परिवार की जान हैं आत्मीय सम्बन्ध!
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
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: समस्या :
मुझे यह बात अन्दर ही अन्दर घुन की तरह खाये जा रही है कि मेरे पडोसियों में से सबके पास कार है, जबकि मेरे पास आज के जमाने की अच्छी सी मोटरसाईकल भी नहीं है।
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: समाधान :
1- कार, फ्रिज, एसी, आदि वस्तुएँ आपको सुविधा एवं सहूलियतें तो प्रदान कर सकती हैं, लेकिन सुख नहीं।
2- सुख पाने के लिये हमें आपस में ही एक-दूसरे का पूरक बनना सीखना होगा। उसके बाद परिवार में कार हो या नहीं कोई फर्क नहीं पडेगा।
3- आपस में आत्मीयता होने पर कोई किसी से न तो झगडा करेगा और न हीं ईर्ष्या।
4- अतः जरूरत इस बात की है कि आपस में खुलकर बात करें, एक-दूसरे की भावनाओं और जरूरतों का खयाल रखें।
5- जब आपस में सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध होंगे। परमात्मा का आशीर्वाद भी आपके साथ होगा।
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मित्रो, हम में से अनेक लोग छोटी-छोटी बातों को लेकर दुःखी और परेशान रहते हैं, जबकि गहराई में जाकर देखने से ज्ञात होता है कि हकीकत में जिन बातों के कारण या जिन परिस्थितियों के कारण हम दुःखी हो रहे हैं, वे सच में दुःख का कारण हैं हीं नहीं। दुःख का कारण तो उन सबके प्रति हमारा सोचने का नजरिया होता है। यदि हम खुले मन से और सकारात्मक तरीके से सोचने व समझने लगें तो हम इस प्रकार की स्थिति से बच सकते हैं।
एक दिन मेरे पास मनु शर्मा जी (बदला हुआ नाम) आये और कहने लगे सर मुझे यह बात अन्दर ही अन्दर घुन की तरह खाये जा रही है कि मेरे पडोसियों में से सबके पास कार है, जबकि मेरे पास आज के जमाने की अच्छी सी मोटरसाईकल भी नहीं है। बच्चे भी कार की जिद कर रहे हैं। इस कारण से मैं हमेशा तनाव में रहता हूँ। हमेशा सिरदर्द रहने लगा है। मैं डॉक्टर को दिखाने गया, उन्होंने बताया कि मुझे हाईपरटेंसन हो गया है। आप ही बतायें कि मैं इस समस्या से किस प्रकार से निजात पा सकता हूँ।
जब मनु शर्मा जी यह सब कह रहे तो मेरे पास जगदीश सैनी (बदला हुआ नाम) पहले से ही बैठे हुए थे। वे अपनी एक समस्या लेकर आये थे। मैंने कहा कि शर्माजी मैंने आपकी बात सुन ली, अब आपको इन सैनी जी की समस्या भी सुना देता हूँ। इन्होंने भी तुम्हारी भांति अपने मित्रों और परिचितों की देखादेख कार खरीद ली। स्वयं के पास और इनके दोनों बेटों के पास पहले से ही तीन मोटरसाईकलें भी थी। अब इनकी समस्या यह है कि इनके बेटे इस बात के लिये झगड रहे हैं कि कार पर उन दोनों का समान हक है। इसलिये वे दोनों ही कार को चलाना चाहते हैं, सैनी जी को तो वे पूछना ही नहीं चाहते कि कार पर उनका भी हक है या नहीं! जीवन भर पुराने जमाने के स्कूटर पर चलकर नौकरी करते रहने वाले सैनी जी ने सोचा कि अब पौढावस्था में कार लेना ठीक रहेगा, लेकिन सैनी जी की पत्नी सहित परिवार में ऐसा कोई भी नहीं है जो इस बात को समझना चाहता हो कि सैनी जी को भी कार चलाने का हक है, जबकि कार सैनी जी ने अपनी कमाई से खरीदी है, कार का पेट्रोल भी सैनी जी ही भरवाते हैं। इस कारण से सैनी जी तनावग्रस्त हो गये हैं और सोचते हैं कि वे कार को बेच डालें! यह बताकर मैंने पूछा कि शर्मा जी आपके कितने बेटे हैं?
