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Thursday, April 15, 2010

डॉ. अम्बेडकर की विरासत पर एक जाति विशेष के लोगों का कब्जा : डॉ. मीणा

डॉ. अम्बेडकर की विरासत पर एक जाति विशेष के लोगों का कब्जा : डॉ. मीणा
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आज आदिवासी एवं दलितों से भी कहीं अधिक ब्राह्मणों सहित सभी कथित सवर्ण जातियों के लिये अम्बेडकर के आदर्श और विचार प्रासंगिक हैं। आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें अपनी आँखों पर चढे उत्कृष्टता के चश्मे को उतार कर, दुनिया को समतामूलक दृष्टिकोण से देखने की शुरूआत करनी होगी। डॉ. मीणा ने कहा कि मैं बार-बार और हर मंच से कहता रहा हँू कि वर्तमान में ब्राह्मणों, राजपूतों, महाजनों, मुसलमानों, सिक्खों, बौद्धों आदि का बडा तबका बदहाली में जीने को विवश है। जिनके उत्थान के लिये न तो संविधान में आरक्षण जैसी कोई व्यवस्था है और न हीं उनके प्रति किसी की भी राजनैतिक दल की सहानुभूति है, बल्कि जब भी चालाक एवं चापलूस लोगों द्वारा आरक्षित और अनारक्षितों वर्गों के बीच नफरत की दीवार खडी की जाती है तो इसके शिकार ये लोग ही होते हैं।
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जयपुर। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा दमित एवं उत्पीडित समाज के लिये गये प्रयासों को दलित समाज की एक जाति विशेष ने बौना कर दिया है और वैश्विक व्यक्तित्व के धनि को उत्तर प्रदेश तक सीमित कर दिया है।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर जयन्ती के अवसर पर बोलते हुए उक्त विचार ऑल इण्डिया ट्राईबल रेलवे एम्पलाईज एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने व्यक्त किये। डॉ. मीणा का कहना है कि केवल दलितों के लिये ही नहीं, बल्कि सभी समाजों दमितों के लिये जीवनभर संघर्ष करने वाले माहामानव बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर को एक जाति विशेष के लोगों ने अपनी बपौती बना कर उनके सम्पूर्ण चिन्तन को बौना कर दिया है। यह डॉ. अम्बेडकर के सच्चे अनुयाईयों और इस देश के साथ खला द्रोह है है। डॉ. मीणा कहते हैं कि डॉ. अम्बेडकर ने सभी समाजों के दबे कुचले लोगों के आत्मसम्मान की रक्षा एवं उत्थान की बात कही थी और उसमें एक सीमा तक वे सफल भी रहे, परन्तु इस देश के दमित लोगों का यह दुर्भाग्य ही है कि अनुसूचित जाति वर्ग की एक जाति विशेष के लोगों ने बाबा साहेब को केवल अपनी बपौती और सम्पत्ति बनाकर दमित वर्ग की बहुसंख्यक ताकत को तहस-नहस कर दिया है। इस कारण इतनी कडवाहट फैल चुकी है कि आज देश में दलित-आदिवासी एकता भी सम्भव नहीं हो पा रही है। यही नहीं, बल्कि दलित समाज की संख्याबल में कमजोर जातियों को भी इन स्वार्थी एवं चालाक लोगों ने किनारे लगा दिया है। हजारों वर्षों से सण्डासों की सफाई का कार्य करने और मैला ढोने वाले बाल्मीकी समाज को तक इन्होंने कभी भी अपने समकक्ष नहीं समझा और स्वयं को बाबा साहेब के सबसे बडे अनुयाई बतलाते हैं। ऐसे मुखौटे लगाकर नेतृत्व करने वाले लोगों के कारण आधुनिक भारत के नौजवान अम्बेडकर को इन्हीं स्वार्थी और चालाक लोगों का ही पूर्वज मानने को विवश। जिसके चलते गैर दलित और गैर आदिवासी नौजवान अम्बेडकर से नफरत करते नजर आते हैं और इस बात का फायदा उठाकर जाति विशेष के उक्त स्वार्थी लोग समाज में आपसी कटुता पैदा करते हैं।

डॉ. अम्बेडकर के आदर्शों से प्रभावित होकर आजादी के बाद दलित समाज की ही संख्याबल में कमजोर जातियों से भी अनेक गैर-राजनैतिक लोग उभरकर सामने आये और उन्होंने बाबा साहेब के मिशन को आगे बढाने के लिये लगातार संघर्ष किया, जिनमें पिछले दो दशकों में डॉ. उदितराज का नाम प्रमुखता से उभरा है। परन्तु लगता है कि डॉ. उदितराज भी उक्त लोगों के षडयन्त्र का शिकार हो चुके हैं और जस्टिस पार्टी बनाकर लोगों के मन में स्थापित सम्मान एवं श्रृद्धा को लगातार गंवाते रहे हैं। इसके अलावा उदितराज ने न जाने किस कारण से स्वयं की आस्था के प्रतीक बौद्धधर्म का गुणगान करने को दलित-आदिवासी संगठनों के सभी कार्यक्रमों में अनिवार्य बना रखा है, जो उनके पतन का कारण बनता जा रहा है। जबकि यह बात सर्वज्ञात है कि कोई भी गैर राजनैतिक या राजनैतिक संगठन धर्म की सीमाओं में बंधकर कभी भी अपने उद्देश्यों को न तो इतिहास में कभी प्राप्त कर सका है और न हीं आगे कभी ऐसी सम्भावना है।

