डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
प्रारम्भ में जब सूचना अधिकार कानून की लड़ाई लड़ी जा रही थी तो आम लोगों को इस कानून से भारी उम्मीद थी| लेकिन जैसे ही इस कानून से सच्चाई बाहर आत दिखी तो अफसरशाही ने इस कानून की धार को कुन्द करने के लिये नये-नये रास्ते खोजना शुरू कर दिये| जिसे परोक्ष और अनेक बार प्रत्यक्ष रूप से न्यायपालिका ने भी संरक्षण प्रदान किया है| अन्यथा अकेला सूचना का अधिकार कानून ही बहुत बड़ा बदलाव ला सकता था| एक समय वाहवाही लूटने वाले सत्ताधारी भी इस कानून को लागू करने के निर्णय को लेकर पछताने लगे हैं| जिसके चलते इस कानून को भोथरा करने के लिये कई बार इसमें संशोधन करने का दुस्साहस करने का असफल प्रयास किया गया| जिसे इस देश के लोगों की लोकतान्त्रिक शक्ति ने डराकर रोक रखा है|