वसनीय जानकारी नहीं मिल पाना दु:खद और निराशाजनक है| इन हालातों में देशभर में प्रभावी प्रिण्ट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से तो पूर्ण निष्पक्षता की आशा नहीं की जा सकती और ले-देकर वैकल्पिक मीडिया से ही इस बारे में कुछ करने की अपेक्षा की जा सकती है|

अत: वैकल्पिक मीडिया को चाहिये कि देशहित में बाबा रामदेव एवं अन्ना हजारे के बारे में अभी तक सामने आये पुष्ट एवं विश्‍वसनीयों तथ्यों और जानकारी के प्रकाश में कुछ बातें ऐसी हैं, जिन पर खुलकर चर्चा की जाये और देश के लोगों को अवगत करवाया जाये कि ये दोनों अलग-अलग क्यों हैं और देश के प्रमुख तथा विवादास्पद मुद्दों पर दोनों के क्या विचार हैं| जिससे देश की जनता को दोनों में से एक को चुनने में आसानी हो सके या दोनों को मिलकर कार्य करने के लिये सहमत किया जा सके| इस चर्चा को विस्तार देने के लिये विद्वान लेखकों और पाठकों को आगे आना चाहिये| मेरा मानना है कि बाबा रामदेव एवं अन्ना हजारे के बारे में निम्न विषयों पर चर्चा होनी चाहिये और भी बिन्दु जोड़े जा सकते हैं:-

१. संविधान की गरिमा के प्रति कौन कितना संवेदनशील हैं?


२. आमजन से जुड़े भ्रष्टाचार, अत्याचार, व्यभिचार, कालाबाजारी, मिलावट आदि विषयों के प्रति दोनों के क्या विचार हैं?

३. देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप में किसको कितनी आस्था है?

४. संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार के तहत स्त्रियों को समान नागरिक मानने और हर एक क्षेत्र में स्त्रियों को समान भागीदारी के बारे में दोनों के विचार?

५. चुनावी भ्रष्टाचार के समाधान के बारे में दोनों के विचार और समाधान के उपायों का कोई खाका?

६. इस देश की व्यवस्था पर आईएएस का कब्जा है जो भ्रष्टाचार में आकंठ डूबकर भी पाक-साफ निकल जाते हैं| इनकी तानाशाही पर नियन्त्रण पर दोनों के विचार?

७. दलित, आदिवासी और पिछड़े, जिनकी देश में लगभग ६५ प्रतिशत आबादी मानी जाती है को प्रदत्त आरक्षण एवं इसकी सभी क्षेत्रों में अनुपातिक भागीदारी के बारे में दोनों के विचार क्या हैं? मेरी दृष्टि में इस देश में इस ६५ प्रतिशत आबादी का यह मुद्दा किसी भी मामले में निर्णायक भूमिका निभाने वाला है, क्योंकि लोकतन्त्र में वोटबैंक की ताकत सबसे बड़ी ताकत है और इस वर्ग का वोट ही सत्ता का निर्धारक है|

८. अल्पसंख्यकों, विशेषकर इस्लाम के अनुयाईयों के बारे में दोनों के क्या विचार हैं? यह मुद्दा इस कारण से अधिक संवेदनशील है, क्योंकि भारत में से पाकिस्तान का विभाजन इस्लामपरस्त लोगों की अलग राष्ट्र की मांग को पूरा करने के लिये हुआ था| लेकिन देश के स्वतन्त्र और निष्पक्ष चिन्तकों के एक बुद्धिजीवी वर्ग का साफ मानना है कि इस्लाम के नाम पर अलग से राष्ट्र का निर्माण हो जाने के बाद भी इस्लाम के जो अनुयाई धर्मनिरपेक्ष भारत में ही रुक गये| उनकी देशभक्ति विशेष आदर और सम्मान की हकदार है| अत: उनके धार्मिक विश्‍वास एवं राष्ट्रीय आस्था को जिन्दा रखना भारत की धर्मनिरपेक्ष सरकारों का संवैधानिक दायित्व है|

९. भूमि-अधिग्रहण के बारे में आजादी से पूर्व की नीति ही जारी है| जिसका खामियाजा देश के किसानों को भुगतना पड़ रहा है| इस बारे में दोनों के विचार|

१०. जिन धर्मग्रंथों में हिन्दु धर्म की बहुसंख्यक आबादी का खुलकर अपमान और तिरस्कार किया गया है| यह देश के भ्रष्टाचार से भी भयंकर त्रासदी है| इन सभी धर्मग्रंथों पर स्थायी पाबन्दी के बारे में दोनों के विचार? 

११. भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ पहली बार आन्दोलन नहीं हो रहा है| पूर्व में भी भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन को सफलता मिली थी| सरकारें भी बदली, लेकिन स्थिति जस की तस बनी रही| ऐसे में अब सत्ता नहीं, व्यवस्था को बदलना जनता की प्राथमिकता है| अत: दोनों में से कौन तो व्यवस्था को बदलने के लिये कार्य कर रहे हैं और कौन स्वयं सत्ता पाने या किसी दल विशेष को सत्ता दिलाने के लिये काम करे हैं|

पाठकों, विचारकों से मेरा विनम्र निवेदन है कि इस बारे में खुलकर चर्चा (बहस नहीं) करनी चाहिये| इन विषयों में कोई गलत चयन किया गया है तो उसे सतर्क सुचिता पूर्वक नकारें और यदि कोई महत्वूपर्ण विषय शेष रह गया है, तो उसे जोड़ें| आशा है कि इस बारे में देश का प्रबुद्ध वर्ग अवश्य ही विचार करेगा?

Wednesday, June 15, 2011

बाबा रामदेव और अन्ना के अनशन


बाबा रामदेव और अन्ना के अनशन

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

पिछले कुछ महिनों में भारत में पहली बार जनता भ्रष्टाचार के विरुद्ध आक्रोशित दिखी है| पहले जनता को अन्ना हजारे में अपना हितैषी नजर आया और जनता उनके साथ रोड पर उतर आयी, उसके कुछ समय बाद ही बाबा रामदेव ने भी अन्ना से भी बड़ा जनान्दोलन खड़ा करने के इरादे से देशभर में घूम-घूम कर आम जनता को अपने साथ आने के लिये आमन्त्रित किया| जिसके परिणामस्वरूप बाबा रामदेव के साथ भीड़ तो एकजुट हुई, लेकिन आम जनता नहीं आयी|

यदि इसके कारणों की पड़ताल करें तो पहले हमें यह जानना होगा कि जहॉं अन्ना के साथ देशभर के आम लोग बिना बुलाये आये थे, वहीं बाबा के बुलावे पर भी देश के निष्पक्ष और देशभक्त लोगों ने उनके साथ सड़क पर उतरना जरूरी क्यों नहीं समझा? इसके अलावा यह भी समझने वाली महत्वपूर्ण बात है कि अन्ना का आन्दोलन खतम होते-होते अन्ना-मण्डली का छुपा चेहरा भी लोगों के सामने आ गया और बचा खुचा जन लोकपाल समिति की बैठकों के दौरान पता चल गया| अन्ना की ओर से नियुक्त सदस्यों पर और स्वयं अन्ना पर अनेक संगीन आरोप सामने आ गये, जिनकी सच्चाई तो भविष्य के गर्भ में छिपी है, लेकिन इन सबके चलते अन्ना की निष्कलंक छवि धूमिल अवश्य दिखने लगी|

अन्ना अनशन के बाद देश की आम जनता अपने आपको ठगा हुआ और आहत अनुभव कर रही थी, ऐसे समय में बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार एवं कालेधन को लेकर देश की राजधानी स्थित रामलीला मैदान में अनशन शुरू किया तो केन्द्र सरकार के मन्त्रियों ने उनकी अगवानी की और मन्त्रियों के समूह से चर्चा करके आमराय पर पहुँचकर समझौता कर लेने के बाद भी बाबा ने अपना अनशन नहीं तोड़ा| इसके विपरीत बाबा के मंच पर साम्प्रदायिक ताकतों और देश के अमन चैन को बार-बार नुकसान पहुँचाने वाले लोग लगातार दिखने लगे, जिससे जनता को इस बात में कोई भ्रम नहीं रहा कि बाबा का अनशन भ्रष्टाचार या कालेधन के खिलाफ नहीं, बल्कि एक विचारधारा और दल विशेष द्वारा प्रायोजित था, जिसकी अनशन खतम होते-होते प्रमाणिक रूप से पुष्टि भी हो गयी|

