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Friday, April 5, 2013

राजस्थान को गुजरात बनाने से रोक पाना मुश्किल होगा।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

राजस्थान शुरू से ही शान्ति, सौहार्द, सांस्कृतिक मिठास और मेहमान नवाजी के लिये जाना जाता रहा है, लेकिन पिछले दो दशकों से राजस्थान में ऐसे तत्वों का दबदबा बढा है, जो यहॉं की शान्ति और सौहार्द को तहस-नहस करने पर तुले हुए हैं। इनका एकमात्र लक्ष्य है किसी भी प्रकार से सत्ता पर काबिज होना। ये जब-

Thursday, October 11, 2012

भ्रष्टाचार के खिलाफ मु:ह बंद रखें!

देशभक्त, जागरूक और सतर्क लोगों को इस बात पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना होगा कि भ्रष्ट जन राजनेताओं से कहीं अधिक भ्रष्ट, देश की अफसरशाही है और पूर्व अफसर से राजनेता बने जन प्रतिनिधि उनसे भी अधिक भ्रष्ट और खतरनाक होते हैं। इन्हें किस प्रकार से रोका जावे, इस बारे में गहन चिंतन करने की सख्त जरूरत है, क्योंकि ऐसे पूर्व भ्रष्ट अफसरों को संसद और विधानसभाओं में भेजकर देश की जनता खुद अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है!

Saturday, May 21, 2011

जागो देशवासियों, जागो, अब सोने का वक्त नहीं!


डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

समाजवादी पार्टी के भूतपूर्व और अभूतपूर्व महासचिव एवं कद्दावर कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश के राजनेता, जिनकी राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय पहचान भी है, हमेशा से किसी न किसी कारण से चर्चा में बने रहते हैं| इस बार सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अमर सिंह के फोन टेप करके बनाई गयी सीडी को लेकर चर्चा में हैं| ये सीडी अमर सिंह की असलियत (जिसके बारे में पहले से ही लोगों को बहुत कुछ ज्ञात है) या अमर सिंह से बात करने वालों की असलियत को ही उजागर नहीं करती हैं, बल्कि हमारी ओर से तथा अन्य अनेक देशप्रेमी भारतीय लोगों की ओर से इण्डियन अफसरशाही, उद्योगपतियों तथा सत्ताधीशों के आपराधिक गठजोड़ के बारे में समय-समय पर कही जाने वाली बातों की कड़वी सच्चाई की पुष्टि भी करती हैं|

इन सीडियों को लेकर विवाद होना तय है कि इनसे छेड़छाड़ की गयी है| यदि इनसे छेड़छाड़ की भी गयी है, तो भी जो कुछ जनता के सामने लाया गया है, वह देश के लोगों को अवसर प्रदान करता है कि दो प्रतिशत इण्डियन अंग्रेजों द्वारा पूरे भारत देश में फैलायी जा रही गन्दगी को साफ करना है तो संसद, सरकार या अफसरशाही से उम्मीद करना अपने आपको ही धोखे में रखना होगा| इसके लिये तो भारतीयों को आगे आना होगा और शहीद-ए-आजम भगत सिंह तथा उनके जैसे सैकड़ों बलिदानियों की भांति भारत की असली आजादी के लिये हमें बलिदान देने के लिये तैयार रहना होगा| अन्यथा दो प्रतिशत काले अंग्रेज इस देश को विदेशों के हाथ पूरी तरह से बेच देंगे|

अमर सिंह की सीडी बनाई गयी हैं, ऐसी सीडी हर एक राजनेता और हर एक अफसर की बनाई जाने की जरूरत है, जिससे सफेदपोश मुखौटों के पीछे छिपी गन्दगी को उजागर किया जा सके| यदि अब भी आम जनता और देशभक्त नहीं चेते तो हमारी आगे की राह बहुत मुश्किल और कांटोंभरी होगी| जिसकी अन्तिम मंजिल अत्याचार, शोषण, उत्पीड़न, मिलावट, गैर-बराबरी, भेदभाव, नाइंसाफी और भ्रष्टाचार के रास्ते हजारों साल की गुलामी है, जो विदेशी मूल के व्यापारियों, आक्रान्ताओं, लुटेरों एवं अंग्रेजों की गुलामी से भी अधिक घातक तथा दु:खद होगी| जागो देशवासियों, जागो, अब सोने का वक्त नहीं!

