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Thursday, September 26, 2013

भाजपा को सत्ता मिली तो दशकों तक कीमत चुकानी होगी!

भारतीय जनता पार्टी का हर एक कार्यकर्ता और राजनेता बार-बार इस बात को नकारता आया है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भाजपा के राजनैतिक मामलों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप रहता है। लेकिन पहले नितिन गडकरी की और अब नरेन्द्र मोदी की ताजपोशी को लेकर जिस प्रकार संघ ने खुलकर भाजपा को निर्देश दिये हैं, उससे ये बात निर्विवाद रूप से साफ हो गयी है कि संघ एक ऐसा संगठन है, जिसके पास किसी भी प्रकार की लोकतान्त्रिक ताकत नहीं है, फिर भी वह भाजपा को संचालित करता रहा है। यह प्रत्येक तटस्थ बुद्धिजीवी
जानता है कि संघ राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व के नाम पर इस देश में साम्प्रदायिक जहर फैलाने वाला फासीवादी संगठन है। जिसका काम इस देश में मनुवादी व्यवस्था को राजनैतिक रूप से फिर से पूरी तरह स्थापित करना है और मनुवादी व्यवस्था का अर्थ है-इस देश की स्त्रियों सहित 90 फीसदी आबादी को हमेशा गुलाम बनाये रखने वाली व्यवस्था को समाज में मान्यता प्रदान करना।

मनुवाद फिर से आर्यों के अधिपत्य को स्थापित करना चाहता है, जबकि आज बहुत सारे तटस्थ बुद्धिजीवी ब्राह्मण तक जहरीले मनुवादी नाग की खुलकर खिलाफत कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें इस बात का अहसास हो गया है कि इतिहास में मनुवाद ने इस देश का भला करने के बजाय नुकसान अधिक किया है। मनुवाद के कारण देश पर विदेशी ताकतों का कब्जा हुआ, मनुवाद के ही कारण भारत जातियों में विभाजित है, जो इस देश की एकता को सबसे बड़ा खतरा है। इसके उपरान्त भी आज संघ ने हिन्दुत्व और कथित राष्ट्रवाद के नाम पर इतनी सारी दुकाने इस देश में खोल रखी हैं, जो इस देश के भोले-भाले और अशिक्षित या कम शिक्षित या परम्परावादी लोगों को बेवकूफ बनाकर, आकर्षक कलेवरों में मुनवाद का जहर बेच रही हैं। जिसके चलते गाँवों में भी मनुवादी जहर तेजी से फैल रहा है, जो इस देश के सुनहरे भविष्य के लिये सर्वाधिक घातक है। इस जहर के चलते यह देश कभी भी अपनी रीढ की हड्डी सीधी करके खड़ा नहीं हो सकेगा।


एक दूसरी बात और आज संघ यदि इस स्थिति में पहुँचा गया है और वह गुजरात के कत्लेआम के जरिये भाजपा के मार्फत नयी दिल्ली को कब्जाने के सपने देख रहा है तो इसके लिये उसने बहुत सारे ऐसे प्रयास किये हैं या कहो राजनैतिक षड़यन्त्र किये हैं, जो और किसी के लिये सम्भव नहीं है। इनमें सबसे बड़ा कार्य या कहो षड़यन्त्र ये रहा कि संघ ने अपने स्वयं सेवकों को सभी राजनैतिक दलों में प्रवेश करा रखा है और उन्हें उन दलों को धराशाही करने का जिम्मा सुपुर्द किया हुआ है। जिससे कि भाजपा का रास्ता साफ हो सके।

विशेष रूप से संघ के कई सौ कार्यकर्ता आज कांग्रेस में शीर्ष पदों पर विराजमान हैं, जो कांग्रेस का भट्टा बिठाने में लगे हुए हैं। इसे संघ की राजनैतिक षड़यन्त्रों को अंजाम देने की महारत कहा जा सकता है। जिसमें फिलहाल संघ सफल होता दिख रहा है, लेकिन इस षड़यन्त्रकारी राजनीति के जरिये संघ और अन्ततः भारतीय जनता पार्टी को कितना राजनैतिक लाभ होने वाला है, ये बात अभी भी संदिग्ध है, क्योंकि लोगों को डर है कि संघ नरेन्द्र मोदी के मार्फत कहीं इस देश को गुजरात की तरह कत्लगाह नहीं बनवा दे। इसलिये आज के माहौल को देखकर तो नहीं लगता कि संघ अपनी कुटिल कूटनीति में सफल होगा।

फिर भी इस देश की सभी स्त्रियों, देश के सभी अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों तथा ईसाइयों के साथ-साथ आरक्षित वर्गों-अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति एवं ओबीसी के लोगों को सतर्क होने की जरूरत है, क्योंकि संघ की तलवार का पहला आघात इन्हीं सब की गर्दन काटने में होने वाला है।

संघ कतई भी नहीं चाहता कि इस देश की स्त्री मुनवादी धार्मिक कायदों को नकारते हुए पुरुषवादी एकछत्र अहंकारी व्यवस्था को चुनौती देकर, पुरुष सत्ता में हिस्सेदारी करे। यही कारण है कि लोकसभा में प्रतिपक्ष की दबंग नेत्री होते हुए भी और हर प्रकार से योग्य एवं राजनैतिक रूप से कुशल और सक्षम होते हुए भी सुषमा स्वराज को किनारे करके कट्टर मुनवादी नरेन्द्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमन्त्री पद का दावेदार घोषित किया गया है।

नरेन्द्र मोदी गुजरात में तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं, लेकिन गुजरात विधान सभा में एक भी अल्पसंख्यक को भारतीय जनता पार्टी का टिकिट नहीं दिया गया। केन्द्रीय स्तर पर भी शाहनवाज और नकवी के दो मुखौटों के अलावा भारतीय जनता पार्टी के पास कोई अल्पसंख्यक राजनेता नहीं है।

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जन जाति के राजनेताओं को भाजपा में किनारे लगाने के लिये संघ के इशारे पर लगातार षड़यन्त्र चलते रहते हैं, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है-बंगारू लक्ष्मण।

यही नहीं संघ सभी पार्टियों में प्रविष्ट अपने स्वयं सेवकों के जरिये और संघ समर्थित कारपोरेट घरानो द्वारा संचालित मीडिया के मार्फत अजा, अजजा एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को समाप्त करने और स्त्रियों को आरक्षण नहीं दिये जाने के लिये लगातार काम करता रहता है। जिसमें उसे आश्चर्यजनक रूप से न्यायपालिका का भी सहयोग मिलता रहा है! 

इस सबके बाद भी यदि भारत की हजारों वर्षों से शोषित स्त्रियाँ, अल्पसंख्यक और आरक्षित वर्ग के लोग संघ के इशारों पर नाचने वाली भारतीय जनता पार्टी के मोहपाश में फंसकर उसका राजनैतिक समर्थन करने की भूल करते हैं तो उन्हें आने वाली सदियों तक इसका मूल्य चुकाना होगा।

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