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Monday, February 28, 2011

मेरी तड़त का मतलब!

मेरी तड़त का मतलब!

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

मेरा शरीर मेरा है|
जैसे चाहूँ, जिसको सौंपूँ!
हो कौन तुम-
मुझ पर लगाम लगाने वाले?
जब तुम नहीं हो मेरे
मुझसे अपनी होने की-
आशा करते क्यों हो?

पहले तुम तो होकर दिखाओ
समर्पित और वफादार,
मैं भी पतिव्रता, समर्पित
और प्राणप्रिय-
बनकर दिखाऊंगी|
अन्यथा-
मुझसे अपनी होने की-
आशा करते क्यों हो?

तुम्हारी ‘निरंकुश’ कामातुरता-
ही तो मुझे चंचल बनाती है|
मेरे काम को जगाती है, और
मुझे भी बराबरी का अहसास
दिलाने को तड़पाती है|
यदि समझ नहीं सकते-
मेरी तड़त का मतलब!
मुझसे अपनी होने की-
आशा करते क्यों हो?

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति मीना जी...शानदार....

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  2. बहुत खूब गहरे मतलब के लिए सुंदर रचना.. शानदार प्रयास .....

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  3. बहुत दमदार प्रस्तुति. और शायद आपकी पूर्व प्रचलित छवि से थोडा हटकर भी । धन्यवाद...

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  4. पहले तुम" से तो सामने वाला भी यही कहेगा की "पहले तुम" इससे समस्या का निदान नहीं होगा बल्कि दूरियों का आगाज़ होगा . इससे तो बेहतर होता की चलो एक साथ एक दूजे के होकर नई खूबसूरत -खुशहाल दुनिया बनाएँ -hm dono....

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  5. Dear Purushotam Mina, it really Vary good most rebellious poetry.
    pkroy

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