Friday, January 7, 2011

रूपम पाठक एक चेतावनी है!

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

रूपम पाठक का मामला केवल बिहार, भाजपा, नीतिश कुमार या राजनैतिक ताकतों के मनमानेपन का ही प्रमाण नहीं है, बल्कि यह प्रकरण एक ऐसा उदाहरण है जो हर छोटे-बडे व्यक्ति को यह सोचने का विवश करता है कि नाइंसाफी से परेशान इंसान किसी भी सीमा तक जा सकता है।
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सारे देश में लोगों के लिये यह खबर एक नया सन्देश लेकर आयी है कि-बिहार विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के टिकिट पर चुनकर आये बाहुबली विधायक राजकिशोर केसरी का जनता से मेलमिलाप के दौरान रूपम पाठक ने सार्वजनिक रूप से चाकू घोंपकर बेरहमी से कत्ल कर दिया। मौके पर तैनात पुलिस वालों ने रूपम को घटनास्थल पर पकड लिया और पीट-पीट कर अधमरा कर दिया।

घटनास्थल पर उपस्थित अधिकांश लोगों को और विशेषकर पुलिसवालों को इस बात की पूरी जानकारी थी कि विधायक पर क्यों हमला किया गया है एवं हमला करने वाली महिला कितनी मजबूर थी। बावजूद इसके पुलिस वालों ने आक्रमण करने वाली महिला अर्थात् रूपम पाठक द्वारा किये गए आक्रमण के समय सुरक्षा गार्ड उसको नियन्त्रित नहीं कर सके और उसकी बेरहमी से पिटाई की, जिसका पुलिस को कोई अधिकार नहीं था। जहाँ तक मुझे जानकारी है, रूपम की पिटाई करने वाले पुलिस वालों के विरुद्ध किसी प्रकार का प्रकरण तक दर्ज नहीं किया गया है। जबकि रूपम के विरुद्ध हत्या का अभियोग दर्ज करने के साथ-साथ, रूपम पर आक्रमण करने वालों के विरुद्ध भी मामला दर्ज होना चाहिये था।

राजकिशोर केसरी की हत्या के बाद यह बात सभी के सामने आ चुकी है कि इस घटना से पहले रूपम पाठक ने बाकायदा लिखित में फरियाद की थी कि राज किशोर केसरी, विधायक चुने जाने से पूर्व से ही गत तीन वर्षों से उसका यौन-शोषण करते रहे थे और उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित भी कर रहे थे। जिसके विरुद्ध नीतिश कुमार प्रशासन से कानूनी संरक्षण प्रदान करने और दोषी विधायक के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही करने की मांग भी की गयी थी, लेकिन पुलिस प्रशासन एवं नीतिश सरकार कुमार ने रूपम पाठक को न्याय दिलाना तो दूर, किसी भी प्रकार की प्राथमिक कानूनी कार्यवाही करना तक जरूरी नहीं समझा। आखिर सत्ताधारी गठबन्धन के विधायक के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही कैसे की जा सकती थी?

स्वाभाविक रूप से रूपम पाठक द्वारा पुलिस को फरियाद करने के बाद; विधायक राज किशोर केसरी एवं उनकी चौकडी ने रूपम पाठक एवं उसके परिवार को तरह-तरह से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। सूत्र यह भी बतलाते हैं कि रूपम पाठक से राज किशोर केसरी के लम्बे समय से सम्बन्ध थे। जिन्हें बाद में रूपम ने यौन शोषण का नाम दिया है। हालांकि इन्हें रूपम ने अपनी नीयति मानकर स्वीकार करना माना है, लेकिन पिछले कुछ समय से राज किशोर केसरी ने रूपम की 17-18 वर्षीय बेटी पर कुदृष्टि डालना शुरू कर दिया था, जो रूपम पाठक को मंजूर नहीं था। इसी कारण से रूपम पाठक ने पहले पुलिस में गुहार की और जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो खुद ने ही विधायक एवं विधायक के आतंक का खेल खतम कर दिया!