बाबा के आन्दोलन से देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आम लोगों की मुहिम को बहुत बड़ा घक्का लगा है| बाबा योगी से समाज सेवक और अन्त में राजनेता बनते-बनते कहीं के भी नहीं रहे| उनकी शाख बुरी तरह से गिर चुकी है| इस प्रकार के लोगों के कारण जहॉं भ्रष्ट और तानाशाही प्रवृत्तियॉं ताकतवर होती हैं, वहीं दूसरी ओर आम लोगों की संगठित और एकजुट ताकत को घहरे घाव लगते हैं| आम लोग जो अन्ना की मण्डली की करतूतों के कारण पहले से ही खुद को लुटा-पिटा और ठगा हुआ अनुभव कर रहे थे, वहीं बाबा के ड्रामा ब्राण्ड अनशन के कारण स्वयं बाबा के अनुयायी भी अपने आपको मायूस और हताशा से घिरा हुआ पा रहे हैं|

बाबा ने हजारों लोगों को शस्त्र शिक्षा देने का ऐलान करके समाज के बहुत बड़े निष्प्क्ष तबके को एक झटके में ही नाराज और अपने आप से दूर कर दिया और देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तालिबानी छबि में बदलने का तोगड़िया-ब्राण्ड अपराध अंजाम देने का इरादा जगजाहिर करके अपने गुप्त ऐजेण्डे को सरेआम कर दिया| रही सही कसर भारतीय जनता पार्टी की डॉंस-मण्डली ने सत्याग्रह के नाम पर पूरी कर दी|

इन सब बातों से केन्द्र सरकार को भ्रष्टाचार के समक्ष झुकाने और कठोर कानून बनवाने की देशव्यापी मुहिम को बहुत बड़ा झटका लगा है| आम लोग तो प्रशासन, सरकार और राजनेताओं के भ्रष्टाचार, मनमानी और अत्याचारों से निजात पाने के लिये अन्ना और बाबा का साथ देना चाहते हैं, लेकिन इनके इरादे समाजहित से राजनैतिक हितों में तब्दील होने लगें, विशेषकर यदि बाबा खुलकर साम्प्रदायिक ताकतों के हाथों की कठपुतली बनकर देश को तालिबानी लोगों की फौज से संचालित करने का इरादा जताते हैं तो इसे भारत जैसे परिपक्व धर्मनिरपेक्ष लोकतन्त्र में किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता|कुल मिलाकर अन्ना और बाबा रामदेव के आन्दोलनों और अनशनों के बाद आम व्यथित और उत्पीड़ित जनता को सोचना होगा कि उन्हें इंसाफ चाहिये तो न तो विदेशों के अनुदान के सहारे आन्दोलन चलाने वालों से न्याय की उम्मीद की जा सकती है और न हीं भ्रष्ट लोगों से अपार धन जमा करके भ्रष्टारियों के विरुद्ध आन्दोलन चलाने की हुंकार भरने वाले बाबा रामदेव से कोई आशा की जा सकती है|

Thursday, April 14, 2011

अन्ना जी मतदाता को गाली मत दो! आप एक निश्कलंक व्यक्ति तक नहीं ढूँढ सके!!


अन्ना जी मतदाता को गाली मत दो!
आप एक निश्कलंक व्यक्ति तक नहीं ढूँढ सके!!


