मेरे शुभचिंतक और समालोचक जिनके विश्वास एवं संबल पर मैं यहाँ लिख पा रहा हूँ!

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Saturday, August 7, 2010

औरत होना, घुटकर मरना.....और नहीं, अब और नहीं!


कृपया निम्न आलेख पर मेरी टिप्पणी पढ़ें.

औरत होना, घुटकर मरना.....और नहीं, अब और नहीं!

मनु शुक्ला

पुरुष और स्त्रियों की मानसिकता में बहुत अंतर होता है ! पुरुष अपनी भड़ास को औरतो पर चिल्ला कर निकाल लेता है! पर एक लड़की अपनी सारी भड़ास अपने अन्तःकरण में समा लेती है, और अग्नि की तरह जलती रहती है! हो सकता है सारे लोग इस विचार से इतफ़ाक रखते हो। पर यदि यह मत गलत होता तो आज के परिवेश में महिला आत्महत्या दर निरन्तर नहीं बढ़ता। आंकड़ों का सत्य कहता है महिला आत्महत्या दर पुरषों की अपेक्षा 10 गुना अधिक है।

यदि आंकड़ों पर दृष्टि डालें तो देखेंगे की बहार काम करने वाली लड़कियां जो आत्मनिर्भर हैं तथा समाज में उनका अपना मुकाम है और वो अपने जीवन के सारे फैसले स्वयं ले सकती हैं! इसके बावजूद भी उन महिलाओं की आत्महत्या दर अधिक है चाहे वो आम लड़की हो या सेलेब्रिटी जब उन्हें प्यार में धोखा मिलता है तो वो धोखे का आघात बर्दाश्त नही कर पाती है ! तब वे अपने जीवन को समाप्त करना ही एक आसान रास्ता मानती है। अभी हाल ही में प्रसिद्ध माडॅल विवेका बाबाजी ने आत्महत्या कर ली। कारण अपने प्रेमी का धोखा और तिरस्कार बर्दाश्त नही कर सकी तो उन्होंने आत्महत्या कर ली. वहीं मिस इण्डिया रही नफीसा जोसेफ ने भी अपने प्रेमी से धोखा खाकर कुछ समय पूर्व आत्महत्या कर ली थी। ऐसे ही यदि आंकड़ों पे दृष्टि डालें तो देखेंगे की रोजाना कोई न कोई लड़की प्रेम में आघात पाकर अपनी जीवन लीला समाप्त करती जा रही है!

मनोविज्ञानिको का मत है ‘आज के परिवेश में जहाँ लोगों को अपने जीवन निर्वहन के लिए अधिक परिश्रम करना पड़ रहा है घर और बाहर अत्यंत मानसिक तनाव झेलना पड़ रहा है वही प्यार में धोखा खाना उनके लिए असहनीय होता है और उनके लिए जीवन समाप्त करना एक आसान उपाय लोगों को दिखता है ’ चाहे कोई औरत पूरी तरह स्वतंत्र या आत्मनिर्भर क्यों न हो प्यार का धोखा उसके लिए असहनीय होता है क्योकि स्त्रियों में संवेदनशीलता एवं भावुकता अधिक होती है।

पुरुष मानसिकता स्त्रियों की मानसिकता से बिलकुल विपरीत होती है! पुरुष का आकर्षण स्त्रियों के शारीरिक सौन्दर्य पर केन्द्रति होता है! उसका प्रेम शरीर से शुरू होकर उसी शरीर पे समाप्त हो जाता है और वो आसानी से एक को छोड़ कर दूसरे से जुड़ जाता है! उसके लिए प्रेम प्यार की बातें आम होती है! परन्तु एक लड़की किसी भी पुरुष से आत्मा तथा मन से जुडती है और जब उसे आत्मिक आघात होता है, तो वो अघात उसके लिए असहनीय होता है और तब उसके सामने सबसे आसान विकल्प बचता है अपनी जीवन लीला को हमेशा हमेशा के लिए समाप्त कर दें !