रूपम पाठक ने जिस विधायक का खेल खत्म किया है, उस विधायक के विरुद्ध दाण्डिक कार्यवाही नहीं करने के लिये बिहार की पुलिस के साथ-साथ नीतिश कुमार के नेतृत्व वाली संयुक्त सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है। विशेषकर भाजपा इस कलंक को धो नहीं सकती, क्योंकि राजकिशोर केसरी को भाजपा ने यह जानते हुए भी टिकिट दिया कि राज किशोर केसरी पूर्णिया जिले में आपराधिक छवि के व्यक्ति के रूप में जाना जाता था। जिसकी पुष्टि चुनाव लडने के लिये पेश किये गये स्वयं राज किशोर केसरी के शपथ-पत्र से ही होती है।

पवित्र चाल, चरित्र एवं चेहरे तथा भय, भूख एवं भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने का नारा देने वाली भाजपा का यह भी एक चेहरा है, जिसे बिहार के साथ-साथ पूरे देश को ठीक से पहचान लेना चाहिये और नीतिश कुमार को देश में सुशासन के शुरूआत करने वाला जननायक सिद्ध करने वालों को भी अपने गिरेबान में झांकना होगा। इससे उन्हें ज्ञात होना चाहिये कि बिहार के जमीनी हालात कितने पाक-साफ हैं। जो सरकार एक महिला द्वारा दायर मामले में संज्ञान नहीं ले सकती, उससे किसी भी नयी शुरूआत की उम्मीद करना दिन में सपने देखने के सिवा कुछ भी नहीं है!

रूपम पाठक का मामला केवल बिहार, भाजपा, नीतिश कुमार या राजनैतिक ताकतों के मनमानेपन का ही प्रमाण नहीं है, बल्कि यह प्रकरण एक ऐसा उदाहरण है जो हर छोटे-बडे व्यक्ति को यह सोचने का विवश करता है कि नाइंसाफी से परेशान इंसान किसी भी सीमा तक जा सकता है। पुलिस, प्रशासन एवं लोकतान्त्रिक ताकतें आम व्यक्ति के प्रति असंवेदनशील होकर अपनी पदस्थिति का दुरूपयोग कर रही हैं और देश के संसाधनों का मनमाना उपयोग तथा दुरूपयोग कर रही हैं। सत्ता एवं ताकत के मद में आम व्यक्ति के अस्तित्व को ही नकार रही हैं।

ऐसे मदहोश लोगों को जगाने के लिये रूपम ने फांसी के फन्दे की परवाह नहीं करते हुए, अन्याय एवं मनमानी के विरुद्ध एक आत्मघाती कदम उठाया है। जिसे यद्यपि न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन रूपम का यह कदम न्याय एवं कानून-व्यवस्था की विफलता का ही प्रमाण एवं परिणाम है। जब कानून और न्याय व्यवस्था निरीह, शोषित एवं दमित लोगों के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं तो रूपम पाठक तथा फूलन देवियों को अपने हाथों में हथियार उठाने पडते हैं। जब आम इंसान को हथियार उठाना पडता है तो उसे कानून अपराधी मानता है और सजा भी सुनाता है, लेकिन देश के कर्णधारों के लिये और विशेषकर जन प्रतिनिधियों तथा अफसरशाही के लिये यह मनमानी के विरुद्ध एक ऐसी शुरूआत है, जिससे सर्दी के कडकडाते मौसम में अनेकों का पसीना छूट रहा है।

अत: बेहतर होगा कि राजनेता, पुलिस एवं उच्च प्रशासनिक अधिकारी रूपम के मामले से सबक लें और लोगों को कानून के अनुसार तत्काल न्याय देने या दिलाने के लिये अपने संवैधानिक और कानूनी फर्ज का निर्वाह करें, अन्यथा हर गली मोहल्लें में आगे भी अनेक रूपम पैदा होने से रोकी नहीं जा सकेंगी। समझने वालों के लिये रूपम एक चेतावनी है!