यदि गलती से इस (लोकपाल) पद पर कोई भ्रष्ट, चालाक और मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति आ गया तो..? इसलिये जन लोकपाल बिल का ड्राफ्ट बनाने वाली समिति को प्रस्तावित जन लोकपाल को नियन्त्रित करने की व्यवस्था भी, बिल में ही करनी चाहिये| इतिहास के पन्ने पटलकर देखें तो पायेंगे कि जब संविधान बनाया गया था तो किसने सोचा होगा कि पण्डित सुखराम, ए. राजा, मस्जिद ध्वंसक लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, संविधान निर्माता डॉ. अम्बेड़कर को गाली देने वाले अरुण शौरी जैसे लोग भी मन्त्री के रूप में संविधान की शपथ लेकर माननीय हो जायेंगे? जब सीवीसी अर्थात् मुख्य सतर्कता आयुक्त बनाया गया था तो किसी ने सोचा होगा कि इस पद पर एक दिन दागी थॉमस की भी नियुक्ति होगी? किसी ने सोचा होगा कि मुख्यमन्त्री के पद पर बैठकर नरेन्द्र मोदी गुजरात में कत्लेआम करायेंगे? जिससे पूरे संसार के समक्ष भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि तहस-नहस हो जायेगी? ऐसे हालातों में हमें हजारे जी कैसे विश्‍वास दिलायेंगे कि जितने भी व्यक्ति आगे चलकर प्रस्तावित जन लोकपाल के शक्ति-सम्पन्न पद पर बिराजमान होंगे, वे बिना पूर्वाग्रह के पूर्ण-सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के साथ राष्ट्रहित में अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करेंगे|




डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

राजनेताओं से निराश और अफसरशाही से त्रस्त भोले देशवासियों द्वारा बिना कुछ जाने समझे कथित गॉंधीवादी अन्ना हजारे के गीत गाये जा रहे हैं| गाये भी क्यों न जायें, जब मीडिया बार-बार कह रहा है कि एक अकेले अन्ना ने वह कर दिखाने का विश्‍वास दिलाया है, जिसे सभी दल मिलकर भी नहीं कर पाये| अर्थात् उन्होंने देश के लोगों में जन लोकपाल बिल पास करवाने की आशा जगाई है| मीडिया ने अन्ना हजारे का गीत इतना गया कि बाबा रामदेव की ही तरह हजारे के बारे में भी कुछ छुपी हुई बातें भी जनता के सामने आ गयी हैं| जिनके बारे में व्यावसायिक मीडिया से आम पाठक को जानकारी नहीं मिल पाती है| जबकि इन बातों को देश के लोगों को जानना जरूरी है| जिससे कि अन्ना के आन्दोलन में सहभागी बनने वालों को ज्ञात हो सके कि वे किसके साथ काम करने जा रहे हैं| कुछ बातें, जिन पर वैब-मीडिया ने काफी माथा-पच्ची की है :-

1. अन्ना हजारे असली भारतीय नहीं, बल्कि असली मराठी माणुस : मुम्बई में हिन्दीभाषी लोगों को जब बेरहमी से मार-मार कर महाराष्ट्र से बाहर खदेड़ा जा रहा था तो अन्ना हजारे ने इस असंवैधानिक और आपराधिक कुकृत्य का विरोध करने के बजाय राज ठाकरे को शाबासी दी और उसका समर्थन करके असली भारतीय नहीं, बल्कि असली मराठी माणुस होने का परिचय दिया| जानिये ऐसे हैं हमारे नये गॉंधीवादी अवतार!

2. अन्ना हजारे ने दो विवादस्पद पूर्व जजों के नाम सुझाये : जन्तर-मन्तर पर अनशन पर बैठते समय अन्ना हजारे ने कहा कि उनके प्रस्तावित जन लोकपाल बिल का ड्राफ्ट बनाने वाली समिति का अध्यक्ष किसी मन्त्री या किसी राजनैतिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति को नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के किसी पूर्व जज को बनाया जायेगा| इस काम के लिये अन्ना हजारे ने दो पूर्व जजों के नाम भी सुझाये|

