मेरे शुभचिंतक और समालोचक जिनके विश्वास एवं संबल पर मैं यहाँ लिख पा रहा हूँ!

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Monday, July 19, 2010

रेल दुर्घटना की वजह अंग्रेजी भी?

रेल दुर्घटना की वजह अंग्रेजी भी?

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
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यह तभी सम्भव है,
जब मंत्रीजी रेलवे संरक्षा एवं रेलवे संचालन से जुडे प्रावधानों को अंग्रेजी में बनाकर, अंग्रेजी नहीं जानने वालों पर जबरन थोपने वाले असली गुनेहगारों को भी सजा देनी की हिम्मत जुटा पायें, अन्यथा होगा ये कि आप रेल दुर्घटना को बचाने के पुरस्कार में मृतकों के परिजनों को रेलवे में नौकरी देंगी और आगे चलकर अंग्रेजी कानूनों का उल्लंघन करने पर, ऐसी अनुकम्पा के आधार पर भर्ती हुए रेलकर्मियों को कोई रेल अधिकारी नौकरी से निकाल देगा। आजाद भारत में इससे बढकर शर्मनाक कुछ भी नहीं हो सकता। वाह क्या नियम हैं?
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रेल दुर्घटना होने के बाद राजनैतिक पार्टियों की ओर से रेल मन्त्री ममता बनर्जी पर आरोप है कि उनको पं. बंगाल के मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर बैठने की इतनी जल्दी है कि उन्हें रेल मन्त्रालय संभालने की फुर्सत ही नहीं है। ममता जी पूर्व में भी अटल जी के नेतृत्व वाली सरकार में रेल मंत्री रह चुकी हैं। इसलिए, यह तो नहीं माना जा सकता कि वे नयी हैं और उनको रेलवे दुर्घटनाएं क्यों होती हैं, इस बारे में जानकारी नहीं होगी। सधी बात यह है कि रेल मंत्री काले अंग्रेज अफसरों के चंगुल से बाहर निकल कर देखें, तो पता चलेगा कि रेलवे के हालात कितने खराब हैं और इन खराब हालातों के लिये कौन जिम्मेदार हैं? ममता जी! रेलवे मंत्रालय में बेशक आपने एक ईमानदार रेल मंत्री की छवि बनायी है, परन्तु आपके आसपास के वातानुकूलित कक्षों में विराजमान काले अंग्रेजों ने भारतीय रेल की कैसी दुर्दशा कर रखी है, जरा इस पर भी तो गौर कीजिये। आपको पता करना चाहिये कि रेलवे की दुर्घटनाओं की जिम्मेदारी निर्धारित करने वाले उध रेल अधिकारी क्या कभी, किसी भी जांच में दुर्घटनाओं के लिये जिम्मेदार नहीं ठहराये जाते? आप पायेंगी कि भारतीय रेलवे के इतिहास में किसी अपवाद को छोड दिया जाये तो दुर्घटनाओं के सम्बन्ध में रेलवे के सारे के सारे अफसर दूध के धुले हैं। वे कभी भी ऐसा कुछ नहीं करते कि उनकी वजह से रेल दुर्घटना होती हों।

रेल दुर्घटनाओं के लिये तो हर बार निचले स्तर के छोटे कर्मचारियों ही जिम्मेदार ठहराये जाते रहे हैं। इनमें भी प्वाइंट्‌समैन, कांटेवाला, कैबिन मैन, स्टेशन मास्टर, गार्ड, चालक, सह चालक आदि कम पढे लिखे और कम वेतन पाने वाले, किन्तु रात-दिन रेलवे की सेवा करने वाले लोग शामिल होते हैं। बेशक, इनमें से अनेक ग्रेजुएट भी होते हैं, लेकिन ग्रेजुएट होकर भी निचले स्तर पर ये लोग इसलिये नौकरी कर रहे होते हैं, क्योंकि उन्होंने किसी सरकारी स्कू ल में हिन्दी माध्यम से शिक्षा प्राप्त की हुई होती है और ग्रामीण परिवेश तथा गरीबी के चलते वे अंग्रेजी सीखने से वंचित रह जाते हैं, जिसके चलते संघ लोक सेवा आयोग में अनिवार्य अंग्रेजी विषय को उत्तीर्ण करना इनके लिये असम्भव होता है। ऐसे कर्मचारियों को रेलवे में, रेलवे संचालन से जुडे सारे के सारे नियम-कानून और प्रावधान केवल अंग्रेजी में पढ एवं समझकर लागू करने को बाध्य किया जा रहा है।

जो लोग अंग्रेजी को ठीक से पढ नहीं सकते, उनके लिये यह सब असम्भव होता है, जिसके चलते अंग्रेजी में लिखे रेल परिचालन के प्रावधानों-नियमों का उल्लंघन होना स्वाभाविक है। जिसका दुखद दुष्परिणाम रेल दुर्घटना होता है।

