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Sunday, July 11, 2010

बास की स्थापना क्यों तथा सदस्यता कैसे और किसलिये?

भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
की स्थापना क्यों तथा सदस्यता कैसे और किसलिये?

आज जबकि कदम-कदम पर लोगों के मान-सम्मान को बेरहमी से कुचला जा रहा है। अधिकतर लोगों के कानूनी, संवैधानिक, प्राकृतिक एवं मानव अधिकारों का खुलेआम हनन एवं अतिक्रमण हो रहा है। हर व्यक्ति को मनमानी, गैर-बराबरी, भेदभाव एवं भ्रष्टाचार का सामना करना पड रहा है।

विकलांग, वृद्ध, निःशक्तजन, छोटे बधे, बीमारों एवं महिलाओं को संरक्षण देना तो दूर, उनके प्रति लोगों में संवेदनाएँ ही समाप्त होती जा रही है। अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर परिवार का पालन करने हेतु व्यवसाय करने वाले व्यवसाईयों को भी हफ्ता व कमीशन देना, मजबूरी हो चुका है।

गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) जीवन जीने वाले परिवारों के राशन की कालाबाजारी करने के अपराधी-अभाव व तंगहाली का जीवन जीने वाले लोगों को समाज के विरुद्ध अपराध करने को मजबूर कर रहे हैं।

रसोई-गैस सिलेण्डरों की सरेआम कालाबाजारी एवं उनका व्यावसायिक उपयोग करने वाले कुछ चालाक लोगों की मनमानी के कारण देशभर में समस्त रसोई गैस उपभोक्ता, महंगी रसोई गैस की मार झेलने को विवश हैं।
जनता की सेवा के लिये नियुक्त लोक सेवक (पब्लिक सर्वेण्ट) जनता के मालिक बन बैठे हैं और जनहित के लिये स्वीकृत बजट से अपने ऐश-ओ-आराम के साधन जुटा रहे हैं।

ऐसी अनेकों प्रकार की नाइंसाफी, मनमानी एवं गैर-कानूनी गतिविधियाँ केवल इसलिये ही नहीं चल रही हैं कि सरकार एवं प्रशासन में बैठे लोग निकम्मे, निष्क्रिय और भ्रष्ट हो चुके हैं, बल्कि ये सब इसलिये भी तेजी से फल-फूल रहे हैं, क्योंकि हम आजादी एवं स्वाभिमान के मायने भूल चुके हैं।

सच तो यह है कि हम इतने कायर, स्वार्थी और खुदगर्ज हो गये हैं कि जब तक हमारे सिर पर नहीं आ पडती, तब तक हम इनके बारे में सोचते ही नहीं!

इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि गैर-कानूनी कार्यों में लिप्त लोगों के राजनैतिक एवं आपराधिक गठजोड की ताकत के कारण आम व्यक्ति इनसे बुरी तरह से भयभीत हैं और इनका सामना करने की सोचते हुए भी डरने लगता हैं।

यह जानते हुए भी कि सर्प चूहों को अक्सर उनके बिलों में ही दबोचते हैं। फिर भी हम चूहों की तरह अपने घरों में, स्वयं को पूरी तरह सुरक्षित समझ कर दुबके हुए हैं।

अकेला व्यक्ति अपराधी तत्वों से टक्कर नहीं ले पाता है, कुछ अन्य लोग इस सोच के चलते, कि अभी तक अपना घर तो सुरक्षित हैं, जब सामना होगा तो देखा जायेगा, चुपचाप सहमे, डरे और दुबके हुए बैठे रहते हैं?

लेकिन क्या हम उस दिन के लिये पहले से सुरक्षा कवच बना सकते हैं, जिस दिन-

-हम या हमारा कोई अपना, बीमार हो और उसे केवल इसलिये नहीं बचाया जा सके, क्योंकि उसे दी जाने वाली दवायें उन अपराधी लोगों ने नकली बनायी हों, जिनका हम विरोध नहीं कर पा रहे हैं?

