मेरे शुभचिंतक और समालोचक जिनके विश्वास एवं संबल पर मैं यहाँ लिख पा रहा हूँ!

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Saturday, April 23, 2011

सिविल सोसायटी नायकों के चेहरों पर कितने मुखौटे लगे हैं?


डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

आजकल ऐसे नवोदित और परिष्कृत कहलाने वाले लेखकों को अन्ना हजारे प्रकरण के बहाने कांग्रेस को पानी पी पीकर कोसने का एक नया अवसर मिल गया है! ऐसे में यदि ये मान भी लिया जाये कि भ्रष्टाचार सहित इस देश की सारी समस्याओं की असली कारक केवल कांग्रेस ही है, तो फिर देश के लोगों को लगे हाथ कांग्रेस का विकल्प (और सभी समस्याओं का समाधान) भी ऐसे लेखकों को अवगत कराना चाहिए| जिससे देश के दलित, पिछड़े, आदिवासी, अनपढ़, कम पढ़े आम लोगों को देश पर शासन कर सकने वाला अगला विकल्प तो ज्ञात हो जाता और जिनका विकल्प पेश किया जाना है, उनके बारे में भी देश के लोगों को पता चल जाता कि-



कौन हैं वे-
दूध के धुले,
न्यायप्रिय और
इंसाफ पसंद लोग जो-
इस भ्रष्ट,
उत्पीड़क,
भेदभावपूर्ण,
शोषक,
उत्पीड़क,
मानव मानव में विभेद करने वाली और
दस फीसदी आर्यों द्वारा,
आर्यों ही के इशारों पर,
केवल आर्यों एवं उनके चमचों के हित में और
नब्बे फीसदी अनार्यों के विरुध्द संचालित व्यवस्था को
बदलकर, नब्बे फीसदी अनार्यों के हित में सरकार संचालित करने का
विश्वास दिला सकते हैं?

क्योंकि अपने ही रक्षकों (अर्थात आर्य क्षत्रियों) के क्रूर हत्यारे (परसराम) के वंशजों (आर्यों) से या उनके मोहपाश में गिरफ्त या उनके प्रभाव में दिग्भ्रमित अनार्यों से तो अब आगे आशा करना, अपने आप को ही धोखा देना होगा! बेशक ये लोग कितने ही चोला क्यों न बदल लें! वैसे भी आजादी के बाद से सत्ता के लिए कितने चोले बदले गए हैं?

गांधीवाद, समाजवाद, साम्यवाद, सामाजिक न्याय, राष्ट्रवाद, दलित उत्थान, गरीबी मिटाओ, मस्जिद गिराओ-मंदिर बनाओ और राम राज्य लाओ आदि के नाम पर कुर्सी संभालने वालों का असली और नंगा चरित्र देश की जनता को पता चल चुका है!

कोई इण्डिया को चमकाता है तो कोई भारत का उदय करता है, लेकिन सब के सब भारत की नहीं, केवल इण्डिया (कार्पोरेट, अफसरशाही, उद्योगपतियों आदि पांच सितारा संस्कृति के संवाहकों) की ही चिंता करते नज़र आते हैं!

और तो और कुछ लोगों को सिविल सोसायटी भी इन्हीं का एक नया रूप नज़र आने लगी है?

जो लोग विदेशों से धन लेकर और विदेशी सम्मान लेकर देश के सम्मान के लिए आंसू बहाते हैं, उनके बारे में देश के लोगों को जानना होगा कि इनके आंसू कहीं फ़िल्मी नायकों की भांति ग्लिसरीन के आंसू तो नहीं? साथ ही सिविल सोसायटी के इन नायकों के चेहरों पर कितने मुखौटे लगे हैं ये भी अन्ना हजारे प्रकरण के बाद जानना अब जरूरी हो गया है!

3 comments:

  1. आदरणीय डॉ. मीणा जी सिविल सोसाईटी के सदस्यों को लेकर आपकी चिन्ता स्वभाविक हैं , आखिर कौन नहीं जानता कि अधिकांश एनजीओ सरकारी टुकडों पर पलते है और विदेशों से उन्हें आर्थिक सहायता राष्ट्रसेवा करने पर कम और राष्ट्र को अपमानित करने पर अधिक मिलती हैं । यदि जनलोकपाल विधेयक की ड्राफ्टिंग समिति सच में भारत को भ्रष्टाचार मुक्त करना चाहती है तो सर्वप्रथम वह अपने सदस्यों की कुल सम्पत्ति की सार्वजनिक घोषणा करे तथा विवादित व छद्म समाज सेवियों को समिति से बाहर निकाल कर सुब्रह्मण्यम स्वामी , डॉ. अब्दुल कलाम , कर्णसिंह , किरण बेदी और गोविन्दाचार्य जैसे सच्चे राष्ट्रभक्त समाज सेवियों को इसमें स्थान दें ।
    डॉ. जी भारत के समाज को आर्य - अनार्य के विभाजित करना अंग्रेजी की कुटिल चाल थी जिसे आज भी जाने - अनजाने हमारे विद्वान ढोते जा रहे हैं । अब तो इतिहास और पुरातत्व से यह सिद्ध हो चुका है कि आर्य भारत के ही मूल निवासी हैं तो फिर आर्य - अनार्य के नाम पर विवाद क्योँ !

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