मेरे शुभचिंतक और समालोचक जिनके विश्वास एवं संबल पर मैं यहाँ लिख पा रहा हूँ!

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Thursday, October 11, 2012

भ्रष्टाचार के खिलाफ मु:ह बंद रखें!

देशभक्त, जागरूक और सतर्क लोगों को इस बात पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना होगा कि भ्रष्ट जन राजनेताओं से कहीं अधिक भ्रष्ट, देश की अफसरशाही है और पूर्व अफसर से राजनेता बने जन प्रतिनिधि उनसे भी अधिक भ्रष्ट और खतरनाक होते हैं। इन्हें किस प्रकार से रोका जावे, इस बारे में गहन चिंतन करने की सख्त जरूरत है, क्योंकि ऐसे पूर्व भ्रष्ट अफसरों को संसद और विधानसभाओं में भेजकर देश की जनता खुद अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है!

Tuesday, November 24, 2009

दुर्घटना रोकने वालों को नौकरी

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
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हर दुर्घटना की हर बार उच्च स्तरीय जाँच होती है, जाँच रिपोर्ट में दुर्घटना के कारणों एवं भविष्य में उनके निवारण के अनेक नये-नये तरीके सुझाये जाते हैं, परन्तु ये सारी रिपोर्ट केवल अंग्रेजी में ही बनायी जाती हैं, जिनके हिन्दी अनुवाद तक की आवश्यकता नहीं समझी जाती है।जबकि सुझाये जाने वाले सारे नियम और उपायों को निचले स्तर पर ही अंग्रेजी नहीं जानने वाले रेलकर्मियों को लागू करना होता है। ऐसे में इन जाँच रिपोर्ट और रेल संरक्षा से जुड़े नये-नये उपायों का तब तक कोई औचित्य नहीं है, जब तक कि रेल संचालन से जुड़ा हर एक नियम उस भाषा में नहीं बने, जिस भाषा को निचले स्तर का रेलकर्मी ठीक से पढने और समझने में सक्षम हो। बेशक वह भाषा गुजराती, मराठी, पंजाबी, तेलगू, कन्नड़, हिन्दी या अन्य कोई सी भी भाषा क्यों न हो। देश के लोगों की जानमाल की सुरक्षा से बढकर कुछ भी नहीं है।


लम्बे अन्तराल के बाद, देश के अनेक हिस्सों में अनेक रेल दुर्घटनाएँ घटित हो गयी। जिनके सन्दर्भ में रेल मन्त्री ममता बनर्जी ने हुगली जिले के नारीकुल इलाके में आयोजित एक कार्यक्रम में घोषणा की, कि ग्रामीण लोग हमारी सबसे बड़ी संपत्ति हैं। देश भर में रेलवे की सभी संपत्तियों की हिफाजत में मैं ग्रामीणों की मदद चाहती हूँ। जो भी ग्रामीण व्यक्ति किसी रेल दुर्घटना को रोकने में हमारी मदद के लिए आगे आएगा, हम उसे रेलवे में नौकरी प्रदान करेंगे।

ममताजी एक बार पूर्व में भी अटलजी के नेतृत्व वाली सरकार में रेल मन्त्री रह चुकी हैं। इसलिये यह तो नहीं माना जा सकता कि वे नयी हैं और उनको रेलवे दुर्घटनाएँ क्यों होती हैं, इस बारे में जानकारी नहीं होगी। सच्ची बात यह है कि रेल मन्त्री काले अंग्रेज अफशरों के चंगुल से बाहर निकल कर देखें तो पता चलेगा कि रेलवे के हालात कितने खराब हैं और इन खराब हालातों के लिये कौन जिम्मेदार हैं?