स्त्री मानसिकता मतलब समय से पहले अपने आप को उम्र से बड़ा मान लेना! इसका बड़ा कारण ईश्वरी बेइंसाफी भी है! एक पुरुष 60 वर्ष की आयु में भी पिता बन सकता है पर एक स्त्री का 35 से 37 वर्ष की आयु के बाद उसका माँ बनना कठिन होता है! और आज जहाँ लोग अपना कैरियर बनाने के लिए 30 का आंकड़ा पार कर जाते हैं तो उस उम्र में प्यार में धोखा खाना उनके लिए असहनिय हो जाता ह। और उनका सारा आत्मविश्वास समाप्त हो जाता है! तब या तो अपनी पूरी उर्जा को इन्साफ की गुहार के लिए लगा देती हैं! तब उन पर दूसरा आघात उनके चरित्र पर होता है जो उनकी आत्मा पर असहनीय प्रहार होता है! क्या किसी ने सोचा है कभी भी महिला हो या लड़की उनमे संवीदनशीलता होती है! क्या वो ऐसे ही मरती जाएँगी? उन्हें भी जीने का हक्क है! इन नपुंसक व का-पुरुषों को किसने हक्क दिया है रोज रोज लड़कियों एवम महिलाओं को ऐसे ही मारते जा रहे हैं!

उन्हें किसने हक दिया है कि झूठे प्रेम जाल में फंसाओ और जब सच सामने आता है तो वो इंसान भाग खड़ा होता है और जब उसका सच समाज के लोगों और उसके परिजनो व प्रियजनो को बताया जाए तो वे नारी चरित्र पर प्रहार करते है जान से मारने की भी धमकी देते है ! तब लड़की के पास दो रास्ते होते हैं या तो अपने सम्मान के लिए लड़ाई लड़े और अपने चरित्र पर प्रहार करने वाले को सबके सामने लज्जित करे और अपने स्वाभिमान की रक्षा करे।

पर मै जानती हूँ की कोई भी लड़की किसी भी पुरुष का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती और वो जिस भी पुरुष से अपने इन्साफ की गुहार करेगी वो उसे इन्साफ नहीं दिला सकते क्यूंकि वो भी स्वयं पुरुष है तब लड़की मजबूर हो जाती है क्यूंकि उसका एक कदम उसके माता पिता के नाम पर सवालिया निशाँ लगा देता हैै। उसके लिए तीसरा रास्ता बचता है अपने आपको अनंत अँधेरे में झोंक दे जिसमे वो तिल तिल मरती है पर उसको मरता हुआ कोई नही देख पाता आज मेरा प्रश्न ईश्वर और समाज से है ऐसे नपुंसक पुरुष कब तक नारी जीवन और संवेदना से खेलते रहेंगे और नारी को कब तक आत्महत्या की काली गर्द में फेंकते रहेंगे?

कृपया उक्त आलेख पर मेरी टिप्पणी पढ़ें.

अब स्त्री को लेखन करना होगा और सामाजिक वर्जनाओं की चिन्ता किये बिना खुलकर लिखना होगा। जिससे स्त्री मन एवं स्त्री व्यथा के साथ-साथ उसके हृदय को समझ सकने की समझ पैदा हो सके।
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आदरणीय मनु शुक्ला जी,

आपका आलेख कडवी सच्चाई बयाँ करने में सफल रहा है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि अधिकतर पुरुष स्त्री के शरीर से ही प्यार करते हैं। स्त्री मन और हृदय के बारे में आपने जो लिखा है, वह आधिकारिक रूप ये सही ही होगा, क्योंकि स्त्री के मन और हृदय को आप कम से कम मुझ (पुरुष) से तो अधिक ही समझती हैं।

आपने प्रकृति को भी दोष दिया है। आपके अपने एक-एक वाक्य में नारीमन की पीडा और कराह की सफल अभिव्यक्ति की है। आपने इस समस्या का कोई सीधा या टेढा समाधान सुझाने या सुझाने का मार्ग दिखाने के बजाय, सीधे भगवान के समक्ष सवाल उठाया है और साथ ही साथ नारी मन को नहीं समझ सकने वाले और, या नारी के साथ लगातार धोखा करते रहने वाले पुरुषों की क्रूर, हृदयहीन, मक्कार, निष्ठुर या असंवेदनशील जैसे प्रासंकि शब्दों में आलाचना नहीं करके, उन्हें नपुंसक कहते हुए अपना सवाल उठाया है।

मुझे नहीं पता कि भगवान आपके सवाल पर क्या निर्णय लेंगे और आपके शब्दों में वर्णित नपुंसक पुरुषों की क्या प्रतिक्रिया होगी। लेकिन मुझसे इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किये बिना रहा नहीं गया, सो यहाँ पर कुछ लिखने का साहस कर रहा हँू। अग्रिम अनुरोध है कि पुरुष मन के चलते (जिसमें मेरा कोई दोष नहीं) यदि कोई बात आपको अप्रिय लगे तो कृपया उसे सकारात्मक रूप से प्रकट करें, जिससे कि उस पर समाधानकारी मन्थन किया जा सके।