-हम कोई अपना, किसी भोज में खाना, खाने जाये और खा वस्तुओं में मिलावट के चलते, वह असमय ही तडप-तडप कर बेमौत...!

-हम कोई अपना, बस यात्रा में हो और बस मरम्मत करने वाले मिस्त्री द्वारा उस बस में नकली पुर्जे लगा दिये जाने के कारण, वह बस बीच रास्ते में दुर्घटना हो जाये और...?

-हम अपने वाहन में पेट्रोल या डीजल में घातक जहरीले कैमीकल द्रव्यों की मिलावट के कारण बीच रास्ते में वाहन के इंजन में आग लग जाये और...?

-जब हम या हमारा कोई आत्मीय किसी बीमारी या दुर्घटना के कारण किसी अस्पताल में भर्ती हो और भ्रष्ट डॉक्टर बिना रिश्वत लिये तत्काल उपचार या ऑपरेशन करने से मना करे दे या लापरवाही, अनियमितता या विलम्ब बरते और...?

-जब हम या कोई आत्मीय रेल यात्रा करे और रेल की दुर्घटना हो जाये, क्योंकि रेल मरम्मत कार्य करने के लिये जिम्मेदार लोग मरम्मत कार्य किये एवं संरक्षा सुनिश्चित किये बिना ही वेतन उठाते हों! और दुर्घटना में...!

मित्रों हम में से अधिकतर यह नहीं जानते हैं कि समाज के केवल 10 प्रतिशत लोग ही भ्रष्ट, बेईमान एवं शोषक प्रवृति के हैं और केवल 10 प्रतिशत लोग ही उनके समर्थक हैं! क्या यह आश्चर्यजनक और शर्मनाक नहीं कि मुठ्‌ठीभर 20 प्रतिशत लोग, समाज के 80 प्रतिशत विशाल जनसमूह को बेरोकटोक लूट रहे हैं? क्या इन 80 प्रतिशत पीडित लोगों के मुंह में जुबान नहीं है?

मित्रो, यह भी सच है कि अनेक लोकतान्त्रिक निकायों तथा प्रशासन पर भ्रष्ट, बेईमान व शोषक लोगों के लगातार काबिज होते जाने के कारण, आम व्यक्ति इनमें आस्था तथा विश्वास खोता जा रहा है और इन सबके विरुद्ध वितृष्णा, क्षोभ एवं गुस्से से भी उबल रहा है, किन्तु एकजुटता व जागरूकता के अभाव में वह कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं।

यदि इन सभी लोगों को अपने साथ होने वाले अपमान और नाइंसाफी का अहसास कचोटने लगे और यदि ये 80 प्रतिशत लोग तन-मन-धन से एकजुट हो जावें, तो उनकी ताकत के सामने, बडे से बडे भ्रष्ट, बेईमान व शोषक लोग भी आसानी से घुटने टेक सकते हैं। क्योंकि जनतन्त्र में आम जनता की एकजुट ताकत को नकारना असम्भव है!

यदि हम नाइंसाफी के विरुद्ध, पूरी ताकत के साथ और दिल से बोलना शुरू करें, अपनी बात कहने में हिचकें नहीं, तो अभी भी बहुत कुछ ऐसा शेष है, जिसे बचाया जा सकता है, लेकिन यदि हम अभी भी चुपचाप, डरे, सहमें व दुबके बैठे रहे तो वह दिन दूर नहीं जबकि-

-आपको अपने मुकमदे की शीघ्र सुनवायी या शीघ्र फैसला करवाने के लिये भी शुल्क देना पडेगा !

-अस्मत लुटने पर भी पुलिस वाले रिपोर्ट लिखने से साफ इनकार कर दें और कहें कि पहले रिशवत दो, तब ही मुकदमा दर्ज होगा?

-राशन की दुकान वाला गरीबों को मिलने वाले सारे के सारे राशन को ही काला बाजारियों के हवाले कर दे और गरीब लोग भूख से तडत-तडप कर मर जायें?

