मेरे शुभचिंतक और समालोचक जिनके विश्वास एवं संबल पर मैं यहाँ लिख पा रहा हूँ!

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Saturday, February 20, 2010

कम्पनियाँ अपने खराब उत्पाद बदलें

अब समय आ गया है, जबकि अदालतों के पूर्ववर्ती निर्णयों की जानबूझकर अनदेखी करने वाली कम्पनियों तथा संवा प्रदाताओं पर बडे जुर्माने लगाये जावें और खराब उत्पाद को तत्काल बदलने तथा उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा हेतु अपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में भी तत्काल सुधार किये जावें।
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

भारत सरकार और निजी कम्पनियों द्वारा अपने विज्ञापनों में वर्तमानयुग को उपभोक्ता का युग कह कर उपभोक्ता को खुलेआम मूर्ख बनाया जा रहा है। यदि इस बात पर विश्वास नहीं हो तो उपभोक्ता अदालतों में उपभोक्ता विवादों के अम्बार को जाकर देखा जा सकता है। जो इस बात का प्रमाण है कि सरकारी ओर निजी क्षेत्र दोनों ही उपभोक्ता अधिकारों का हनन एवं अतिक्रमण करने में पीछे नहीं हैं।

सबसे दुःख और आश्चर्य का विषय तो यह है कि जिस प्रकार के मामलों में एक बार अदालत या उपभोक्ता आयोग का निर्णय हो चुका है, उसी प्रकार के, बल्कि समान प्रकृति के मामलों में दुबारा से उपभोक्ता को तंग करने का दुश्चक्र क्यों चल रहा है?

कुछ समय पूर्व की बात है, जिस दिन एक बडी मोबाइल कम्पनी ने उपभोक्ता आयोग के उस निर्णय की पालना की थी, जिसमें निर्णय दिया गया था कि वारण्टी अवधि के दौरान मोबाइल को बार-बार सर्विस सेण्टर पर रिपेयर हेतु डाला गया और फिर भी सही तरह से काम नहीं कर रहा, जिसका अर्थ कि मोबाइल में प्रारम्भ से ही निर्माण की कमी है (मैन्युफैक्चरिंग फाल्ट है)। अतः नया मोबाइल बदलकर देना होगा, बेशक वारण्टी अवधि समाप्त क्यों न हो गयी हो। ठीक उसी दिन उसी कम्पनी ने ठीक इसी प्रकार के अन्य मामले में, जिसमें एक वर्ष की वारण्टी अवधि के दौरान दस बार मोबाइल को रिपेयर किया गया और इस बीच वारण्टी अवधि गुजर जाने के बाद इस मोबाइल को बदलना तो दूर, सर्विस सेण्टर पर रिपेयर करने तक से साफ इनकार कर दिया गया।

इस प्रकार के मामले में उपभोक्ता के पास उपभोक्ता अदालत के समक्ष जाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं बचता है। ऐसे मामले में कई महिनों की सुनवाई के बाद फिर से वही पूर्ववर्ती निर्णय उपभोक्ता अदालत द्वारा सुनाया जाता है कि कम्पनी नया मोबाइल बदल कर दे। छोटा-मोटा जर्माना भी लगा दिया जाता है, जिससे इन महाकाय कम्पनियों की सेयत पर कोई असर नहीं होता है। अब समय आ गया है, जबकि इस प्रकार के पूर्ववर्ती निर्णयों की जानबूझकर अनदेखी करने वाली कम्पनियों एवं सेवा प्रदाताओं पर बडे जुर्माने लगाये जावें और उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा हेतु अपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में भी सुधार किये जावें।

इस दिशा में पिछले दिनों राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (एनसीडीआरसी) का एक उल्लेखनीय निर्णय सामने आया है। जिसमें कम्पनियों को सलाह दी है कि वे खराब सामान को बदलने की वही प्रक्रिया अपनाएं जो विदेशों में अपनाई जाती है। आयोग ने कहा कि विदेशों में उपभोक्ता की एक शिकायत पर सामान बिना आनाकानी के बदल दिया जाता है। भारत में अनेक प्रतिष्ठित कम्पनियाँ वारण्टी अवधि में माल की शिकायत मिलने पर तत्काल बदल भी देती हैं। लेकिन अधिकतर कम्पनियाँ ऐसा नहीं करती हैं। यहाँ देखने वाली बात यह है कि जो कम्पनियाँ और सेवा प्रदान अदालतों के निर्णयों की सरेआम अनदेखी और अवज्ञा करने से नहीं चूकते, उन पर राष्ट्रीय आयोग की सलाह का क्या कोई असर हो सकता है?

