मेरे शुभचिंतक और समालोचक जिनके विश्वास एवं संबल पर मैं यहाँ लिख पा रहा हूँ!

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Tuesday, April 12, 2011

लोगों को सावधान रहने की जरूरत है!

लोगों को सावधान रहने की जरूरत है!

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ’निरंकुश’

जो लोग हमेशा ‘‘सामाजिक न्याय’’ और ‘‘दमित तबके के उत्थान’’ का लगातार विरोध करते रहे हैं, वे हजारे के नाम पर रोटी सेकते नज़र आ रहे हैं| केवल कुछ दिखावटी चेहरे, जो भी पूरी तरह से निर्विवाद नहीं बताये जा रहे हैं, देश की सवा सौ करोड़ आबादी का प्रतिनिधित्व करने का दावा करके देश के अस्सी प्रतिशत से अधिक लोगों के असली मुद्दों (जो भ्रष्टाचार से कहीं अधिक गम्भीर हैं) से लोगों का ध्यान हटाकर सफल होने का दावा कर सकते हैं| जिनकी ओर ध्यान देने या आन्दोलन करने की किसी को फुर्सत नहीं है, बल्कि अधिक और कड़वा सच तो ये है कि लोगों के जीवन से जुड़े मुद्दों के बारे में किसी भी दल या वर्ग को सोचने की फुर्सत नहीं है| विदेशी धन से समाज सेवा करने वालों से तो ऐसी आशा करना अपने आप को धोखे में रखना है!

देश में जिसे ‘‘हजारे आन्दोलन (?)’’ का नाम दिया गया, वह अपनी परिणिती पर पहुँच कर इस घोषणा के साथ समाप्त हो गया कि यदि जरूरत हुई तो फिर से ऐसा ही, बल्कि इससे भी भयंकर आन्दोलन किया जायेगा| स्वयं हजारे को भी जन्तर-मन्तर पर बैठने से पूर्व ज्ञात नहीं था कि वे इतने सफल हो जायेंगे और अपनी सफलता से बोरा जायेंगे और अपने होश-ओ-हवास खोकर देश के निचले तबके के मतदाता को गाली देते नजर आयेंगे| मतदाता को सौ रुपये या शराब की बोतल में बिकने वाला करार देकर अपनी बनावटी गॉंधीवादी छवि (?) को दिल्ली छोड़ने से पहले ही उतार फेंकेंगे! वैसे गॉंधी ने भी तो निचले तबके को मूर्ख बनाकर सैपरेट इलैक्ट्रोल का हक छीनकर दमित लोगों को हमेशा-हमेशा के लिये इस देश में गुलाम बनाये रखा है| ऐसे में इस देश के अधिसंख्य लोगों के लिये गॉंधीवाद या गॉंधीवाद का ढोंग कभी भी न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता|

जन्तर-मन्तर और मीडिया के मंच पर हजारे के नाम पर जो कुछ हुआ, उससे यदि सबसे अधिक लाभ में कोई रहा है तो वो है-मीडिया, जिसने जमकर खबरों को ऊटपटांग तरीके से विज्ञापनों में लपेटकर बेचा|

यहॉं पर ये बात भी विचारणीय हैं की लोकपाल बिल के बहाने ऐसे लोग भी (सभी नहीं) भ्रष्टाचार के विरोध में बातें करते नजर आ रहे हैं, बल्कि अधिक सही है तो ये होगा कि मीडिया द्वारा उन्हीं को दिखाया और छापा जा रहा है, जिन्होंने जीवन भर सिवाय भ्रष्टाचार, शोषण, उत्पीड़न और अत्याचार के कुछ किया ही नहीं| जो न्याय और जो ईमानदारी को तो जानते ही नहीं, जिन्होंने शराब की तस्करी और अफसरों की चमचागिरी से अथाह दौलत कमाई है, जिन्होंने देश में धार्मिक एवं साम्प्रदायिक उन्माद फैलाया है, जिन्होंने निचले तबके के लोगों से आजादी के बाद भी बेगार करवाई है और व्यभिचार एवं अत्याचार करना जो आज भी अपना जन्मजात हक़ समझते हैं!