-किसी साधारण या बीपीएल परिवार के व्यक्ति के बीमार होने पर, बिना रिश्वत दिये सरकारी अस्पताल में भी इलाज करने से साफ इनकार कर दिया जावे?

-आवासीय विद्यालयों में पढने जाने वाली छाताओं की, उनके विद्यालय संरक्षक स्वयं ही अस्मत लूटने और बेचने लगें ?

-सीमा पर तैनात सेना अधिकारी या कोई सेना अध्यक्ष पडौसी दुश्मन देश से रिश्वत लेकर, देश की सीमाओं को उस देश की सेनाओं के हवाले कर दें?

ऐसी सभी प्रकार की बुराईयों एवं अपमानजनक घटनाओं से सामूहिक रूप से निपटने के लिये तथा केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी), केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), सीआईडी, भ्रष्टाचार अन्वेषण ब्यूरो (एसीबी), क्राइम ब्राँच (सीबी), पुलिस तथा सामान्य प्रशासन के सहयोग हेतु हमारे देश के संविधान के भाग-3, अनुच्छेद 19.01.ग के तहत शहीद-ए-आजम, अमर शहीद और भारत के सर्वकालिक भारत रत्न सरदार भगत सिंह की जयन्ती के अवसर पर 26/27.09.1993 की रात्री को "भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान" की स्थापना की गयी और 06.04.1994 को इसे भारत सरकार की विधि अधीन राष्ट्रीय संगठन के रूप में सम्पूर्ण भारत में कार्य करने के लिये इसे दिल्ली से पंजीबद्ध तथा इसके संविधान को अनुमोदित करवाया गया।

सदस्यता हेतु कौन पात्र एवं कौन अपात्र

सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों सहित भारत के सभी नागरिक, जिन्हें आत्मसम्मान के साथ जीने की चाह हो और जिन्हें इस संस्थान के सभी नियमों, उद्देश्यों, सिद्धान्तों तथा इसके नेतृत्व में पूर्ण आस्था एवं विश्वास हो, वे सदस्यता हेतु आवेदन कर सकते हैं, लेकिन निम्न श्रेणी के लोग सदस्यता हेतु आवेदन करने के लिये पात्र नहीं हैं :-

(1) जिन लोगों की आयु 18 वर्ष से कम हो।

(2) अशिक्षित लोग। यपि इस फार्म को समझ सकने वाले साक्षर लोग सदस्यता हेतु पात्र हैं। और

(3) शारीरिक रूप से स्वस्थ तथा सक्षम होते हुए, दूसरों पर निर्भर रहने वाले बेरोजगार (निठल्ले) लोगों को भूलकर भी यह फार्म नहीं भरना चाहिये। यद्यपि विद्यार्थी, गृहणी, पेंशनर एवं सामाजिक कार्यकर्ता निठल्ले लोगों की श्रेणी में नहीं माने गये हैं।
फीस कार्ड
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आजीवन सदस्यता का कुल खर्च 300 रुपये

आजीवन प्राथमिक सदस्यता शुल्क : 100 रु., सदस्यता-कार्ड का प्रक्रिया शुल्क, कार्ड प्रिटिंग, लेमीनेशन, लिटरेचर आदि आवेदक को भेजने का खर्चा : 75 रु. संस्थान के समर्थन में प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र प्रेसपालिका वार्षिक शुल्क : 125 रुपये।

सदस्यता कार्ड कैसे प्राप्त करना चाहते हैं?

