युवा सोच के धनी श्री विकास भारतीय ने मुझे निम्न आलेख पढने का संकेत मेल पर किया, मैंने इसे पढ़कर नीचे अपनी प्रतिक्रिया भी उनको लिख भेजी है :-
TUESDAY, FEBRUARY 16, 2010
अगला भगत सिंह कौन?
आने वाले विगत वर्षो में भारत में जो भुखमरी आनेवाली है उसका अंदाजा न तो केंद्र सरकार को है नाही इसपर कोई क्रांतिकारी कदम आम जनता द्वारा ही उठाया जा रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रतिस्पर्धा के कारण छोटे उद्योगों का दिन प्रतिदिन विनाश होता जा रहा है। अपार्टमेंट्स और बहुमंजिली इमारतों से आम जनता को कुछ भी मिलने वाला नहीं है। आम जनता को तो रोजगार चाहिए। यहाँ मै ये बता देना चाहता हूँ की आम जनता आखिर है कौन? आम जनता वो है जिनके माँ बाप गरीबी रेखा से नीचे की जीवन श्रेणी में जीवन यापन करते है। जिनको मिलने वाला सरकारी फंड सरकारी लुटेरो की जेबों को गर्म रखता है। जो घुट घुट कर जीने को मजबूर है। जिनके पास खाने को नहीं है और सरकार कहती है अपने बच्चो को पढ़ाओ और काम न करवाओ। इसके लिए सरकार ने श्रम मंत्रालय तक का निर्माण किया है जिनका ज्यादातर समय कार्यालयों में सेब, चाय, सिगरेट और मशाले खाते हुए कटता है। जिस घर में बीमारी ने अपना ठेहा जमा रखा हो और घर में दो जून की रोटी न हो अगर उससे सरकार कहे की अपने बच्चो से काम न करवाओ तो यह कहा तक उचित है। अंग्रेजी आसान भाषा है ऐसा ज्यादातर विद्वानों से सुनने को मिलता है। अगर ऐसा है तो महात्मा गाँधी, राम मनोहर लोहिया और खुद केंद्र सरकार आज़ादी के समय से ही क्यों हिंदी लाने के लिए प्रयत्नसिल थे और है भी? प्रश्न यह उठता है की आखिर हम इंग्लिश क्यों सीखे? हमारे ब्यूरोक्रेट्स, अधिकारी और सरकारी कर्मचारी अगर अपने कर्तव्यों का सही से पालन करते और कर रहे होते तो आज जो भयावह स्थिति बनी है क्या वो बन पाती? क्योकि अगर शुरू से ही हिंदी का विकास और सत्प्रयोग किया गया होता तो शायद आज ये स्थिति नहीं बनती। महात्मा गाँधी ने तो यहाँ तक कहा था की ये राष्ट्र द्रोह है उन्होंने प्रसिद्ध स्वराज्य में लिखा था की अंग्रेजी जानने वाले ने आम जनता को ठगने में कुछ न उठा रखा है।
लेकिन वर्तमान में उन गरीबो का जो शीतलहर से पूल के निचे, किसी राजमार्ग के किनारे मर रहे है? शायद वो नहीं होता। अगर आज़ादी के पश्चात हमारे देश के करता धर्ताओ ने देश के साथ थोडा भी देशभक्ति दिखाया होता तो शायद जो स्थिति आज उत्पन्न हुई है वो न हो पाती। आज सामाचार पत्रों में ये मुद्दे प्राचीन सभ्यताओ की तरह अथवा हिंदी भाषा को ही ले लीजिये की तरह ख़तम होते जा रहा है। हमारे देश की जनसँख्या १ अरब से कही ज्यादा है और कुछ लाख लोगो के इंजिनियर, डॉक्टर बन जाने से अथवा कुछ हज़ार अच्छे बहुमंजिली इमारतों के बन जाने से उन गरीबो का क्या लेना देना है। सरकार दिखा रही की देश का विकास हो रहा है लेकिन सरकार इसपर प्रकाश नहीं डाल रही है। नरेगा हो या अन्य बहुत से मद जो गरीबो के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू किये गए है पूरा देश जानता है की कितने गरीबो का उससे कल्याण हो पाता है। समाचार पत्र, और एन.जी.ओ समाज में रुआब और सरकारी फंड पाने हेतु या गरीबो के स्वार्थ हेतु खोला जा रहा है ये शायद उन्ही हो मालूम होगा। आर.एन.आई के आकड़ो को देखा जाये और मार्केट में बिक रहे समाचार पत्रों को देखा जाये तो इसका अंदाजा और बेहतरी से किया जा सकता है। सरकार के खिलाफ अब बहुत कम ही पत्रकार अपना मुंह खोलने को तैयार है लेकिन ये सब समय की माया है। जनता अब क्रांति के मायने भूल चुकी है अथवा उसको कोई भगत सिंह , चंद्रशेखर आज़ाद जैसा नहीं मिल पा रहा है। अथवा आज के भगत सिंह और चन्द्र शेखर आज़ाद को फिक्र हो गयी है की वो जमाना कुछ और था उस समय तो मात्र अंग्रेजो से भय था या उनकी जमात काम थी। लेकिन आज अगर आवाज उठाया तो कही मेरे ही खिलाफ सी.बी.आई जाँच न शुरू हो जाए, कही मुझे मार न दिया जाये या कही मुझे समूचे लोकतंत्र से तो नहीं जूझना पड़ेगा।
समय का तकाजा है देखना है अगला भगत सिंह कब सामने आएगा।