हर दुर्घटना की हर बार उध स्तरीय जांच होती है। जांच रिपोर्ट में दुर्घटना के कारणों एवं भविष्य में उनके निवारण के अनेक नये-नये तरीके सुझाये जाते हैं, परन्तु ये सारी की सारी रिपोर्ट केवल अंग्रेजी में ही बनाई जाती हैं, जिनके हिन्दी अनुवाद तक की आवश्यकता नहीं समझी जाती है, जबकि सुझाए जाने वाले सारे नियम-कानूनों और उपायों को निचले स्तर पर ही अंग्रेजी नहीं जानने वाले रेलकर्मियों को लागू करना होता है। ऐसे में इन जांच रिपोटोर्ं और रेल संरक्षा से जुडे नये-नये उपायों का तब तक कोई औचित्य नहीं है, जब तक कि रेल संचालन से जुडा हर एक नियम उस भाषा में नहीं बने, जिस भाषा को निचले स्तर का रेलकर्मी ठीक से पढने और समझने में सक्षम हो। बेशक वह भाषा गुजराती, मराठी, पंजाबी, तेलगू, कन्नड, हिन्दी या अन्य कोई सी भी क्षेत्रीय भाषा क्यों न हो। देश के लोगों की जानमाल की सुरक्षा से बढकर कुछ भी नहीं है।

लेकिन यह तभी सम्भव है, जब मंत्रीजी रेलवे संरक्षा एवं रेलवे संचालन से जुडे प्रावधानों को अंग्रेजी में बनाकर, अंग्रेजी नहीं जानने वालों पर जबरन थोपने वाले असली गुनेहगारों को भी सजा देनी की हिम्मत जुटा पायें, अन्यथा होगा ये कि आप रेल दुर्घटना को बचाने के पुरस्कार में मृतकों के परिजनों को रेलवे में नौकरी देंगी और आगे चलकर अंग्रेजी कानूनों का उल्लंघन करने पर, ऐसी अनुकम्पा के आधार पर भर्ती हुए रेलकर्मियों को कोई रेल अधिकारी नौकरी से निकाल देगा। आजाद भारत में इससे बढकर शर्मनाक कुछ भी नहीं हो सकता। वाह क्या नियम हैं?

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) (जो दिल्ली से देश के सत्रह राज्यों में संचालित है।
इस संगठन ने आज तक किसी गैर-सदस्य, सरकार या अन्य किसी से एक पैसा भी अनुदान ग्रहण नहीं किया है। इसमें वर्तमान में ४३६६ आजीवन रजिस्टर्ड कार्यकर्ता सेवारत हैं।)। फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८) मो. ०९८२८५-०२६६६

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर लेख लिखा है आपने ..... आज भी हमारे यहाँ अग्रेजी को जादा महत्व दिया जाता है ! हाला कि कितने एउरोपियन देश मै लोग अग्रेजी नहीं जानते और उनको इस बात का जरा भी दुःख नहीं है ! वाह शासन का काम / ऑफिस काम अपनी भाषा मै चल रहा है ! अगर आप बहार देश से है तो आपको एक तो भाषा सिखानी होती है या फिर दुभाशिका खर्चा उठाना होता है ....
    हमारे जैसे १०० करोड वाले देश के लिए ये शर्मनाक बात है ...कि हमें अपनी भाषा से शर्म आती है ...

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  2. सच है। अंग्रेजी ही इस देश के बहुत से रोगों की जड़ है। भारत में कुछ भी मौलिक न होना (केवल नकल ही नकल) के पीछे भी अंग्रेजी ही है। चीन, जापान, इजरायल, कोरिया, जर्मनी आदि इसलिये मौलिक काम कर पा रहे हैं क्योंकि उनकी शिक्षा-दीक्षा अपनी-अपनी मातृभाषाओं में हुए हैं।

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  3. "निरंकुश" जी चलिये आप एक बात पर तो स्वामी रामदेव जी से सहमत हुये कि इस देश की अधिकाँश समस्यायोँ की जड़ मेँ अँग्रेजी और अँग्रेजी मानसिकता है और जिम्मेदार जवाहर लाल नेहरु है स्वामी जी का एजेन्डा अगर 100% लागू हो जाये तो भारत की सारी समस्याओँ का समाधान हो जायेगा मगर आप जैसे लोग मात्र इसलिये विरोध करते हैँ कि सारा श्रेय स्वामी रामदेव जी को चला जायेगा तो आप को कौन विद्वान मानेगा?

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  4. "निरंकुश" जी चलिये आप एक बात पर तो स्वामी रामदेव जी से सहमत हुये कि इस देश की अधिकाँश समस्यायोँ की जड़ मेँ अँग्रेजी और अँग्रेजी मानसिकता है और जिम्मेदार जवाहर लाल नेहरु है स्वामी जी का एजेन्डा अगर 100% लागू हो जाये तो भारत की सारी समस्याओँ का समाधान हो जायेगा मगर आप जैसे लोग मात्र इसलिये विरोध करते हैँ कि सारा श्रेय स्वामी रामदेव जी को चला जायेगा तो आप को कौन विद्वान मानेगा? (प्रभाकर विश्वकर्मा मो0-09559908060ईमेलps50236@gmail.com

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