3. एक हैं-पूर्व चीफ जज जे. एस. वर्मा जो संसार की सबसे कुख्यात कम्पनी ‘‘कोका-कोला’’ के हितों के लिये काम करते हैं : दो पूर्व जजों में से एक हैं-पूर्व चीफ जज जे. एस. वर्मा, जिनके बारे में देश को लोगों को जानने का हक है कि आज जे. एस. वर्मा क्या कर रहे हैं? संसार की सबसे कुख्यात कम्पनी ‘‘कोका-कोला’’ को भ्रष्ट अफसरशाही एवं राजनेताओं के गठजोड़ के कारण भारत की पवित्र नदियों को जहरीला बनाने और कृषि-भूमि में जहरीले कैमीकल छोड़कर उन्हें बंजर बनाने की पूरी छूट मिली हुई है| जिसे देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी सही ठहरा दिया है| ये कैसे सम्भव हुआ होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है| ऐसी खतरनाक कम्पनी को देश से बाहर निकालने हेतु देशभर में राष्ट्रभक्तों द्वारा वर्षों से जनान्दोलन चलाया जा रहा है| इस आन्दोलन को कुचलने और इसे तहस-नहस करने के लिये कम्पनी ने अपार धन-सम्पदा से सम्पन्न एक ‘‘कोका-कोला फाउण्डेशन’’ बनाया है, जिसके प्रमुख सदस्य हैं पूर्व चीफ जज जे. एस. वर्मा| इसके अलावा सारे संसार को यह भी पता है कि कोका कोला कम्पनी साम्राज्यवादी देशों के हितों के लिये लगातार काम करती रही है| ऐसी कम्पनी के हितों की रक्षा के लिये काम करते हैं, इस देश के पूर्व चीफ जज-जे. एस वर्मा| जिन्हें अन्ना हजारे बिल ड्राफ्ट करने वाली समिति का अध्यक्ष बनाना चाहते थे| देश का सौभाग्य कि बना नहीं सके|

4. दूसरे पूर्व जज हैं-एन. सन्तोष हेगड़े जो संविधान की मूल अवधारणा सामाजिक न्याय के विरुद्ध जाकर शोषित एवं दमित वर्ग अर्थात्-दलित, आदिवासी और पिछड़ों के विरुद्ध निर्णय देने से नहीं हिचकिचाये : अन्ना हजारे द्वारा सुझाये गये दूसरे पूर्व जज हैं-एन. सन्तोष हेगड़े| जो सुप्रीम कोर्ट के जज रहते संविधान की मूल अवधारणा सामाजिक न्याय के विरुद्ध जाकर आरक्षण के विरोध में फैसला देने के लिये चर्चित रह चुके हैं| जो व्यक्ति देश की सबसे बड़ी अदालत की कुर्सी पर बैठकर भी मूल निवासियों को इंसाफ नहीं दे सका हो, जो अपने जातिगत पूर्वाग्रहों को नहीं त्याग सका हो और हजारों वर्षों से शोषित एवं दमित वर्ग अर्थात्-दलित, आदिवासी और पिछड़ों के विरुद्ध (जिनकी आबादी देश की कुल आबादी का 85 प्रतिशत है) निर्णय देने से नहीं हिचकिचाया हो, उसे अन्ना हजारे जी जन लोकपाल बिल का ड्राफ्ट बनाने वाली समिति का चैयरमैन बनाना चाहते थे| देश का सौभाग्य कि बना नहीं सके|

5. वकालती हुनर के जरिये बीस करोड़ सम्पत्ति एक लाख में ले लेने वाले शान्तिभूषण को बनाया सह अध्यक्ष : उक्त दोनों जजों की सारी असलियत अनशन के दौरान ही जनता के सामने आ गयी, तो अन्ना हजारे वित्तमन्त्री प्रणव मुखर्जी को अध्यक्ष एवं अपनी ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता शान्तिभूषण को सह-अध्यक्ष बनाने पर सहमत हो गये, जो 1977 में बनी पहली गैर-कॉंग्रेसी सरकार में मन्त्री रह चुके है| हजारे की ओर से समिति के सह अध्यक्ष बने शान्तिभूषण एवं उनके पुत्र प्रशान्त भूषण (दोनों जन लोकपाल का ड्राफ्ट बनाने वाली समिति में हैं) ने 2010 में अपने वकालती हुनर के जरिये इलाहाबाद शहर में बीस करोड़ से अधिक बाजार मूल्य की अचल सम्पत्ति एवं मकान मात्र एक लाख में ले ली और स्टाम्प शुल्क भी नहीं चुकाया|

