मेरी तड़त का मतलब!
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
मेरा शरीर मेरा है|
जैसे चाहूँ, जिसको सौंपूँ!
हो कौन तुम-
मुझ पर लगाम लगाने वाले?
जब तुम नहीं हो मेरे
मुझसे अपनी होने की-
आशा करते क्यों हो?
पहले तुम तो होकर दिखाओ
समर्पित और वफादार,
मैं भी पतिव्रता, समर्पित
और प्राणप्रिय-
बनकर दिखाऊंगी|
अन्यथा-
मुझसे अपनी होने की-
आशा करते क्यों हो?
तुम्हारी ‘निरंकुश’ कामातुरता-
ही तो मुझे चंचल बनाती है|
मेरे काम को जगाती है, और
मुझे भी बराबरी का अहसास
दिलाने को तड़पाती है|
यदि समझ नहीं सकते-
मेरी तड़त का मतलब!
मुझसे अपनी होने की-
आशा करते क्यों हो?
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति मीना जी...शानदार....
ReplyDeleteबहुत खूब गहरे मतलब के लिए सुंदर रचना.. शानदार प्रयास .....
ReplyDeleteबहुत दमदार प्रस्तुति. और शायद आपकी पूर्व प्रचलित छवि से थोडा हटकर भी । धन्यवाद...
ReplyDeleteपहले तुम" से तो सामने वाला भी यही कहेगा की "पहले तुम" इससे समस्या का निदान नहीं होगा बल्कि दूरियों का आगाज़ होगा . इससे तो बेहतर होता की चलो एक साथ एक दूजे के होकर नई खूबसूरत -खुशहाल दुनिया बनाएँ -hm dono....
ReplyDeleteDear Purushotam Mina, it really Vary good most rebellious poetry.
ReplyDeletepkroy