ऐसे लोग भी हजारे जी के समर्थन में रोड पर ‘‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’’ का बैनर हाथ में लिए नज़र आये और अपने अरबपति मालिक (उद्योगपति) के शोषण के शिकार स्थानीय ‘‘अल्प वेतनभोगी पत्रकार’’ को खुश करके अपना चित्र भी समाचार पत्र में छपवाने में सफल हो गए! जो आन्दोलन (?) हुआ उसमें ऐसे लोगों के काले धन का भी जमकर उपयोग (?) हुआ| जो पत्रकार अपने शोषक मालिक के शोषण के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते, वे सत्ता के शीर्ष केन्द्र को पानी पी, पीकर कोसते नजर आये| इस श्रेणी के पत्रकारों के किसी पत्रकार संगठन ने अपना वेतन बढाने या सम्मानजक वेतन पाने के लिये आवाज उठाई हो और उसे मीडिया के माध्यम से देशभर के लोगों तक पहुँचाया हो, कम से कम मुझे तो याद नहीं आता|

जो लोग हमेशा ‘‘सामाजिक न्याय’’ और ‘‘दमित तबके के उत्थान’’ का लगातार विरोध करते रहे हैं, वे हजारे के नाम पर रोटी सेकते नज़र आ रहे हैं| केवल कुछ दिखावटी चेहरे, जो भी पूरी तरह से निर्विवाद नहीं बताये जा रहे हैं, देश की सवा सौ करोड़ आबादी का प्रतिनिधित्व करने का दावा करके देश के अस्सी प्रतिशत से अधिक लोगों के असली मुद्दों (जो भ्रष्टाचार से कहीं अधिक गम्भीर हैं) से लोगों का ध्यान हटाकर सफल होने का दावा कर सकते हैं| जिनकी ओर ध्यान देने या आन्दोलन करने की किसी को फुर्सत नहीं है, बल्कि अधिक और कड़वा सच तो ये है कि लोगों के जीवन से जुड़े मुद्दों के बारे में किसी भी दल या वर्ग को सोचने की फुर्सत नहीं है| विदेशी धन से समाज सेवा करने वालों से तो ऐसी आशा करना अपने आप को धोखे में रखना है!

भ्रष्टाचार के नाम यह आन्दोलन (?) कितने दिन तक? ये करीब-करीब जनता का वैसा ही अंध बहाव लगता है, जैसा ‘‘भय, भूख और भ्रष्टाचार मुक्त भारत’’ का दावा करने वालों ने जनता को बहकाकर देश को बर्बाद किया, और अनेक राज्यों में अभी भी कर रहे हैं! जो राष्ट्रवाद के नाम पर देश पर पुरातन शोषक व्यवस्था को फिर से थोपने पर आमादा हैं, जो समानता के नाम पर देश के अस्सी फीसदी लोगों के हकों को छीनकर भी बेशर्मी से चरित्रवान और सुसंसकृत होने का दम भरते हैं| कोई आश्चयर्य नहीं होगा यदि कल को ये पता चले की हजारे या हजारे के कुछ समर्थक इन्हीं राष्ट्रवादियों की कठपुतली निकलें? और आने वाले समय में देशहित के नाम पर इन्ही का झंडा लिये चुनाव मैदान में उतर जाएँ| इसलिये लोगों को सावधान रहने की जरूरत है|

---------------------------------लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र "प्रेसपालिका" के सम्पादक, विविध विषयों के लेखक, टिप्पणीकार, चिन्तक, शोधार्थी तथा समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार, मनमानी, मिलावट, गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन "भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान" (बास) (BAAS) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। जिसके हजारों आजीवन कार्यकर्ता (4747) राजस्थान के सभी जिलों एवं देश के आधे से अधिक राज्यों में सेवारत हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष : ऑल इण्डिया ट्राईबल रेलवे एम्पलाईज एसोसिएशन, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव : अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ|
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