6. शान्तिभूषण एवं नियुक्त सदस्यों की सत्सनिष्ठा, देशभक्ति एवं देश के संविधान के प्रति निष्ठा के बारे में अन्ना हजारे को कैसे विश्‍वास हुआ : इससे अन्ना हजारे की राजनैतिक एवं भ्रष्ट व्यक्ति को समिति का अध्यक्ष नहीं बनाने वाली बात की असलियत जनता के सामने आ चुकी है| भूषण पिता-पुत्र सहित हजारे की ओर से नियुक्त अन्य सदस्यों की सत्सनिष्ठा, देशभक्ति एवं देश के संविधान के प्रति निष्ठा के बारे में अन्ना हजारे को कैसे विश्‍वास हुआ, यह आज तक देश को अन्ना हजारे ने नहीं बताया है| जबकि इस बारे में देश के लोगों को जानने का पूरा-पूरा हक है|

7. बाबा रामदेव और अन्ना हजारे कितने गॉंधीवादी और अहिंसा के कितने समर्थक हैं? हजारे ने अनशन शुरू करने से पूर्व गॉंधी की समाधि पर जाकर मथ्था टेका और स्वयं को गॉंधीवादी कहकर अनशन की शुरूआत की, लेकिन स्वयं अन्ना की उपस्थिति में अनशन मंच से अल्पसंख्यकों को विरुद्ध बाबा रामदेव के हरियाणा के कार्यकर्ता हिंसापूर्ण भाषणबाजी करते रहे| जिस पर स्वयं अन्ना हजारे को भी तालियॉं बजाते और खुश होते हुए देखा गया| यही नहीं अनशन समाप्त करने के बाद हजारे ने आजाद भारत के इतिहास के सबसे कुख्यात गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी को देश का सर्वश्रेृष्ठ मुख्यमन्त्री घोषित कर दिया| अब यह देशवासियों को समझना होगा कि बाबा रामदेव और आधुनिक गॉंधी अन्ना हजारे कितने गॉंधीवादी और अहिंसा समर्थक हैं?

8. एनजीओ और उद्योगपतियों के काले कारनामों और भ्रष्टाचार के बारे में भी एक शब्द नहीं बोला : अन्ना हजारे ने सेवा के नाम पर विदेशों से अरबों का दान लेकर डकार जाने वाले और देश को बेचने वाले कथित समाजसेवी संगठनों (एनजीओज्) के बारे में एक शब्द भी नहीं बोला, सरकारी बैंकों का अस्सी प्रतिशत धन हजम कर जाने वाले भारत के उद्योगपतियों के काले कारनामों और भ्रष्टाचार के बारे में भी एक शब्द नहीं बोला! आखिर क्यों? क्योंकि इन्हीं सबके मार्फत तो अन्ना के अनशन एवं सारे तामझाम का खर्च वहन किया जा रहा था|

9. अन्ना की मानसिक स्थिति-‘‘देश का आम मतदाता सौ रुपये में और दारू की एक बोतल में बिक जाता है|’’ स्वयं अन्ना हजारे अपनी अप्रत्याशित सफलता के कारण केवल दिल्ली से महाराष्ट्र रवाना होने से पूर्व आम मतदाता को गाली देने से भी नहीं चूके| संवाददाताओं को अन्ना ने साफ शब्दों में कहा कि ‘‘देश का आम मतदाता सौ रुपये में और दारू की एक बोतल में बिक जाता है|’’ अब अन्ना को ये कौन समझाये कि मतदाता ऐसे बिकने को तैयार होता तो संसद में आम लोगों के बीच के नहीं, बल्कि अन्ना के करीब मुम्बई में रहने वाले उद्योगपति बैठे होते| अन्ना जी आम मतदाता को गाली मत दो, आम मतदाता ही भारत और स्वयं आपकी असली ताकत हैं| इस बात से अन्ना की मानसिक स्थिति समझी जा सकती है!