उपरोक्त खर्चे में सदस्यता कार्ड साधारण डाक से भेजा जायेगा। साधारण डाक से कार्ड भेजने पर डाक अव्यवस्था के चलते कुछ सदस्यों के कार्ड रास्ते में गुम/चोरी हो जाते हैं। ऐसे में उन्हें डुप्लीकेट कार्ड बनवाने का खर्चा 100 रुपये अदा करना पडता। अतः यदि आप अपना सदस्यता कार्ड रजिस्टर्ड डाक/स्पीड पोस्ट/कोरियर से प्राप्त करना चाहें तो 50 रुपये अतिरिक्त या 50 रुपये मूल्य के 5-5 रुपये के 10 डाक टिकिट फार्म के साथ भेजें।

समान आकार के कागज पर फोटो कॉपी मान्य :
बास के सभी प्रकार के फार्म की समान आकार के कागज पर की गयी, साफ-सुथरी फोटो कापी मान्य/स्वीकार्य है।

आपका फार्म निरस्त भी हो सकता है!
फार्म को ठीक से नहीं भरने, कम शुल्क भेजने पर या किसी अन्य कमी के कारण फार्म निरस्त हो सकता है और ऐसे में उक्त शुल्क के अलावा पुनः फार्म भरना होगा और साथ में पुनः प्रक्रिया शुल्क एवं डाक खर्च के 100 रुपये प्रति फार्म साथ में भेजने होंगे।

सदस्यता के लाभ

नोट : केवल उन सदस्यों के लिये जो बास द्वारा निर्धारित नियम, नीति, आचरण, व्यवहार, सिद्धान्तों एवं दिशानिर्देशों पर खरे उतरेंगें :-

(1) सत्यनिष्ठ, व लोगों का भला करने वाला जीवन जीने का असीम सुख।

(2) संवैधानिक, कानूनी, राष्ट्रीय एवं सामाजिक कर्त्तव्यों का निर्वाह करने के अधिकाधिक अवसर उपलब्ध होंगे।

(3) भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण, कालाबाजारी, मिलावट आदि गैर-कानूनी कृत्यों की रोकथाम, सुधार एवं उन्मूलन के लिये कार्य करने/करवाने और विभिन्न मंचों पर आवाज उठाने के अधिकाधिक अवसरों की प्राप्ति।

(4) पुलिस/प्रशासनिक अधिकारियों, जन प्रतिनिधियों, मन्त्रियों आदि से मिलने और बास का प्रतिनिधित्व करने के अधिकाधिक अवसरों की प्राप्ति।

(5) भ्रष्टाचार तथा नाइंसाफी के दलदल में अन्दर तक धंस चुकी राज्य, प्रशासनिक एवं सामाजिक कुव्यवस्था से लडते हेतु-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) की सदस्यता ग्रहण करने मात्र से ही समाज, सरकार एवं प्रशासन के मध्य सांकेतिक रूप से यह सन्देश जाता है कि आप इंसाफ के पक्षधर हैं। अपने आप में यह कोई छोटी बात नहीं है।

(6) बास के सदस्य के रूप में सार्वजनिक रूप से स्वच्छ एवं निष्पक्ष जीवन जीने तथा इंसाफ के लिये कार्य करने के अवर्णनीय आत्मिक सन्तोष और स्वाभिमान की अनुभूति और अपने प्रयासों में सफलता मिलने पर, स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करने का बहुमूल्य अहसास।

(7) भ्रष्टाचार एवं नाइंसाफी के विरुद्ध बास के उद्देश्यों, सिद्धान्तों एवं नेतृत्व के निर्देशों के अनुसार सार्वजनिक रूप से लगातार कार्य करने वाले "बास" के समर्पित सदस्यों की सलाह, राय, बात को समाज में तुलनात्मक रूप से ज्यादा विश्वसनीय माने जाने की अधिकाधिक सम्भावना होती है।

(8) "बास" के उद्देश्यों एवं सिद्धान्तों को अपने आचरण से प्रमाणित करने वाले सदस्यों के विचारों को समाज, प्रशासन, सरकार एवं मीडिया द्वारा विश्वसनीय मानकर, अधिक महत्व दिये जाने की सम्भावना।

(9) समस्याओं के समाधान व निराकरण में "बास" के अनुभवी उच्च नेतृत्व के सकारात्मक एवं समाधानकारी मार्गदर्शन की प्राप्ति।

(10) साहस के साथ, निर्भीकता पूर्वक अपने अन्तर्मन दबी हुई बातों कहने हेतु अधिकाधिक अवसरों की प्राप्ति।