यहाँ पर बहुत जरूरी नहीं होने के बावजूद भी मैं इस बात को लिखने से स्वयं को राक नहीं पा रहा हँू कि लम्बे अनुभव से सिद्ध होता आया है कि पुरुषों को गाली देने या कोसने के लिये औरतों के पास सर्वप्रिय, सबसे कडवा और सशक्त शब्द होता है-पुरुष को नपुंसक या नामर्द कहकर कोसना या सम्बोधित करना । मुझे नहीं पता इसके पीछे स्त्री की कौनसी मानसिकता काम करती है? स्त्री के अवचेतन मन में ऐसी कौनसी सुसुप्त गाँठ है, जो पुरुष को नामर्द कहने से ठीली होती है या अधिक मजबूत हो जाती है?

इसके बावजूद भी मनु जी मैं आपके दर्द, दुःख और गुस्से को जायज ठहराने वालों में शामिल प्रथम व्यक्ति (यहाँ पर मैं अपने आपको प्रथम पुरुष नहीं, बल्कि प्रथम व्यक्ति लिख रहा हँू) हँू और इसके पीछे मेरे पास अनुभवसिद्ध अनेक कारण हैं। दाम्पत्य मामलों के सलाहकार के रूप में मैंने जो कुछ अनुभव किया है, पाया है और दम्पत्तियों के विवादों को सुलझाया है, उससे आपकी बातों को समर्थन अवश्य मिलता हैं। अतः आपको अपनी बात आक्रोशित होकर या संयमित होकर या किसी भी तरीके से कहने का पूरा-पूरा अधिकार है। आपके अपने एक-एक वाक्य में नारीमन की सच्ची-पीडा की स्पष्ट एवं जरूरी अभिव्यक्ति दी है। जिसके लिये आपको साधुवाद।

मनु जी सवाल केवल यहीं पर समाप्त नहीं हो जाना चाहिये कि कितनी औरतें या कितने पुरुष एक दूसरे या व्यवस्था के कारण आत्महत्या करके मर रहे हैं या मार दिये जाते हैं या कितनी औरतें/पुरुष पीडित हैं। मेरे अनुसार सवाल समाधान की दिशा दिखाने वाला भी उठाया जाना चाहिये।

१. वे कौनसे ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से ऐसे हालात उत्पन्न हो गये कि प्रकृति द्वारा एक दूसरे के पूरक के रूप में पैदा किये गये स्त्री एवं पुरुष एक दूसरे के दुश्मन बन गये हैं?

२. क्या हमारे समाजीकारण के तरीके में कमी है या हमारी पुरुष प्रधान व्यवस्था ने स्त्री को केवल देह तक ही समझा और उसके मन को और गहरे में जाकर उसके हृदय को समझने में भूल या गलती की है?

३. क्या इसके लिये केवल पुरुष ही दोषी है या वह व्यवस्था; जिसमें पुरुष और स्त्री को भिन्न-भिन्न तरीके से बडा किया जाता रहा है, वह जिम्मेदार है?

४. काम (सेक्स) विषय पर पुरुषों द्वारा अपनी मनवांच्छित कल्पनाओं के सहारे लिखे गये भारतीय साहित्य की अनर्गल बातें जिम्मेदार हैं या प्रकृति की ओर से पुरुष एवं स्त्री में किये गये अनेक प्रकार के विभेद मात्र ही जिम्मेदार हैं?

उपरोक्त और ऐसे ही अनेक विषयों पर गम्भीरता पूर्वक, बिना किसी पूर्वाग्रह के केवल चर्चा ही नहीं, बल्कि सतत चिन्तन की जरूरत है और मेरा ऐसा भी मानना है कि इसमें स्त्री की खुलकर अभिव्यक्ति की अधिक जरूरत है। क्योंकि पुरुष कैसा है, क्या चाहता है? आदि बातें तो पुरुषों की ओर से हजारों किताबों में लिखी पडी हैं, जिनका परिणाम है-विक्षिप्त और असफल दाम्पत्य! अब स्त्री को लेखन करना होगा और सामाजिक वर्जनाओं की चिन्ता किये बिना खुलकर लिखना होगा। जिससे स्त्री मन एवं स्त्री व्यथा के साथ-साथ उसके हृदय को समझ सकने की समझ पैदा हो सके। लिखने को बहुत है, लेकिन फिलहाल मैं इस विषय को यही विराम देता हँू और विद्वान पाठकों एवं लेखिका की प्रतिक्रिया के बाद यदि जरूरी हुआ तो आगे अपने विचार प्रकट करूँगा। धन्यवाद। शुभकामनाओं सहित।

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