10. लोकपाल कौन होगा? ऐसे हालात में सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि हजारे के प्रस्तावित जन लोकपाल बिल को यदि संसद पास कर भी देती है, तो इस सबसे शक्ति सम्पन्न संवैधानिक संस्था का मुखिया अर्थात् लोकपाल कौन होगा? क्योंकि जिस प्रकार का जन-लोकपाल बिल ड्राफ्ट बनाये जाने का प्रस्ताव है, उसके अनुसार तो लोकपाल इस देश की कार्यपालिका, न्यायपालिका और व्यवस्थापिका से भी सर्वोच्च होगा| उसके नियन्त्रणाधीन केन्द्रीय एवं सभी राज्य सरकारें भी होगी और वह अन्तिम और बाध्यकारी निर्णय लेकर लागू करने में सक्षम होगा| बाबा राम देव तो लोकपाल को सुप्रीम कोर्ट के समकक्ष दर्जा देने की मांग कर रहे हैं|

11. भ्रष्ट, चालाक और मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति के लोकपाल बनने की सम्भावना को पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता : ऐसे में देश के सवा सौ करोड़ लोगों की ओर से मेरा सीधा सवाल यह है कि यदि गलती से इस (लोकपाल) पद पर कोई भ्रष्ट, चालाक और मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति आ गया तो..? आने की सम्भावना को पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता है| इतिहास के पन्ने पटलकर देखें तो पायेंगे कि जब संविधान बनाया गया था तो किसने सोचा होगा कि पण्डित सुखराम, ए. राजा, मस्जिद ध्वंसक लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, संविधान निर्माता डॉ. अम्बेड़कर को गाली देने वाले अरुण शौरी जैसे लोग भी मन्त्री के रूप में संविधान की शपथ लेकर माननीय हो जायेंगे? जब सीवीसी अर्थात् मुख्य सतर्कता आयुक्त बनाया गया था तो किसी ने सोचा होगा कि इस पथ पर एक दिन दागी थॉमस की भी नियुक्ति होगी? किसी ने सोचा होगा कि मुख्यमन्त्री के पद पर बैठकर नरेन्द्र मोदी गुजरात में कत्लेआम करायेंगे? जिससे पूरे संसार के समक्ष भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि तहस-नहस हो जायेगी? ऐसे हालातों में हमें हजारे जी कैसे विश्‍वास दिलायेंगे कि जितने भी व्यक्ति आगे चलकर प्रस्तावित जन लोकपाल के शक्ति-सम्पन्न पद पर बिराजमान होंगे, वे बिना पूर्वाग्रह के पूर्ण-सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के साथ राष्ट्रहित में अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करेंगे| विशेषकर तब जबकि जन लोकपाल का बिल ड्राफ्ट बनाने वाली समित के लिये हजारे जी को अपनी ओर से मनवांछित और पूर्व घोषित पैमाने पर खरा उतरने वाला एक अराजनैतिक एवं निश्कलंक छवि का यक्ति नहीं मिल सका!

इसलिये जन लोकपाल बिल का ड्राफ्ट बनाने वाली समिति को प्रस्तावित जन लोकपाल को नियन्त्रित करने की व्यवस्था भी, बिल में ही करनी चाहिये| अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि इस देश के सभी संवैधानिक निकायों पर नियन्त्रण करने वाला लोकपाल स्वयं अधिनायक बन जाये और भारत की लोकतान्त्रिक विरासत मिट्टी में मिल जाये और, या ऐसा शक्ति-सम्पन्न कोई भी व्यक्ति उन सभी से अधिक भ्रष्ट हो जाये, जिन भ्रष्टों के भ्रष्टाचार की रोकथाम के पवित्र उद्देश्य से हजारे और देशवासियों द्वारा उसे बनाया और रचा जा रहा है? विशेषकर तब जबकि थॉमस के मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भारत सरकार की ओर से यह कहा जा चुका है कि पूरी तरह से निर्विवाद और निश्कलंक छवि का व्यक्ति ढूँढना आसान नहीं है!