लेकिन वर्तमान में उन गरीबो का जो शीतलहर से पूल के निचे, किसी राजमार्ग के किनारे मर रहे है? शायद वो नहीं होता। अगर आज़ादी के पश्चात हमारे देश के करता धर्ताओ ने देश के साथ थोडा भी देशभक्ति दिखाया होता तो शायद जो स्थिति आज उत्पन्न हुई है वो न हो पाती। आज सामाचार पत्रों में ये मुद्दे प्राचीन सभ्यताओ की तरह अथवा हिंदी भाषा को ही ले लीजिये की तरह ख़तम होते जा रहा है। हमारे देश की जनसँख्या १ अरब से कही ज्यादा है और कुछ लाख लोगो के इंजिनियर, डॉक्टर बन जाने से अथवा कुछ हज़ार अच्छे बहुमंजिली इमारतों के बन जाने से उन गरीबो का क्या लेना देना है। सरकार दिखा रही की देश का विकास हो रहा है लेकिन सरकार इसपर प्रकाश नहीं डाल रही है। नरेगा हो या अन्य बहुत से मद जो गरीबो के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू किये गए है पूरा देश जानता है की कितने गरीबो का उससे कल्याण हो पाता है। समाचार पत्र, और एन.जी.ओ समाज में रुआब और सरकारी फंड पाने हेतु या गरीबो के स्वार्थ हेतु खोला जा रहा है ये शायद उन्ही हो मालूम होगा। आर.एन.आई के आकड़ो को देखा जाये और मार्केट में बिक रहे समाचार पत्रों को देखा जाये तो इसका अंदाजा और बेहतरी से किया जा सकता है। सरकार के खिलाफ अब बहुत कम ही पत्रकार अपना मुंह खोलने को तैयार है लेकिन ये सब समय की माया है। जनता अब क्रांति के मायने भूल चुकी है अथवा उसको कोई भगत सिंह , चंद्रशेखर आज़ाद जैसा नहीं मिल पा रहा है। अथवा आज के भगत सिंह और चन्द्र शेखर आज़ाद को फिक्र हो गयी है की वो जमाना कुछ और था उस समय तो मात्र अंग्रेजो से भय था या उनकी जमात काम थी। लेकिन आज अगर आवाज उठाया तो कही मेरे ही खिलाफ सी.बी.आई जाँच न शुरू हो जाए, कही मुझे मार न दिया जाये या कही मुझे समूचे लोकतंत्र से तो नहीं जूझना पड़ेगा।
समय का तकाजा है देखना है अगला भगत सिंह कब सामने आएगा।
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अगला भगत सिंह कभी भी पैदा होने वाला नहीं है!
bhagat sing to bahut hai bas unhe jagane wala chahiye.
ReplyDeleteaapko presspalika ke liye bhadhai
आज का युवा "मैकाले की शिक्षा पद्धति" का गुलाम नही है.. वो अच्छी तरह से जान गया है "नेहरू -गाँधी" की असलियत क्या है.. मैं निजी तौर पर मोहनदास गाँधी को इस देश के लिए अभिसाप कहूँगा..ये वही गिरा हुआ इंसान था जिसने "भगत सिंह , सुभाषचंद्र बोस, वीर सावरकर, जैसे ना जाने कितने देशभक्तों की बलि ली है..
ReplyDeleteसोनिया गाँधी, जिसने हिन्दुस्तान को कभी अपना नही समझा, वही राजीव जिसके नाम पर ये नीच सरकार "हज़ारो ग़रीबखाउ" योजना चला रही है,, उस राजीव गाँधी का असली चेहरा रह रह कर दुनिया के सामने आता रहता है.. पहले बोफोर्स, फिर भोपाल, फिर भारतीय खूफिया विभाग... और भी बहुत है,,,
आप क्या कहेंगे मीणा साहब इस पर...
aap ki bate sahi hai
ReplyDeleteper gandi ji ko kosna sahi nhi hai..
us samay englishman ka raaj tha na ki gandhi ji ka
gandhi ki kehne per wo bhagat ko chod dete ye samajh se pere hai
भाई साहब अब जान कर बहुत दुःख होता हैं आज के इंशान के बारे में लेकिन अब वो समय दूर नहीं कि व्यक्ति को खुद के अस्तित्व को बचाने के लिए भी दूसरे को उसे जगाना होगा। आज मानव आधुनिकरण की इस भीड़ में ऐसा खो गया है कि सब कुछ भूलता जा रहा है।
ReplyDeleteगांधीजी द्वारा बताये गये तीनों बन्दर वर्तमान मानवर बनकर इस देश में विचरण कर रहें
जो बिना अपने मतबल के न तो कुछ देखते है न कुछ सुनते हैं और कुछ कहते है।
यह देश का र्दुभाग्य नहीं तो और क्या है
शायद बात गांधी और भगत के रास्ते की नहीं है, बात है उस काम की जो उन्होंने किया. गाँधी के रास्ते को मैंने कभी सही नहीं माना हालाँकि ऐसे लोगो की कमी नहीं है जो गाँधी को धर्मात्मा और भगत सिंह को आतंकवादी बताते है...
ReplyDeleteसर आपका ब्लॉग पढ़कर बहोत ही प्रसन्नता हुई वाकई आपकी लिखवात में सत्यता हैं । साईबाबा करे आप और भी तरक्की करे यही शुभकामनाये
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