शर्मा जी बोले साहब मेरे तो तीन-तीन बेटे हैं और एक बेटी भी है जो तीनों बेटों से जबर है। मुझे तो लगता है कि यदि मैं कार ले आया तो मेरी बेटी कार को किसी को चलाने ही नहीं देगी। पहले से ही बात-बात पर कहती रहती है, मैं तो कुछ समय बाद ये घर छोड देने वाली हूँ। अतः जब तक इस घर में हूँ हर चीज पर मेरा हक सबसे अधिक है। मनु शर्मा जी आगे बोले लगता है कि मैं आपके पास सही समय पर आया हँू। जगदीश सैनी जी की बात सुनकर लगता है कि मैं एक बडी मुसीबत से बच गया हूँ। सर आपने मेरी समस्या का समाधान कर दिया, इसके लिये मैं आपका हमेशा-हमेशा आभारी हूँ। धन्यवाद सर धन्यवाद!
मैं यह बताना चाहता हूँ, कि मैंने तो मनु शर्माजी की समस्या का कोई उपचार या समाधान नहीं किया, बस शर्माजी को मेरे साथ बातचीत करके इस बात का अहसास हो गया कि कार लाकर वह अपने आस पास के लोगों से बराबरी तो कर लेंगे, लेकिन अपने घर की शान्ति भंग होने का खतरा भी उन्हें नजर आने लग गया और वर्तमान में उनका जो तनाव था, उससे बडा तनाव उन्हें कार लाने में नजर आने लगा। अतः उनकी समस्या हल हो गयी। जगदीश सैनीजी की समस्या का क्या हुआ? इस बारे में फिर कभी चर्चा करेंगे। फिलहाल हमें इस बात को भी समझना होगा कि यदि हालात जगदीश सैनी और मनु शर्मा जैसे हों तो या इस प्रकार के हालात उत्पन्न होने की सम्भावना हो तो क्या कार नहीं खरीदी जानी चाहिये? नहीं मेरा ऐसा मानना नहीं हैं। न हीं मैंने मनु शर्मा को ऐसी सलाह दी है। उसने जगदीश सैनी की बात सुनकर स्वयं ही कार नहीं खरीदने का निर्णय लिया है।
मैं तो यह कहना चाहता हूँ कि हम सभी जानते हैं कि हर काम को करने से पूर्व हर व्यक्ति को थोडी तैयारी करनी होती है। परन्तु दुःख का विषय है कि हम में से बहुत कम लोग हैं जो अपने परिवार को बनाने अर्थात् आत्मीय सम्बन्धों की बुनियाद रखने के लिये किसी प्रकार की तैयारी किये बिना ही अपने परिवार को परिवार मानते रहते हैं। जबकि परिवार की पहली जरूरत है आत्मीयता।
अतः सभी मित्रों से मेरा साफ शब्दों में कहना है कि कार, फ्रिज, एसी, आदि वस्तुएँ आपको सुविधा एवं सहूलियतें तो प्रदान कर सकती हैं, लेकिन सुख नहीं। सुख पाने के लिये हमें आपस में ही एक-दूसरे का पूरक बनना सीखना होगा। उसके बाद परिवार में कार हो या नहीं कोई फर्क नहीं पडेगा। आपस में आत्मीयता होने पर कोई किसी से न तो झगडा करेगा और न हीं ईर्ष्या। अतः जरूरत इस बात की है कि आपस में खुलकर बात करें, एक-दूसरे की भावनाओं और जरूरतों का खयाल रखें। जब आपस में सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध होंगे। परमात्मा का आशीर्वाद भी आपके साथ होगा। इसके बाद कुछ भी शेष नहीं रहता है। शुभकामनाओं सहित!
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-लेखक होम्योपैथ चिकित्सक, मानव व्यवहारशास्त्री, दाम्पत्य विवादों के सलाहकार, विविध विषयों के लेखक, कवि, शायर, चिन्तक, शोधार्थी, तनाव मुक्त जीवन, लोगों से काम लेने की कला, सकारात्मक जीवन पद्धति आदि विषय के व्याख्याता तथा समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। जिसमें 10 फरवरी, 2010 तक, 4070 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे)
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