मेरे शुभचिंतक और समालोचक जिनके विश्वास एवं संबल पर मैं यहाँ लिख पा रहा हूँ!

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Thursday, August 19, 2010

!! प्रवक्ता.कॉम के पाठकों से पाठकों से विनम्र अपील !!

!! प्रवक्ता.कॉम के पाठकों से पाठकों से विनम्र अपील !!

आदरणीय सम्पादक जी,

आपके माध्यम से प्रवक्ता.कॉम के सभी पाठकों से विनम्रतापूर्वक अनुरोध/अपील करना चाहता हूँ कि-

1- इस मंच पर हम में से अनेक मित्र अपनी टिप्पणियों में कटु, अप्रिय, व्यक्तिगत आक्षेपकारी और चुभने वाली भाषा का उपयोग करके, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं।

2- केवल इतना ही नहीं, बल्कि हम में से कुछ ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सम्पादक की नीयत पर भी सन्देह किया है। लेकिन जैसा कि मैंने पूर्व में भी लिखा है, फिर से दौहरा रहा हूँ कि प्रवक्ता. कॉम पर, स्वयं सम्पादक के विपरीत भी टिप्पणियाँ प्रकाशित हो रही हैं, जबकि अन्य अनेक पोर्टल पर ऐसा कम ही होता है। जो सम्पादक की नीयत पर सन्देह करने वालों के लिये करार जवाब है।

3- सम्पादक जी ने बीच में हस्तक्षेप भी किया है, लेकिन अब ऐसा लगने लगा है कि हम में से कुछ मित्र चर्चा के इस प्रतिष्ठित मंच को खाप पंचायतों जैसा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। मैं उनके नाम लेकर मामले को बढाना/तूल नहीं देना चाहता, क्योंकि पहले से ही बहुत कुछ मामला बढाया जा चुका है। हर आलेख पर गैर-जरूरी टिप्पणियाँ करना शौभा नहीं देता है।

4- कितना अच्छा हो कि हम आदरणीय डॉ. प्रो. मधुसूदन जी, श्री आर सिंह जी, श्री श्रीराम जिवारी जी आदि की भांति सारगर्भित और शालीन टिप्पणियाँ करें, और व्यक्तिगत टिप्पणी करने से बचें, इससे कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। कम से कम हम लेखन से जुडे लोगों का उद्देश्य तो पूरा नहीं हो सकता है। हमें इस बात को समझना होगा कि कोई हमसे सहमत या असहमत हो सकता है, यह उसका अपना मौलिक अधिकार है।

5- समाज एवं व्यवस्था पर उठाये गये सवालों में सच्चाई प्रतीत नहीं हो या सवाल पूर्वाग्रह से उठाये गये प्रतीत हों तो भी हम संयमित भाषा में जवाब दे सकते हैं। मंच की मर्यादा एवं पत्रकारिता की गरिमा को बनाये रखने के लिये एकदम से लठ्ठमार भाषा का उपयोग करने से बचें तो ठीक रहेगा।

6- मैं माननीय सम्पादक जी के विश्वास पर इस टिप्पणी को उन सभी लेखों पर डाल रहा हूँ, जहाँ पर मेरी जानकारी के अनुसार असंयमित भाषा का उपयोग हो रहा है। आशा है, इसे प्रदर्शित किया जायेगा।

लेखक जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र प्रेसपालिका के सम्पादक, होम्योपैथ चिकित्सक, मानव व्यवहारशास्त्री, दाम्पत्य विवादों के सलाहकार, विविन्न विषयों के लेखक, टिप्पणीकार, कवि, शायर, चिन्तक, शोधार्थी, तनाव मुक्त जीवन, लोगों से काम लेने की कला, सकारात्मक जीवन पद्धति आदि विषयों के व्याख्याता तथा समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध राष्ट्रीय स्तर पर संचालित संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। जिसमें तक 4428 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे)।
Email : dr.purushottammeena@yahoo.in

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