ममताजी रेलवे मन्त्रालय में बेशक आपने एक ईमानदार रेल मन्त्री की छवि बनायी है, परन्तु आपके आसपास के वातानुकूलित कक्षों में विराजमान काले अंग्रेजों ने भारतीय रेल की कैसी दुर्दशा कर रखी है, जरा इस पर भी तो गौर कीजिये। आपको पता करना चाहिये कि रेलवे की दुर्घटनाओं की जिम्मेदारी निर्धारित करने वाले उच्च रेल अधिकारी क्या कभी, किसी भी जाँच में दुर्घटनाओं के लिये जिम्मेदार नहीं ठहराये जाते? आप पायेंगी कि भारतीय रेलवे के इतिहास में किसी अपवाद को छोड़ दिया जाये तो रेलवे के सारे के सारे अफसर दूध के धुले हैं।वे कभी भी ऐसा कुछ नहीं करते कि उनकी वजह से रेलवे की दुर्घटना होती हों।

रेल दुर्घटनाओं के लिये तो हर बार निचले स्तर के छोटे कर्मचारियों ही जिम्मेदार ठहराये जाते रहे हैं। जिनमें भी पोइण्ट्‌समैन, कांटेवाला, कैबिनमैन, स्टेशन मास्टर आदि कम पढे लिखे और कम वेतन पाने वाले, किन्तु रात-दिन रेलवे की सेवा करने वाले लोग शामिल होते हैं। बेशक इनमें से अनेक ग्रेज्युएट भी होते हैं, लेकिन ग्रेज्युएट होकर भी निचले स्तर पर ये लोग इसलिये नौकरी कर रहे होते हैं, क्योंकि उन्होंने किसी सरकारी स्कूल में हिन्दी माध्यम से शिक्षा प्राप्त की होती है और ग्रामीण परिवेश तथा गरीबी के चलते वे अंग्रेजी सीखने से वंचित रह जाते हैं। जिसके चलते संघ लोक सेवा आयोग में अनिवार्य अंग्रेजी विषय को उत्तीर्ण करना इनके लिये असम्भव होता है। ऐसे कर्मचारियों को रेलवे में, रेलवे संचालन से जुड़े सारे के सारे नियम-कानून और प्रावधान केवल अंग्रेजी में पढ एवं समझकर लागू करने को बाध्य किया जा रहा है।

जो लोग अंग्रेजी को ठीक से पढ नहीं सकते, उनके लिये यह सब असम्भव होता है। जिसके चलते अंग्रेजी में लिखे प्रावधानों-नियमों का उल्लंघन होना स्वाभाविक है। जिसका दुखद दुष्परिणाम रेल दुर्घटना होता है। हर दुर्घटना की हर बार उच्च स्तरीय जाँच होती है, जाँच रिपोर्ट में दुर्घटना के कारणों एवं भविष्य में उनके निवारण के अनेक नये-नये तरीके सुझाये जाते हैं, परन्तु ये सारी रिपोर्ट केवल अंग्रेजी में ही बनायी जाती हैं, जिनके हिन्दी अनुवाद तक की आवश्यकता नहीं समझी जाती है।जबकि सुझाये जाने वाले सारे नियम और उपायों को निचले स्तर पर ही अंग्रेजी नहीं जानने वाले रेलकर्मियों को लागू करना होता है। ऐसे में इन जाँच रिपोर्ट और रेल संरक्षा से जुड़े नये-नये उपायों का तब तक कोई औचित्य नहीं है, जब तक कि रेल संचालन से जुड़ा हर एक नियम उस भाषा में नहीं बने, जिस भाषा को निचले स्तर का रेलकर्मी ठीक से पढने और समझने में सक्षम हो। बेशक वह भाषा गुजराती, मराठी, पंजाबी, तेलगू, कन्नड़, हिन्दी या अन्य कोई सी भी भाषा क्यों न हो। देश के लोगों की जानमाल की सुरक्षा से बढकर कुछ भी नहीं है।


लेकिन यह तब ही सम्भव है, जबकि रेलमन्त्रीजी रेलवे संरक्षा एवं रेलवे संचालन से जुड़े प्रावधानों को अंग्रेजी में बनाकर, अंग्रेजी नहीं जानने वालों पर जबरन थोपने वाले असली गुनेहगारों को भी सजा देनी की हिम्मत जुटा पायें। अन्यथा तो होगा ये कि आप रेल दुर्घटना को बचाने के पुरस्कार में किसी ग्रामीण को रेलवे में नौकरी देंगी और अंग्रेजी कानूनों का उल्लंघन करने पर, ऐसे ग्रामीण रेलकर्मी को कोई रेल अधिकारी नौकरी से निकाल देगा। आजाद भारत में इससे बढकर शर्मनाक कुछ भी नहीं हो सकता। वाह क्या नियम हैं?