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Wednesday, August 17, 2011

सूचना अधिकार : सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्याख्या


डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

आजादी के बाद से आज तक के इतिहास में सूचना का अधिकार कानून इस देश के लोगों के लिये किसी भी सरकार की ओर से दिया गया सबसे बड़ा और ताकतवर तथा सटीक हथियार है| इस सूचना के अधिकार को येन-केन प्रकारेण कुन्द करने के लिये देश की भ्रष्ट अफसरशाही ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, लेकिन पहले तो दिल्ली हाई कोर्ट ने और अब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में भ्रष्ट अफसरशाही को यह सन्देश दिया है कि भ्रष्टाचारियों संभल जाओ, अन्यथा सूचना का अधिकार कानून तुम्हें खा जायेगा|

यह सर्वविदित तथ्य है और आये दिन इस प्रकार के मामले सामने आते रहे हैं कि उत्तर पुस्तिका में सम्पूर्ण उत्तर लिखने के उपरान्त भी परीक्षार्थी को मनमाने तरीके से असफल घोषित कर दिया जाता रहा है और कुछ भी नहीं लिखकर आने वालों को उच्च अंकों के साथ न मात्र सफल घोषित किया जाता है, बल्कि उनका सम्मान भी किया जाता रहा है| इस मनमानी के चलते अनेक होनहार विद्यार्थियों को उनकी मेहनत के अनुसार अंक नहीं मिल पाते और उनमें से कुछ कमजोर दिल वाले मौत तक को गले लगा लेते हैं!

इस पृष्ठभूमि में सूचना अधिकार कानून के तहत बार-बार उत्तर पुस्तिका दिखाने की मांग की जाती रही है| जिसे राज्य सूचना आयोगों और केन्द्रीय सूचना आयोग ने सही मानते हुए, सूचना अधिकार के तहत उत्तर पुस्तिका दिखाने के आदेश भी जारी किये, लेकिन कुकर्मों, भ्रष्ट कारनामों, अपने चहेतों का पक्ष लेने वालों और अपनी टांग ऊँची रखने वाले भ्रष्ट अफसरों ने इस अधिकार को मान्यता देने के बजाय, जनता के धन से सूचना आयोगों के निर्णयों को अदालतों में चुनौती देकर उत्तर पुस्तिका नहीं दिखाये जाने के अनेक बेतुके तर्क प्रस्तुत किये| जिन्हें अस्वीकार करके देश की सबसे बड़ी अदालत ने साफ कर दिया है कि कोई बहाना नहीं चलेगा उत्तर पुस्तिका दिखानी ही होगी|

सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि जॉंची गई कॉपियां ‘सूचना’ की परिभाषा के तहत आती हैं और इसलिए इसे सूचना अधिकार कानून के तहत उपलब्ध कराना अधिकारियों का अनिवार्य कानूनी दायित्व है| इस तरह अब कोई भी परीक्षा, जिसे चाहे कोई भी एजेंसी आयोजित करती हो, उसकी उत्तर पुस्तिका सूचना अधिकार कानून के तहत उसको दिखानी ही होंगी|

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर पुस्तिका नहीं दिखाने के लिये दी गयी यह दलील नहीं मानी कि अगर उत्तर पुस्तिकाएं मांगना छात्रों का अधिकार बन गया, तो ऐसी अर्जियों की बाढ़ आ जाएगी और उनके लिए काम करना मुश्किल हो जाएगा| अदालत ने इन व्यावहारिक दिक्कतों के ऊपर पारदर्शिता को तरजीह दी| 

कोर्ट ने साफ संकेत दिया है कि अब कोई बहाना नहीं चलने वाला है| यदि व्यवस्था नहीं है, तो नयी व्यवस्था बनाई जाये, लेकिन हर हाल में पारदर्शिता लागू की जाये| केन्द्रीय सूचना आयोग पूर्व में ही एक अन्य मामले में यह निर्णय भी दे चुका है कि कोई भी परीक्षार्थी सूचना अधिकार के तहत न मात्र अपनी स्वयं की उत्तर पुस्तिका, बल्कि किसी भी अन्य परीक्षार्थी की उत्तर पुस्तिका को भी देखने या उसकी फोटो कॉपी प्राप्त करने का हकदार है|

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से सरकारी कार्यालयों में विभागीय परीक्षाओं में होने वाली धांघली और परीक्षा समाप्त होने के बाद अपने निवास पर बुलाकर नकल करवाकर और रिश्‍वत लेकर अयोग्य लोगों को उत्तीर्ण करके पदोन्नति देने की भ्रष्ट व्यवस्था पर तो लगाम लगेगी ही, इसके साथ-साथ पिछले बीस वर्षों के दौरान उत्तर पुस्तिकाओं में की गयी धांधली को उजागर करने का कानूनी हथियार सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं को इस निर्णय ये मिल गया है|

लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ’निरंकुश’ जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक ‘प्रेसपालिका’ के सम्पादक तथा विविध विषयों के लेखक, विश्‍लेषक, आलोचक, टिप्पणीकार, कवि, शायर, चिन्तक, शोधार्थी, तनाव मुक्त जीवन पद्धति आदि अनेक विषय के व्याख्याता और समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं| जिसके पांच हजार से अधिक आजीवन सदस्य देश के अठारह राज्यों में सेवारत हैं! सम्पर्क सूत्र : 0141-2222225, 098285-02666

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