(11) अपने अधिकारों को जानने, समझने, उपभोग करने और इनके संरक्षण के लिये बास के सहयोग एवं मार्गदर्शन की प्राप्ति।

(12) उत्कृष्ट कार्य करने पर "बास" की ओर से प्रमाण-पत्र, पुरस्कार, सम्मान, प्रशंसा-पत्र आदि की प्राप्ति के अवसर।

(13) "बास" से सम्बद्ध पुस्तकों, समाचार-पत्र, पत्रिकाओं, स्मारिकाओं आदि में रचनात्मक लेख, विचार आदि के प्रकाशन की सुविधा।

(14) अव्यवस्था के शिकंज में फंस चुकी राज्य एवं प्रशासनिक मशीनरी में बदलाव हेतु अपने विचार एवं सुझाव प्रस्तुत करने हेतु अवसरों की प्राप्ति।

(15) बास का नेतृत्व करने के अवसर, जिससे सरकारी नीतियों के सही क्रियान्वयन में योगदान करने के अधिकाधिक अवसरों की प्राप्ति।

(16) विकास हेतु सरकार से नीतियाँ, योजनाएँ, बनवाने आदि में बास के पदाधिकारी के रूप में योगदान करने के अधिकाधिक अवसरों की प्राप्ति।

(17) जन कल्याण एवं समाज के उत्थान के लिये लागू सरकारी नीतियों, योजनाओं आदि पर सजग निगरानी रखने तथा इनका क्रियान्वयन सुनिश्चित कराने हेतु बास के अधीन संचालित कमेटियों में, योग्य सदस्यों को उनकी पसन्द की कमेटी में नियुक्ति के अवसर।

(18) सदस्यता ग्रहण करने के बाद, बास के उद्देश्यों, सिद्धान्तों, नीतियों और राष्ट्रीय नेतृत्व के मार्गदर्शन में पूरी तरह से समर्पित होकर हृदय से जुडकर काम करने वाले सदस्यों के अन्तरमन में स्वतः ही निम्न भाव जागृत होने लगते हैं :-

1) क्यों न स्वच्छ एवं निष्पक्ष जीवन जिया जाये?

2) क्यों हम न अन्याय सहें और न अन्याय करें!

3) सकारात्मक एवं सृजनात्मक जीवन जिया जाये?

4) क्यों न जरूरतमन्द लोगों का मार्गदर्शन किया जाये?

5) क्यों न बीमार, अपाहिज, निःशक्त, विकलांग, छोटे बच्चों, वृद्धजनों, असहाय-स्त्रियों, शोषित वर्गों, मूक जीव-जन्तुओं, प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण के संरक्षण हेतु अधिकाधिक काम किये जायें?

उपरोक्तानुसार समर्पित होकर काम करने वाले सदस्यों को तनाव-मुक्त होकर स्वस्थ व शान्तिपूर्वक जीवन जीने का जो सुख प्राप्त होता है, वह संसार का सबसे दुर्लभ सुख है।

बास के राष्ट्रीय अध्यक्ष का आह्वान

हमारा मकसद साफ!
सभी के साथ इंसाफ!!

एक साथ आना शुरुआत है,
एक साथ रहना प्रगति है और
एक साथ काम करना सफलता है।

शोषण की चक्की में पिसते वही।
जिनकी आवाज में ताकत नहीं॥

बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे?
लिखोगे नहीं तो कोई पढेगा कैसे?
चलोगे नहीं तो पहुंचोगे कैसे?
लडोगे नहीं तो जीतोगे कैसे?

शुल्क का मनी ऑर्डर, बैंक ड्रॉफ्ट, फार्म आदि भेजने हेतु
पत्राचार का पता
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
7-तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006
(राजस्थान) फोन नं. 0141-2222225
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National President’s Office
Bhrashtachar & Atyachar Anveshan Sansthan (BAAS)
7-Tanwar Colony, Khatipura Road
Jaipur-302006 (Rajasthan) Ph. 0141-2222225
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