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Saturday, January 30, 2010

गरीबी मिटाने के लिये, गरीबों को मिटाने की नीति

गरीबी मिटाने के लिये
गरीबों को मिटाने की नीति

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

पिछले 10-15 वर्षों में सूचना के क्षेत्र में क्रान्ति आ गयी है, जिसके लाभ हम सभी को मिल रहे हैं। धनाढ्य लोगों को इसका लाभ, गरीबों की तुलना में अधिक मिल रहा है। सूचना क्रान्ति के युग में मशीनीकरण भी तेजी से हुआ है। रोजाना देश में नयी-नयी और बडी-बडी कारें तथा मोटर साईकलें सडक पर आ रही हैं। इनका लाभ भी अमीरों को ही अधिक मिल रहा है। देश की प्रगति दर को दर्शाने वाले आंकडे भी अमीरों की प्रगति के ही आंकडे हैं। आज देश में आम आदमी दाल रोटी के लिये तरस रहा है, जबकि देश की सरकार प्रगतिपथ पर देश के तेजी से प्रगति करने के गीत गा रही है। कुल मिलाकर आज हर वस्तु अमीरों के लिये पैदा की जा रही है। भारत की अर्थव्यवस्था जो कभी समाजवाद को अपना मुख्य आधार माना करती थी, जिसके चलते देश के अन्तिम व्यक्ति तक राहत पहुंचाने का प्रयास होता था, वही अर्थव्यवस्था अब पूरी तरह से पूंजीवाद को समर्पित है। बल्कि यह कहना उचित होगा कि हर तरह से पूंतीपतियों को समर्पित है। भारत के अर्थशास्त्री प्रधानमन्त्री इसी नीति से देश के आम व्यक्ति के उत्थान की कल्पना किये बैठे हैं। हो सकता है कि उनकी नीति आने वाले कुछ दशकों बाद, जब वे स्वयं इस देश में नहीं होंगे, कोई चमत्कार करे, लेकिन आज तो इस नीति के चलते आम व्यक्ति बुरी तरह से त्रस्त है। आम व्यक्ति चाय बनाने के लिये चीनी और अपने आपको जिन्दा रखने के लिये दाल रोटी तक की व्यवस्था नहीं कर पा रहा है। वर्तमान नीति कुछ दशकों में आम और विपन्न व्यक्ति को बेमौत मरने के लिये विवश कर देगी तब न तो गरीब रहेगा और न हीं किसी को गरीबी की बात करने की जरूरत होगी। लगता है कि सरकार गरीबी मिटाने के लिये गरीबों को मिटाने की नीति पर काम कर रही है।
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-लेखक होम्योपैथ चिकित्सक, मानव व्यवहारशास्त्री, दाम्पत्य विवादों के सलाहकार, विविध विषयों के लेखक, कवि, शायर, चिन्तक, शोधार्थी, तनाव मुक्त जीवन, लोगों से काम लेने की कला, सकारात्मक जीवन पद्धति आदि विषय के व्याख्याता तथा समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। जिसमें 28 जनवरी, 2010 तक, 4049 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे)

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