डॉ. मीणा ने कहा है कि दलित वर्ग की कमजोर जातियाँ और आदिवासी वर्ग अभी भी डॉ. उदितराज के नेतृत्व में डॉ. अम्बेडकर के मिशन को आगे बढते देखना चाहते हैं, लेकिन इसके लिये बहुत जरूरी है कि अहं को त्यागकर डॉ. उदितराज को सामाजिक और राजनैतिक में से किसी एक मंच को अपनाना होगा, लेकिन बिना बौद्ध धर्म का गुणगान किये। क्योंकि देश के अनेक हिस्सों में दलित और आदिवासी हिन्दू धर्म को छोडकर बौद्धधर्म से भिन्न धर्मों को अपना चुके हैं। स्वयं उदितराज की जाति के अनेक परिवार जैन धर्म के अनुयाई हैं और हजारों आदिवासी ईसाइयत को अपना चुके हैं। अनेक दलित इस्लाम और सिक्ख धर्म में आस्था रखते हैं और बहुसंख्यक आदिवासी तथा दलितों के घरों में आज भी हिन्दू धर्म की रीति-नीति को सम्पूर्ण आस्था से अपनाया जा रहा है। ऐसे में बौद्धधर्म का गुणगान करने की बाध्यता संविधान के अनुच्छेद २५ द्वारा प्रदत्त संवैधानिक मूल अधिकार का हनन है।

डॉ. अम्बेडकर की जयन्ती के अवसर पर डॉ. मीणा ने कहा कि आज आदिवासी एवं दलितों से भी कहीं अधिक ब्राह्मणों सहित सभी कथित सवर्ण जातियों के लिये अम्बेडकर के आदर्श और विचार प्रासंगिक हैं। आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें अपनी आँखों पर चढे उत्कृष्टता के चश्मे को उतार कर, दुनिया को समतामूलक दृष्टिकोण से देखने की शुरूआत करनी होगी। डॉ. मीणा ने कहा कि मैं बार-बार और हर मंच से कहता रहा हँू कि वर्तमान में ब्राह्मणों, राजपूतों, महाजनों, मुसलमानों, सिक्खों, बौद्धों आदि का बडा तबका बदहाली में जीने को विवश है। जिनके उत्थान के लिये न तो संविधान में आरक्षण जैसी कोई व्यवस्था है और न हीं उनके प्रति किसी की भी राजनैतिक दल की सहानुभूति है, बल्कि जब भी चालाक एवं चापलूस लोगों द्वारा आरक्षित और अनारक्षितों वर्गों के बीच नफरत की दीवार खडी की जाती है तो इसके शिकार ये लोग ही होते हैं। डॉ. मीणा ने दोहराया कि इसके लिये बहुत जरूरी है कि श्रेृष्ठता का खोखला चश्मा उतारें और अम्बेडकर को किसी जाति विशेष की पूँजी नहीं बनने दें और अम्बेडकर के आदेर्शों को अपने जीवन में अपनायें। डॉ. मीणा ने कहा कि इसके लिये पहला मन्त्र जो मैं बतलाना चाहता हँू, वह यह है कि समाज एवं सरकार को एक समान लोगों के साथ, एक जैसा बर्ताव करने के लिये विवश किया जावे। जिसके लिये संविधान में भी स्पष्ट प्रावधान हैं, लेकिन उन्हें लागू करवाने के लिये सभी परेशान और आहत लोगों को मिलकर आगे आने की जरूरत है। डॉ. मीणा ने कहा कि सभी समाजों एवं सभी धर्मों के शोषित, दमित, दलित और उत्पीडित लोगों के साथ होने वाले अत्याचार एवं नाइंसाफियों के विरुद्ध एकजुट होकर आवाज उठाने के लिये ही तो हमने १९९३ में भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान की स्थापना की थी। जिसके बैनर पर आज देश के १७ राज्यों में ४१०० से अधिक आजीवन कार्यकर्ता लगातार काम कर रहे हैं।
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.....................-लेखक प्रेसपालिका (पाक्षिक समाचार-पत्र) के सम्पादक, होम्योपैथ चिकित्सक, मानव व्यवहारशास्त्री, दाम्पत्य विवादों के सलाहकार, विविध विषयों के लेखक, कवि, शायर, चिन्तक, शोधार्थी, तनाव मुक्त जीवन, लोगों से काम लेने की कला, सकारात्मक जीवन पद्धति आदि अनेक विषयों के व्याख्याता तथा समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध १९९३ में स्थापित एवं १९९४ से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। जिसमें ४१९६ रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता देश के १७ राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. ०१४१-२२२२२२५ (सायं ७ से ८ बजे) मो. ०९८२८५-०२६६६।
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