जयपुर। भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने एक बयान जारी करके कहा है कि देश की सबसे बडी अदालत के प्रधान न्यायाधीश का बलात्कारी से विवाह करने की अनुमति दिये जाने सम्बन्धी बयान निन्दनीय तो है ही साथ ही साथ प्रधान न्यायाधीश की गरिमा के अनुरूप भी नहीं है।
डॉ. मीणा का कहना है कि देश के प्रधान न्यायाधीश जैसे गरिमामयी और संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति से ऐसे अमानवीय और अव्यावहारिक बयानों की अपेक्षा नहीं की जा सकती। यदि इस प्रकार से बलात्कारी से विवाह करने को परोक्ष रूप से बढावा दिया गया तो आगे चलकर सम्पूर्ण समाज को इसके अनेक प्रकार के अकल्पनीय, गम्भीर और घातक परिणामों का सामना करना पडेगा।
बास के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम मीणा का कहना है कि यदि एक क्षण को हम प्रधान न्यायाधीश के सुझाव को मान लेते हैं तो ऐसे रुग्ण लोग जो किसी लडकी से विवाह करने में सफल नहीं हो पाते हैं, वे पहले तो उससे बलात्कार करेंगे और बाद में पीडित लडकी को विवश करके विवाह करने को राजी कर लिया जायेगा। इससे जहाँ एक ओर तो महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में वृद्धि होगी, वहीं दूसरी ओर इससे बलात्कार जैसे गम्भीर अपराध की सजा से अपराधी बच निकलेगा।
डॉ. मीणा का कहना है कि अब समय आ गया है, जबकि संवैधानिक एवं जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों द्वारा स्त्री के प्रति अधिक संवेदनशीलता का परिचय दिया जाये और उसे भी इंसान समझा जाये। जब किसी बलात्कारी से विवाह करने की बात कहीं जाती है तो किसी भी पीडिता स्त्री के लिये इससे बडी अपमानजनक कोई बात नहीं हो सकती।
डॉ. मीणा कहते हैं कि इस प्रकार के बयान देने वाला चाहे देश का प्रधान न्यायाधीश हो या अन्य कोई भी हो, हर एक इंसाफ पसन्द व्यक्ति द्वारा उसकी आलोचना और भर्त्सना की ही जानी चाहिये। डॉ. मीणा ने कहा है कि इस प्रकार के अमानवीय और असंवेदनशील बयान की कुछ महिला संगठनों के अलावा अन्य किसी के द्वारा आलोचना नहीं किया जाना भी बेहद चिन्ता का विषय है।
बास के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम मीणा का कहना है कि जब भी स्त्री के सवाल पर निर्णय लेना हो पुरुष को केवल पति या प्रेमी बनकर ही नहीं, बल्कि पिता और भाई बनकर भी सोचने की आदत डालनी चाहिये। तब ही पुरुष, स्त्री से जुडे मामलों में पूर्ण न्याय कर सकेगा।
-प्रेस विज्ञप्ति जारी करंता : पंकज सत्तावत, सहायक कार्यालय सचिव, राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय, भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास), जयपुर।
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