यद्यपि इस सम्बन्ध में मुझे भी एक कम्पनी 'सौम्या इलेक्ट्रोनिक्स इण्डिया' का सकारात्मक अनुभव याद आ रहा है, जिसे मैं पाठकों के साथ बांटना चाहता हूँ। कुछ वर्ष पूर्व मैंने उक्त कम्पनी से एक सीवीटी खरीदा था तो उसके साथ दियें गये वारण्टी कार्ड पर लिखा था कि हमारे उत्पाद में कोई भी खराबी नजर आये तो दिये गये फोन पर सूचना दें, 24 घण्टे में नया सीवीटी बदल दिया जायेगा। मुझे इस बात पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब तीन-चार महिने बाद सीवीटी में कुछ दिक्कत आई तो हमारे यहाँ से फोन किया गया और यह जानकर मैं आश्चर्यचकित रह गया कि केवल 4-5 घण्टे बाद कम्पनी का प्रतिनिधि एक नया सीवीटी बदल गया और पुराने को वापस ले गया। उसने यह तक देखने या पूछने की जरूरत नहीं समझी कि सीवीटी में क्या समस्या या क्या खराबी है!

यह तो कम्पनी की अच्छाई की बात है, जिसे अपने उपभोक्ताओं की समस्या अपनी समस्या नजर आती है, लेकिन अधिकांश कम्पनी एवं सेवा प्रदाता उपभोक्ता की तनिक भी परवाह नहीं करते हैं। अतः इनसे निपटने हेतु भारतीयी संसद द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में निम्न संशोधन पारित किये जाने की तत्काल आवश्यक हैं :-

1. वारण्टी अवधि के दौरान किसी उत्पाद में, किसी भी प्रकार की खामी या खराबी सामने पाये जाने पर, उत्पादक को उसे तत्काल घर बैठे जाकर बदलना होगा।

2. उपभोक्ता अदालतों के पूर्ववर्ती निर्णयों की अनदेखी करने वाली कम्पनियों या सेवा प्रदाताओं पर पूर्ववर्ती मामले में कोर्ट/आयोग द्वारा अधिरोपित जुर्माने से 20 गुना जुर्माना लगाया जाने का स्पष्ट प्रावधान किया जाये।

उपरोक्त एवं अन्य जरूरी संशोधन किये जाने से देश के उपभोक्ताओं को बहुत बडी राहत मिलेगी और इससे निम्न बडे तात्कालिक लाभ होंगेः-

1. सेवा प्रदाता कम्पनियाँ और उपभोक्ता सेवाओं से जुडे राज्य एवं केन्द्र सरकार के कर्मचारी सेवा प्रदान करते समय अधिक सकारात्मक एवं संवेदनशील बनेंगे। जिससे उनके द्वारा उपभोक्ताओं के साथ अच्छा एवं सही व्यवहार किये जाने की आशा की जा सकेगी।

2. उपभोक्ता अदालतों में दिनोंदिन बढते मुकदमों के अम्बार में कमी आयेगी।

3. निजी कम्पनियाँ और सभी सरकारी या अर्द्ध सरकारी उपक्रम उपभोक्ताओं को वाजिब सेवा देने में कोताही नहीं बरतेंगे।

4. कम्पनियाँ अपने उत्पादों की गुणवत्ता में प्रारम्भ से ही सुधार करेंगी, जिससे कि सामान बदलना ही नहीं पडे।

5. कम्पनियों को सेवा केन्द्रों पर अब की तुलना बहुत कम खर्चा करना पडेगा।

पाठकों से आग्रह है कि कृपया उपरोक्त आलेख पर अपने विचारों और टिप्पणियों से अवगत करावें।

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